It is very important to have the attraction of love in every small and big thing related to nature.

प्रकृति से जुड़ी हर छोटी-बड़ी चीज में प्रेम का आकर्षण होना है बेहद जरूरी

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आकर्षण का जादू इस सृष्टि के हरेक तत्व को सक्रिय रखता है। प्रकृति का पूरा विधान प्रेम के आकर्षण से बंधा है। यह प्रकृति के अस्तित्व का आधार है। यह आकर्षण सभी छोटी-बड़ी चीजों में होता है जो उसको टिकाने, स्पीड देने और बैलेंस देने का काम करता है। आकाश में हवाई जहाज की उड़ान हो या पेड़-पौधों में जीवन- ये सब प्राकृतिक नियमों के साथ सामंजस्य और संतुलन के कारण अस्तित्व में आए हैं।

विज्ञान की सभी खोजों में, अध्यात्म के हरेक चिंतन में और कला के प्रत्येक सृजन में एक नियम की प्रधानता होती है। वह नियम है- मैत्री के आकर्षण की शक्ति। सृष्टि का यह ऐसा शक्तिशाली नियम है, जो संसार के सभी सृजनशील चिंतक, वैज्ञानिक और कलाकारों की रचना का स्रोत रहा है। प्रेम के कारण ही विचारों को सार्थक और सफल दिशा में जाने का रास्ता मिलता है। यह हमारी रुचि, चिंतन और अध्यवसाय को हमेशा उत्साह से लबरेज रखता है। आकर्षण की सकारात्मक शक्ति हमारे मन में कुछ करने की इच्छा जगाती है। उसके बाद उसे बनाने और पाने के पक्के इरादे से जोड़ कर उसको उड़ने के लिए पंख देती है। काम के प्रति अनुराग न हो, सक्रियता के लिए आकर्षण न हो और सृजन के लिए प्रेरणा न हो, तो यह सृष्टि ही नहीं होगी।

प्रेम की ताकत पर जो सवाल उठाते हैं, उनके भी अस्तित्व का कारण यह आकर्षण ही है। इस आकर्षण के कारण ही यह दुनिया जीव और जीवन से आबाद है, अन्यथा पूरे जगत में वीरानी छाई रहती। रामायण में एक जगह लक्ष्मण भगवान श्रीराम से सवाल करते हैं कि आपने प्रेम की शिक्षा नहीं प्राप्त की। इसके बाद भी आपने इतना प्रेम कहां से सीखा? श्रीराम कहते हैं कि यह समूची सृष्टि ही प्रेममय है। प्रकृति की हरेक गतिविधि प्रेम से परिपूर्ण है। इसके कारण ही हम उसके प्रति आकर्षित होते हैं। उसी प्रकार आकर्षण के बिना सृजन भी संभव नहीं है। विश्व के महान वैज्ञानिक थॉमस अल्वा एडिसन ने एक हजार से ज्यादा वैज्ञानिक खोजें कीं। उनकी खोजें अद्भुत हैं, जबकि बचपन में उनको स्कूल से इसलिए निकाल दिया गया कि वह पढ़ने में कमजोर थे। यह कैसे हुआ? केवल पढ़ाई के प्रति उनके प्रेम और आकर्षण के कारण।

प्रकृति का मूल स्वभाव मैत्री ही है। प्रेम कोई क्रिया नहीं है। यह स्वाभाविक घटना है। यह प्राकृतिक है। यह चेष्टा से नहीं की जाती है। अगर व्यक्ति प्रेम को ही लक्ष्य बना ले, मैत्री संबंध प्रगाढ़ करे, तो उसका आकर्षण हमेशा ताकत देता रहेगा। ऐसे में उत्साह के असीम स्रोत फूटेंगे और हमारे कर्म सबसे अव्वल दर्जे के होंगे। जब कर्म ही प्रेममय हो जाता है, तो लक्ष्य केवल एक पड़ाव ही रह जाता है। कर्मफल तो उसके सृजन के प्रेमपूर्ण प्रवाह में विलीन हो जाता है। यह उत्कृष्टता की स्थिति होती है। इसको ही निष्काम कर्म कहा जाता है। कर्म ही प्रेम हो जाए तो आनंद सदैव साथ रहेगा, तब लक्ष्य गौण हो जाता है। कर्मफल में जीवन को खोजने की उत्सुकता या चाहत खत्म हो जाती है। प्रकृति आनंद भाव में रहती है, तो इसके पीछे उसके प्रेम की संलग्नता है। जीवन केवल आस्था और ज्ञान का मार्ग नहीं है, बल्कि यह व्यवहार और आचरण का विषय है। इसके लिए एक गुण ही आधार का काम करता है जिसे प्रेम कहा गया है।

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