सप्तशती गुरुचरित्र
सप्तशती गुरुचरित्र
हा मराठी ग्रंथ गंगातीरीं ब्रह्मावर्त येथे शके १८२६ (इ. स. १९०४) मध्यें झाला. मूळ श्रीगुरुचरित्राच्या सारभूत या ग्रंथाचे अध्याय ५१च आहेत व त्यांत ७०० श्लोक आहे. प्रत्येक श्लोकाचे तिसरे अक्षर क्रमाने वाचले असता श्रीमद्भगवद्गीतेचा १५वा अध्याय होतो. म्हणजेच हा ग्रंथ मंत्रगर्भ आहे. श्रीगुरुचरित्राच्या वाचनाचा अधिकार सर्वांना नसल्याने स्त्रीशूद्रादिकांना थोडक्यांत श्रीगुरुचरित्राची ओळख, उजळणी व अनुष्ठान या तीनही गोष्टी साध्य व्हाव्यात तसेच गीतेच्या पंधराव्या अध्यायाच्या पाठाचे फळही सहजच मिळावे असा श्रीमहाराजांचा उद्देश दिसतो. |
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१ |
चरितानुसंधान |
२७ |
द्विजगर्वपरिहार |
२ |
दीपकाख्यान |
२८ |
कर्मविपाक |
३ |
अंबरीषोपाख्यान |
२९ |
भस्ममहिमा |
४ |
अनसूयोपाख्यान |
३० |
प्रेतांगनाशोक |
५ |
श्रीपादावतार |
३१ |
पतिव्रताधर्म |
६ |
गोकर्णमहाबळेश्वरप्रतिष्ठापना |
३२ |
प्रेतसंजीवन |
७ |
गोकर्णक्षेत्रवर्णन |
३३ |
रुद्राक्षमहिमा |
८ |
शनिप्रदोषव्रत |
३४ |
रुद्राभिषेकफल |
९ |
रजकवरप्रदान |
३५ |
सीमंतिनी आख्यान |
१० |
चोरहनन व दिवजसंजीवन |
३६ |
आह्निककर्मनिरूपण |
११ |
श्रीनृसिंहावतार |
३७ |
आचारधर्म |
१२ |
संन्यासदीक्षाग्रहण |
३८ |
अन्नपूर्ति |
१३ |
विप्रशूलहरण |
३९ |
वृद्धवंध्याप्रसव |
१४ |
सायंदेववरप्रदान |
४० |
विप्रकुष्ठहरण |
१५ |
तीर्थयात्रानिरूपण |
४१ |
काशीयात्रानिरूपण |
१६ |
शिष्यत्रयाख्यान |
४२ |
काशीयात्रानिरूपण |
१७ |
छिन्नजिह्वादान |
४३ |
अनंतव्रत |
१८ |
धनकुंभप्रदान |
४४ |
श्रीपर्वतयात्रा |
१९ |
योगिनीवरदान |
४५ |
ब्राह्मणकुष्ठनिवारण |
२० |
समंधपरिहार |
४६ |
कवीश्वरास उपदेश |
२१ |
मृतपुत्रसंजीवन |
४७ |
दीपावली उत्सव |
२२ |
वंध्यामहिषीदोहन |
४८ |
शूद्रधान्यप्रवृद्धि |
२३ |
ब्रह्मराक्षसोद्धारण |
४९ |
गाणगापूरवर्णन |
२४ |
विश्वरूपदर्शन |
५० |
यवनोद्धारण |
२५ |
उन्मत्तद्विजाख्यान |
५१ |
वरप्रदान |
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