Dhanvantari Aarogya Kavach धन्वंतरी आरोग्य कवच

धन्वंतरी आरोग्य कवच

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय धन्वन्तरये अमृतकलश हस्ताय |
सर्वामय विनाशनाय त्रैलोक्यनाथाय श्री महाविष्णवे नमः ||

We pray to the God, who is known as Sudarshana Vasudev Dhanvantari. He holds the Kalasha full of nectar of immortality. Lord Dhanvantri removes all fears and removes all diseases. He is the well wisher and the preserver of the three worlds. Dhanvantari is like Lord Vishnu, empowered to heal the Jiva souls. We bow to the Lord of Ayurveda

Mantra for Healing | Dhanvantri Mantra Chants

Maha Sudarshana [Dhanvantri] Mantra | Powerful Mantra for Good Health |

We pray to God, who is known as Sudarshana Vasudev Dhanvantari. He holds the Kalasha full of nectar of immortality. Lord Dhanvantri removes all fears and removes all diseases. He is the well-wisher and the preserver of the three worlds. Dhanvantari is like Lord Vishnu, empowered to heal the Jiva souls. We bow to the Lord of Ayurveda. Today we are celebrating Dhanwantari Triyodasi, as it is considered as the birthday of The Lord Dhanwantri, who is the physician of Gods. Mythologically God Dhanwantri appeared on this day while the ocean of milk was churned for the divine nectar called Amrit. Today the special puja is performed to invoke the blessings of lord dhanvantari to cure all the diseases and other health ailments.

अहं हि धन्वन्तरिरादिदेवो जरारुजामृत्युहरोऽमराणाम्।
शल्याङ्गमङ्गैरपरैरुपेतं प्राप्तोऽस्मि गां भूय इहोपदेष्टुम्॥

ओम नमो भगवान धन्वंतरी नमः

ओम नमो भगवान धन्वंतरी नमः

ओम नमो भगवान धन्वंतरी नमः


आरोग्य से अमरत्त्व का सार

स्वास्थ्य सम्बन्धित सर्वेक्षणों के अनुसार 30 वर्ष से अधिक उम्र के एक-तिहाई भारतीय लाइफ स्टाइल सम्बन्धित बीमारियों से ग्रस्त हैं, सीधे-सादे शब्दों में कहें तो ब्लड़-प्रेशर, कैंसर, थॉयरॉयड़ आदि ऐसी बीमारियां हैं। जिस देश में वेदों ने ‘सर्वे सन्तुनिरामयाः’ का सत्य घोष किया है, वहां पर स्वास्थ्य सम्बन्धित ऐसा सर्वे निःसंदेह एक भयावह तस्वीर प्रस्तुत करता है। उपाय क्या है जिसके द्वारा हम सब पूर्ण आयु को प्राप्त करें, क्रियाशील रहें और धर्म के मार्ग पर प्रवृत्त हों?

स्वस्ति वाचन में एक सुन्दर श्‍लोक है-

भद्रं कर्णेभिः श्रुणुयाम देवाम् भद्रं पश्येमक्षभिर्यजत्राः।
स्थिरैरङ् गैस्तुष्टुवाम् सस्तनूभिर्व्यशेम ही देवहितम् यदायुः॥

हमारे कान अच्छा सुनें, हमारे नेत्र अच्छा देखें, हम अपनी आंखों से मंगलमय घटित होते देखें, निरोग इन्द्रियों एवं स्वस्थ देह के माध्यम द्वारा ब्रह्मा द्वारा प्रदत्त सौ वर्ष की आयु प्राप्त करें।

हमारे जीवन की यात्रा आरोग्य से अमरता की ओर बढ़ने की यात्रा है। स्वस्थ शरीर में ही उर्जावान मन बसता है और इन्हीं के मेल से कार्य किए जाते हैं, पर आजकल तो बीमारियों का बोलबाला हो गया है, जितना ज्यादा इलाज के मापदण्ड बढ़ते गए उतना ही मर्ज बढ़ता गया। छोटे-छोटे बच्चों को भी बड़ी-बड़ी बीमारियां होने लगी हैं।

निःसन्देह एलोपैथी में बीमारियों का उपचार नहीं होता है, सिर्फ मर्ज से जुड़े चिन्ह दबाए जाते हैं। शरीर तो समय के साथ अपनी आंतरिक रोग-प्रतिरोधात्मक शक्ति के बल पर अपने आप स्वस्थ हो जाता है।

