Similar Posts
Shiv Tandav Stotra meaning in Hindi
शिव तांडव स्तोत्र जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम् । डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवो शिवम् ॥१॥ जटाकटाहसंभ्रमभ्रमन्निलिंपनिर्झरी विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि । धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ॥२॥ धराधरेंद्रनंदिनीविलासबन्धुबन्धुर स्फुरद्दिगंतसंतति प्रमोद मानमानसे । कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद्विगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥३॥ जिन्होंने जटारूपी अटवी (वन) से निकलती हुई गंगा जी के गिरते हुए प्रवाहों से पवित्र किये गये गले में…
Parshuram stotra in English and Sanskrit – परशुराम स्तोत्र
|| परशुरामस्तोत्रम् || कराभ्यां परशुं चापं दधानं रेणुकात्मजम् जामदग्न्यं भजे रामं भार्गवं क्षत्रियान्तकम् ||१|| नमामि भार्गवं रामं रेणुकाचित्तनंदनम् मोचिताम्बार्तिमुत्पातनाशनं क्षत्रनाशनम् || २ || भयार्तस्वजनत्राणतत्परं धर्मतत्परम् गतवर्गप्रियं शूरं जमदग्निसुतं मतम् || ३ || वशीकृतमहादेवं दृप्तभूपकुलान्तकम् तेजस्विनं कार्तवीर्यनाशनं भवनाशनम् || ४ || परशुं दक्षिणे हस्ते वामे च दधतं धनु: रम्यं भृगुकुलोत्तंसं घनश्यामं मनोहरम् || ५ || शुद्धं…
Uvasaggaharam stotra meaning in Gujarati
uvasaggaharam stotra meaning in gujarati uvasagharam stotra benefits uvasagharam stotra meaning in english uvasaggaharam stotra pdf uvasagharam stotra 27 gatha uvasagharam stotra 27 times benefits of uvasagharam uvasagharam stotra free download uvasagharam stotra by namramuni bhaktamar stotra jain story in gujarati bhaktamar stotra in gujarati pdf santikaram stotra logassa stotra uvasagharam stotra free mp3 download…
Lord Shani Dev Mantra in Hindi भगवान शनि देव के मंत्र
भगवान शनि देव के मंत्र (Shani Dev) शनि देव को न्याय का देवता माना जाता है। मनुष्य द्वारा किए गए पापों का दंड शनि देव ही देते हैं। शनि देव की आराधना करने से गृह क्लेश समाप्त हो जाता है तथा घर में सुख-समृद्धि का वास होता है। इनकी उपासना से कार्यों में आने वाली…
Mahadeva Krutha Rama Stotram
॥ श्रीरामस्तोत्रं श्रीमहादेवकृतम् ॥ श्री गणेशाय नमः । श्रीमहादेव उवाचः । नमोऽस्तु रामाय सशक्तिकाय नीलोत्पलश्यामलकोमलाय । किरीटहाराङ्गदभूषणाय सिंहासनस्थाय महाप्रभाय ॥ १॥ त्वमादिमध्यान्तविहीन एकः सृजस्यवस्यत्सि च लोकजातम् । स्वमायया तेन न लिप्यसे त्वं यत्स्वे मुखेऽजस्ररतोऽनवद्यः ॥ २॥ लीलां विधत्से गुणसंवृतस्त्वं प्रपन्नभक्तानुविधानहेतोः । नानावतारैः सुरमानुषाद्यैः प्रतीयसे ज्ञानिभिरेव नित्यम् ॥ ३॥ स्वांशेन लोकं सकलं विधाय तं बिभर्षि च…