Navratri folk story : नवरात्रि पर खूब पढ़ी जाती है ऋषि सत्यव्रत और ब्राह्मण की यह लोककथा

नवरात्रि व्रत की लोककथा के अनुसार कौशल देश में सुशील नामक का एक निर्धन ब्राह्मण रहता था। प्रतिदिन मिलने वाली भिक्षा से वह अपने परिवार का भरण-पोषण करता था। उसके कई बच्चे थे। प्रातःकाल वह भिक्षा लेने घर से निकलता और सायंकाल लौट आता था।
देवताओं, पितरों और अतिथियों की पूजा करने के बाद आश्रितजन को खिलाकर ही वह स्वयं भोजन ग्रहण करता था। इस प्रकार भिक्षा को वह भगवान का प्रसाद समझकर स्वीकार करता था।
इतना दुःखी होने पर भी वह दूसरों की सहायता के लिए सदैव तत्पर रहता था। यद्यपि उसके मन में अपार चिंता रहती थी, तथापि वह सदैव धर्म-कर्म में लगा रहता था। अपनी इन्द्रियों पर उसका पूर्ण नियंत्रण था। वह सदाचारी, धर्मात्मा और सत्यवादी था। उसके हृदय में कभी क्रोध, अहंकार और ईर्ष्या जैसे तुच्छ विकार उत्पन्न नहीं होते थे।
एक बार उसके घर के निकट सत्यव्रत नामक एक तेजस्वी ऋषि आकर ठहरे। वे एक प्रसिद्ध तपस्वी थे। मंत्रों और विद्याओं का ज्ञाता उनके समान आस-पास दूसरा कोई नहीं था। शीघ्र ही अनेक व्यक्ति उनके दर्शनों को आने लगे। सुशील के हृदय में भी उनसे मिलने की इच्छा जागृत हुई और वह उनकी सेवा में उपस्थित हुआ।
सत्यव्रत को प्रणाम कर वह बोला- “ऋषिवर! आपकी बुद्धि अत्यंत विलक्षण है। आप अनेक शास्त्रों, विद्याओं और मंत्रों के ज्ञाता हैं। मैं एक निर्धन, दरिद्र और असहाय ब्राह्मण हूं। कृपया मुझे बताएं कि मेरी दरिद्रता किस प्रकार समाप्त हो सकती है?”
उसने आगे कहा कि, “मुनिवर! आपसे यह पूछने का केवल इतना ही अभिप्राय है कि मुझ में कुटुंब का भरण-पोषण करने की शक्ति आ जाए। धनाभाव के कारण मैं उन्हें समुचित सुविधाएं और अन्य सुख नहीं दे पा रहा हूं। दयानिधान! तप, दान, व्रत, मंत्र अथवा जप-आप कोई ऐसा उपाय बताने का कष्ट करें, जिससे कि मैं अपने परिवार का यथोचित भरण-पोषण कर सकूं। मुझे केवल इतने ही धन का अभिलाषा है, जिससे कि मेरा परिवार सुखी हो जाए।”
तब सत्यव्रत ऋषि ने सुशील को भगवती दुर्गा की महिमा बताते हुए नवरात्रि व्रत करने का परामर्श दिया। सुशील ने सत्यव्रत को अपना गुरु बनाकर उनसे मायाबीज नामक भुवनेश्वरी मंत्र की दीक्षा ली। तत्पश्चात नवरात्रि व्रत रखकर उस मंत्र का नियमित जप आरंभ कर दिया। उसने भगवती दुर्गा की श्रद्धा और भक्तिपूर्वक आराधना की।
नौ वर्षों तक प्रत्येक नवरात्रि में वह भगवती दुर्गा के मायाबीज मंत्र का निरंतर जप करता रहा। सुशील की भक्ति से प्रसन्न होकर नौवें वर्ष की नवरात्रि में, अष्टमी की आधी रात को देवी भगवती साक्षात प्रकट हुईं और सुशील को उसका अभीष्ट वर प्रदान करते हुए उसे संसार का समस्त वैभव, ऐश्वर्य और मोक्ष प्रदान किया।
इस प्रकार भगवती दुर्गा ने प्रसन्न होकर अपने भक्त सुशील के सभी कष्टों को दूर कर दिया और उसे अतुल धन-संपदा, मान-सम्मान और समृद्धि प्रदान की।
इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि किसी भी कार्य को श्रद्धा, भक्ति और निष्ठा से करने पर उसका फल सदैव अनुकूल ही प्राप्त होता है।
Categories: Uncategorized Tags:
8 अक्टूबर 2019 : आपका जन्मदिन
जन्मदिन की शुभकामनाओं के साथ आपका स्वागत है वेबदुनिया की विशेष प्रस्तुति में। यह कॉलम नियमित रूप से उन पाठकों के व्यक्तित्व और भविष्य के बारे में जानकारी देगा जिनका उस दिनांक को जन्मदिन होगा। पेश है दिनांक 10 को जन्मे व्यक्तियों के बारे में जानकारी :