बीमारियों का वास्तविक इलाज आयुर्वेद में है, जो सैकड़ों वर्षों पुराना विज्ञान है। आयुर्वेद दो शब्दों के मेल से बना है, आयुः+वेद। इसे प्राणों का वेद भी कहते हैं और पुराणों के अनुसार आयुर्वेद के प्रवर्त्तक भगवान धन्वंतरी हैं। इनका आविर्भाव कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को हुआ, जिसे धन त्रयोदशी भी कहा जाता है।

भगवान धन्वंतरी से संबंधित रोचक तथ्य

  1. भगवान धन्वंतरी की उत्त्पत्ति समुद्र मंथन के समय हुई थी अमृत-कलश लिए भगवान धन्वंतरी समुद्र मंथन के बाद अवतरित हुए। निःसन्देह भगवान धन्वंतरी दीर्घायु और अमरता का वरदान देते हैं, अर्थात् उनके आशीर्वाद से स्वस्थ शरीर के साथ आप अमरत्त्व के पथ पर आगे बढ़ते हैं।
  2. भगवान धन्वंतरी श्रीविष्णु के अंश हैं और उनका नाम लेने मात्र से रोगों का अंत हो जाता है। जैसे कुबेर देवताओं के खजांची हैं, वैसे ही धन्वंतरी देवताओं के चिकित्सक हैं और उन्हें बुढ़ापे से और अन्य बीमारियों से दूर रखते हैं। भगवान धन्वंतरी अपने इस स्वरूप में स्वास्थ्य के महत्व को बताते हैं।
  3. धन्वंतरी जब समुद्र मंथन से बाहर निकले उस समय श्रीविष्णु की तरह उन्होंने शंख और चक्र धारण किया हुआ था। उनके एक हाथ में अमृत कलश था और दूसरे हाथ में एक लीच(जालुक) आयुर्वेद चिकित्सा में लीचों की भी प्रधान भूमिका रही है।
  4. भगवान धन्वंतरी ने ही देवताओं के निरामय जीवन के लिये और मानव जाति के स्वास्थ्य के लिये आयुर्वेद शास्त्र का उपदेश ॠषि विश्‍वामित्र के पुत्र सुश्रुत को दिया। रोगों के सम्पूर्ण नाश के लिये भगवान धन्वंतरी द्वारा रचित धन्वंतरी संहिता आयुर्वेद का आधार ग्रंथ है।
  5. आरोग्य प्राप्ति में मंत्रों की विशेष भूमिका रही है। धन्वंतरी संहिता में लिखा है कि शिव अमृत मंत्रों से प्राणप्रतिष्ठित विशेष आरोग्य धन्वंतरी कवच धारण कर लिया जाए तो व्यक्ति जटिल से जटिल रोग से मुक्ति प्राप्त कर सकता है। धन्वंतरी ने रोग मुक्ति से ज्यादा इस बात पर बल दिया कि मनुष्य किस प्रकार स्वस्थ रहे और उसके चारों ओर मंत्र-तंत्र का ऐसा प्रभाव होना चाहिए कि उसके पास रोग रूपी शत्रु आ ही ना सकें।
    धन्वंतरी ने अपने प्रत्येक ॠषि, शिष्य और जन-जन को मंत्र सिद्ध प्राण प्रतिष्ठायुक्त ‘धन्वंतरी कवच’ प्रदान किया और प्राण संजीवनी विद्या अपने शिष्यों को बताई।

प्राण संजीवनी महामृत्युंजय मंत्रों से आपूरित

धन्वन्तरी आरोग्य कवच

अहं हि धन्वन्तरिरादिदेवो जरारुजामृत्युहरोऽमराणाम्।
शल्याङ्गमङ्गैरपरैरुपेतं प्राप्तोऽस्मि गां भूय इहोपदेष्टुम्॥

धन्वन्तरी ने अमृत रूपी औषधि का सृजन कर सभी देवताओं को अजराः(वृद्धावस्था से रहित) अमराः(मृत्यु रहित) निरामयाः(सब प्रकार की आधिव्याधि और रोग-शोक से मुक्त) उसी प्रकार धन्वन्तरी मंत्रों से प्राण प्रतिष्ठित यह कवच पूर्ण आरोग्य का सुरक्षा चक्र है, जिसे धारण करने वाला सदैव निरोगी रहता है।

इस कवच को धारण करने वाला व्यक्ति सदैव ही प्रसन्न और जोशीला तथा उत्साहित रहता है, उसकी कार्य-क्षमता बढ़ जाती है तथा रोग उसके पास नहीं फटकते हैं।

