ब्रिटिश वेबसाइट का दावा- एक मंदिर में रखी हैं नेताजी की अस्थियां

नेताजी सुभाषचंद्र बोस के अंतिम दिनों के संबंध में ब्रिटेन में तैयार एक वेबसाइट ने सोमवार को इस बात का ब्योरा जारी किया है कि स्वतंत्रता सेनानी के अवशेष टोक्यो के एक मंदिर तक कैसे लाए गए और वहीं वे संरक्षित रखे हुए हैं. वेबसाइट ने इसे सबूत बताया है.

वेबसाइट ने ताईपे से उनके अवशेष जापानी की राजधानी में रेंकोजी मंदिर में लाने जाने का ब्योरा दिया है. इस वेबसाइट ने पहले बताया था कि 18 अगस्त, 1945 को विमान दुर्घटना के फलस्वरूप नेताजी की मृत्यु हो गयी थी. उसका दावा है कि ताईपे में नेताजी के अंतिम संस्कार के अगले दिन 23 अगस्त 1945 को उनके सहायक कर्नल हबीबुर रहमान, जापानी सेना के मेजर नागाटोमो और जापानी दुभाषिए जुइची नाकामुरा उनका अवशेष ताईवान के सबसे बड़े मंदिर निशि होंगानजी में रखे जाने के लिए वहां ले गए.

जांच समिति की रिपोर्ट में है जिक्र
वर्ष 1956 में शाहनवाज खान की अगुवाई वाली नेताजी जांच समिति ने लिखा कि इस ताईवानी स्थल पर अंतिम संस्कार किया गया. समिति ने पांच सितंबर, 1945 को कर्नल रहमान और लेफ्टिनेंट कर्नल टी सकाई, मेजर नकामिया और सब लेफ्टिनेंट टी हायशिदा अवशेष लेकर ताइपे में विमान में सवार हुए थे. ये अवशेष कपड़े में लिपटे थे और लकड़ी के बक्से में रखे थे. कर्नल रहमान और लेफ्टिनेंट कर्नल टी सकाई इस विमान हादस में बच गए थे. सब लेफ्टिनेंट हायशिदा ने इन अवशेष को फकुओको ले जाने के दौरान जापानी परंपरा के अनुसार उन्हें गले से लटकाया था. उसके बाद कर्नल रहमान और मेजर नकामिया विमान से टोक्यो तक गए जबकि लेफ्टिनेंट हायशिदा अवशेष लेकर ट्रेन से टोक्यो गए. उनके साथ तीन सैनिक थे. अवशेष तत्काल जापानी सैन्य इंपेरियल जनरल हेडक्वाटर्स ले जाए गए. अगली सुबह सैन्य मामलों के प्रभाग के प्रमुख लेफ्टिनेंट ताकाकुरा ने जापान में इंडियन इंडिपेंडेंट लीग के अध्यक्ष रामामूर्ति को अवशेष लेने के लिए फोन किया.

जुलूस में शामिल हुए थे 100 लोग
प्रोवेंशियल गवर्नमेंट ऑफ फ्री इंडिया में मंत्री एस.ए. अय्यर राममूर्ति के साथ आए. अय्यर इस दुखद खबर को सुनकर दक्षिण पूर्व एशिया से टोक्यो आए. मूर्ति के अनुसार अय्यर और वह अवशेष लेकर उनके घर आए जो उन दिनों इंडियन इंडिपेंडेंस लीग का मुख्यालय भी था. वहां पर अय्यर ने सुभाषचंद्र बोस की मृत्यु को लेकर कर्नल रहमान से कई सवाल किए जिसका उन्होंने उपयुक्त जवाब दिया. कुछ दिन बाद 18 सितंबर, 1945 को जुलूस के साथ उनका अवशेष रेकोंजी मंदिर ले जाया गया. इस जुलूस में करीब 100 लोग शामिल हुए.

बोस के सहयोगियों ने उचित संस्कार के बाद मंदिर के मुख्य पुरोहित से अवशेष को उचित तरीके से तब तक के लिए संरक्षित रखने का अनुरोध किया जबतक वे उपयुक्त अधिकारियों के हवाले न कर दिया जाए.

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