दिनांक 8 को जन्मे व्यक्ति का मूलांक 8 होगा। यह ग्रह सूर्यपुत्र शनि से संचालित होता है। इस दिन जन्मे व्यक्ति धीर गंभीर, परोपकारी, कर्मठ होते हैं। आपकी वाणी कठोर तथा स्वर उग्र है। आप भौतिकतावादी है। आप अदभुत शक्तियों के मालिक हैं। आप अपने जीवन में जो कुछ भी करते हैं उसका एक मतलब होता है। आपके मन की थाह पाना मुश्किल है। आपको सफलता अत्यंत संघर्ष के बाद हासिल होती है। कई बार आपके कार्यों का श्रेय दूसरे ले जाते हैं।
शुभ दिनांक : 10 17, 26
शुभ अंक : 8, 17, 26, 35, 44
शुभ वर्ष : 2017, 2024, 2042
ईष्टदेव : हनुमानजी, शनि देवता
शुभ रंग : काला, गहरा नीला, जामुनी
कैसा रहेगा यह वर्ष
सभी कार्यों में सफलता मिलेगी। जो अभी तक बाधित रहे है वे भी सफल होंगे। व्यापार-व्यवसाय की स्थिति उत्तम रहेगी। नौकरीपेशा व्यक्ति प्रगति पाएंगे। बेरोजगार प्रयास करें, तो रोजगार पाने में सफल होंगे। शत्रु वर्ग प्रभावहीन होंगे, स्वास्थ्य की दृष्टि से समय अनुकूल ही रहेगा। राजनैतिक व्यक्ति भी समय का सदुपयोग कर लाभान्वित होंगे।
मूलांक 10 के प्रभाव वाले विशेष व्यक्ति
- गुरु नानक
- जार्ज बर्नार्ड शॉ
- राकेश बेदी
- डिम्पल कपाडि़या
- जावेद अख्तर
- धर्मेंद्र
Categories: Uncategorized Tags:
अपनी आकर्षण शक्ति कैसे बढ़ाएं, जानिए रावण संहिता के 4 उपाय

रावण के 4 तांत्रिक तिलक का रहस्य
महाज्ञानी रावण कई चीजों में पारंगत था। ज्योतिष शास्त्र में भी उसे महारत हासिल थी। तंत्र शास्त्र का भी वह महाज्ञाता था। इसी वजह से जो भी दशानन के संपर्क में आता था वह सहसा ही उससे मोहित हो जाता था।
यह बहुत कम लोगों को पता होगा कि रावण का प्रभाव उसकी तांत्रिक साधना के बल पर था। रावण कई ऐसे उपाय भी करता था जिससे जो भी सामान्य इंसान उसे देखता था वह आकर्षित हो जाता था। रावण संहिता में कुछ ऐसे ही खास प्रकार के तांत्रिक तिलक की चर्चा की गई है। जो भी व्यक्ति यह तिलक लगाता है सहज ही लोग उसकी तरफ खिंचे चले आते हैं। यहां जानिए कि कौन-कौन से हैं वह तांत्रिक तिलक…
- आप सफेद आंकड़े (अकवन) को छाया में सुखा लें। इसके बाद उसे कपिला गाय यानी सफेद गाय के दूध में मिलाकर उसे पीस लें फिर उसका तिलक लगाएं। ऐसा करने वाले व्यक्ति का समाज में वर्चस्व स्थापित हो जाता है।
- अपामार्ग के बीज को बकरी के दूध में मिलाकर उसे पीसकर उसका लेप बनाकर लगाएं। इस लेप को लगाने वाले व्यक्ति का समाज में आकर्षण काफी बढ़ जाता है। उसका कहा सभी लोग मानते हैं।
- दुर्वा घास के चमत्कार से तो आप पहले से ही वाकिफ होंगे। शास्त्रों में भी इसके चमत्कार का वर्णन किया गया है। कई प्रकार के उपायों में इसका प्रयोग किया गया है। यदि कोई व्यक्ति सफेद गाय के दूध के साथ सफेद दुर्वा घास का लेप बनाकर उसका तिलक लगाए तो वह किसी भी काम में असफल नहीं होता है।
- साथ ही यदि आप घर, समाज या ऑफिस जैसी जगहों पर लोगों को आकर्षित करना चाहते हैं तो बिल्वपत्र तथा बिजौरा नींबू को बकरी के दूध में मिलाकर उसका तिलक लगाएं। ऐसा करने पर आपका आकर्षण बढ़ेगा और आप हर जगह लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचने में सफल रहेंगे।
Categories: Uncategorized Tags:
Birth of Ravan : कैसे हुआ रावण का जन्म… यह कथा आपको चौंका सकती है

लोग लंकापति रावण को अनीति, अनाचार, दंभ, काम, क्रोध, लोभ, अधर्म और बुराई का प्रतीक मानते हैं और उससे घृणा करते हैं। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यहां यह है कि दशानन रावण में कितना ही राक्षसत्व क्यों न हो उसके गुणों की अनदेखी नहीं की जा सकती।
रावण में अवगुण की अपेक्षा गुण अधिक थे। रावण एक प्रकांड विद्वान था। वेद-शास्त्रों पर उसकी अच्छी पकड़ थी और वह भगवान भोलेशंकर का अनन्य भक्त था। उसे तंत्र, मंत्र, सिद्धियों तथा कई गूढ़ विद्याओं का ज्ञान था। ज्योतिष विद्या में भी उसे महारथ हासिल थी।