आरोग्य मंत्रों से आपूरित यह कवच धारण करना जीवन का सौभाग्य है। गुरुदेव ने इस कवच को अपनी विशिष्ट शक्ति एवं मंत्रों से ऊर्जित किया है, जिससे इस कवच को धारण करने वाले को आरोग्य, आशीर्वाद स्वरूप प्राप्त होता है। धन्वंतरी आरोग्य कवच को धन्वंतरी के विशेष मंत्रों से प्राण प्रतिष्ठित किया गया है, यह कवच साधक के चारों ओर एक विशेष प्रकार का आरोग्य क्षेत्र तैयार कर देता है और धारण करने वाले साधक को असीम ऊर्जा प्रदान करता है।

यदि बालकों को किसी प्रकार का रोग हो अथवा बार-बार बीमार पड़ते हों, किसी प्रकार के मिर्गी इत्यादि के दौरें आते हों, भूत-प्रेत इत्यादि का भय रहता हो, बार-बार ज्वर आ जाता हो तो उन बालकों को यह कवच अवश्य ही धारण करवाना चाहिए।
धारण विधान

इस कवच को आप धन्वंतरी जयंती के दिन या फिर कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन धारण कर सकते हैं।

धन त्रयोदशी के दिन प्रातः अपने पूजा स्थान को शुद्ध, साफ कर लें। धन त्रयोदशी को दो कार्य किये जाते हैं प्रथम कार्य अपने वर्ष भर के हिसाब-किताब की नई पुस्तकें लाकर उनका पूजन किया जाता है। दूसरा कार्य आरोग्य हेतु भगवान धन्वंतरी का आह्वान और पूजन किया जाता है।

संकल्प

सर्वप्रथम अपने दाहिने हाथ में जल लेकर ‘आरोग्यता प्राप्ति की प्रार्थना करें’ और जल जमीन पर छोड़ दें। यह साधना आप स्वयं के लिये कर रहे हों तो स्वयं की आरोग्यता की प्रार्थना करें और यदि आप किसी अन्य के लिये यह साधना कर रहे हैं तो उसके नाम से प्रार्थना करें।

अपने सामने एक पात्र में पुष्प आसन देकर ‘धन्वंतरी आरोग्य कवच’ को स्थापित करें। उस पर कुंकुम, केशर, अबीर, गुलाल और चन्दन चढ़ाएं। पूजा स्थान में धूप, दीप अगरबत्ती अवश्य प्रज्वलित होनी चाहिए। वातावरण पूर्ण सुगन्धमय होना चाहिए।

अब अपने हाथ में गुलाब के पुष्प लेकर पुनः इस ‘धन्वंतरी आरोग्य कवच’ पर अर्पण करें और देवाधिदेव आरोग्य जनक धन्वंतरी देव का आह्वान करें। मन ही मन यह वचन बोलें कि हे देव धन्वतंरी आप मेरे पूरे परिवार से रोगों को समाप्त करें, परिवार के सभी सदस्य श्रेष्ठ आयु, बल और पुष्टि प्राप्त करें।

इसके पश्‍चात् धन्वंतरी का ध्यान करते हुए कवच पर पुष्प अर्पित करें –

सत्यं च येन निरतं रोगं विधूतं,
अन्वेषितं च सविधिं आरोग्यमस्य।
गूढ़ं निगूढ़ं औषध्यरूपम्,
धन्वंतरी च सततं प्रणमामि नित्यं॥

ध्यान के पश्‍चात् निम्न धन्वंतरी मंत्र का 108 बार जप करें –

मंत्र

॥ॐ रं रुद्र रोगनाशाय धन्वन्तर्यै फट्॥

प्रत्येक मंत्र जप के पश्‍चात् पुष्प की एक-एक पंखुडी कवच पर अर्पित कर देें। मंत्र जप अनुष्ठान के पश्‍चात् साधक अपने कवच को लाल धागे में पिरोकर अपने गले अथवा बाजु पर धारण कर लें। यदि किसी बालक के लिये आरोग्य कवच स्थापित किया है तो उसके नाम का संकल्प लें। यदि बालक पांच वर्ष से बड़ा है तो उस बालक को यह कवच अवश्य पहचानाएं। अगली कृष्ण त्रयोदशी तक नित्य उपरोक्त मंत्र का 21 बार जप करें तथा अगले मास की कृष्ण त्रयोदशी को पीले वस्त्र में दो मुट्ठी चावल के मध्य कवच को रखकर जल में प्रवाहित कर दें।

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