कैसे हुआ रावण का जन्म-
रावण के उदय के विषय में भिन्न-भिन्न ग्रंथों में भिन्न-भिन्न प्रकार के उल्लेख मिलते हैं। वाल्मीकि द्वारा लिखित रामायण महाकाव्य,पद्मपुराण तथा श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार हिरण्याक्ष एवं हिरण्यकशिपु दूसरे जन्म में रावण और कुंभकर्ण के रूप में पैदा हुए।
वाल्मीकि रामायण के अनुसार रावण पुलस्त्य मुनि का पोता था अर्थात् उनके पुत्र विश्वश्रवा का पुत्र था। विश्वश्रवा की वरवर्णिनी और कैकसी नामक दो पत्नियां थी। वरवर्णिनी के कुबेर को जन्म देने पर सौतिया डाह वश कैकसी ने अशुभ समय में गर्भ धारण किया।
इसी कारण से उसके गर्भ से रावण तथा कुंभकर्ण जैसे क्रूर स्वभाव वाले भयंकर राक्षस उत्पन्न हुए। तुलसीदास जी के रामचरितमानस में रावण का जन्म शाप के कारण हुआ है। वे नारद एवं प्रतापभानु की कथाओं को रावण के जन्म का कारण बताते हैं।
पौराणिक कथा-
इसके अनुसार भगवान विष्णु के दर्शन हेतु सनक, सनंदन आदि ऋषि बैकुंठ पधारे परंतु भगवान विष्णु के द्वारपाल जय और विजय ने उन्हें प्रवेश देने से इंकार कर दिया। ऋषिगण अप्रसन्न हो गए और क्रोध में आकर जय-विजय को शाप दे दिया कि तुम राक्षस हो जाओ। जय-विजय ने प्रार्थना की व अपराध के लिए क्षमा मांगी।
भगवान विष्णु ने भी ऋषियों से क्षमा करने को कहा। तब ऋषियों ने अपने शाप की तीव्रता कम की और कहा कि तीन जन्मों तक तो तुम्हें राक्षस योनि में रहना पड़ेगा और उसके बाद तुम पुनः इस पद पर प्रतिष्ठित हो सकोगे। इसके साथ एक और शर्त थी कि भगवान विष्णु या उनके किसी अवतारी स्वरूप के हाथों तुम्हारा मरना अनिवार्य होगा।
यह शाप राक्षसराज, लंकापति, दशानन रावण के जन्म की आदि गाथा है। भगवान विष्णु के ये द्वारपाल पहले जन्म में हिरण्याक्ष व हिरण्यकशिपु राक्षसों के रूप में जन्मे। हिरण्याक्ष राक्षस बहुत शक्तिशाली था और उसने पृथ्वी को उठाकर पाताललोक में पहुंचा दिया था।
पृथ्वी की पवित्रता बहाल करने के लिए भगवान विष्णु को वराह अवतार धारण करना पड़ा था। फिर विष्णु ने हिरण्याक्ष का वधकर पृथ्वी को मुक्त कराया था।
हिरण्यकशिपु भी ताकतवर राक्षस था और उसने वरदान प्राप्तकर अत्याचार करना प्रारंभ कर दिया था। भगवान विष्णु द्वारा अपने भाई हिरण्याक्ष का वध करने की वजह से हिरण्यकशिपु विष्णु विरोधी था और अपने विष्णुभक्त पुत्र प्रह्लाद को मरवाने के लिए भी उसने कोई कसर नहीं छोड़ी थी।
फिर भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार धारण कर हिरण्यकशिपु का वध किया था। त्रेतायुग में ये दोनों भाई रावण और कुंभकर्ण के रूप में पैदा हुए और तीसरे जन्म में द्वापर युग में जब भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में जन्म लिया, तब ये दोनों शिशुपाल व दंतवक्त्र नाम के अनाचारी के रूप में पैदा हुए थे।
क्यों पड़ा रावण का दशानन नाम-
रावण को दशानन कहते हैं। उसका नाम दशानन उसके दशग्रीव नाम पर पड़ा। कहते हैं कि महातपस्वी रावण ने भगवान शंकर को प्रसन्न कर एक-एक कर अपने दस सिर अर्जित किए थे।
उस कठोर तपस्या के बल पर ही उसे दस सिर प्राप्त हुए, जिन्हें लंका युद्ध में भगवान राम ने अपने बाणों से एक-एक कर काटा था।
यदि रावण ने कठोर तपस्या से अर्जित अपने उन दस सिरों की बुद्धि का सार्थक और सही इस्तेमाल किया होता,तो शायद इतिहास में अपनी प्रकांड विद्वता के लिए अमर हो जाता और लोग उससे घृणा नहीं करते, बल्कि उसकी पूजा करते।
Categories: Uncategorized Tags:
Categories: Uncategorized Tags: