बस-स्थानक पर आधा घंटा
बस-स्थानक, एक ऐसा स्थान जहाँ शहर की हलचल और भीड़भाड़ के बीच एक अलग ही दुनिया बसती है। यहाँ समय का अपना अलग ही ताल है, जहाँ मिनटों का हिसाब नहीं रखा जाता और हर पल को जी भरकर जिया जाता है। यहाँ लोगों का आना-जाना लगा रहता है, हर कोई अपने गंतव्य की ओर चल पड़ता है।
बस-स्थानक पर आधा घंटा बिताना भी एक अलग ही अनुभव होता है। यहाँ हर मिनट में कोई न कोई नया दृश्य देखने को मिलता है, कोई न कोई नई कहानी सुनने को मिलती है। यहाँ जीवन की एक झलक देखने को मिलती है, जिसमें खुशियाँ और ग़म, उम्मीदें और निराशाएँ, सब शामिल हैं।
एक बार मैं भी बस-स्थानक पर आधा घंटा बिताने का अवसर मिला। उस दिन मैं अपने गाँव से शहर आ रहा था। मेरी बस को आने में अभी आधे घंटे का समय था, इसलिए मैं बस-स्थानक पर ही घूमने लगा।
बस-स्थानक पर एक तरफ तो बसों का आना-जाना लगा हुआ था, दूसरी तरफ दुकानें थीं जहाँ लोग चाय-पानी और नाश्ता कर रहे थे। कुछ लोग अखबार पढ़ रहे थे, कुछ लोग अपने साथियों से बातें कर रहे थे, और कुछ लोग बस का इंतजार कर रहे थे।
मैं बस-स्थानक के एक कोने में बैठ गया और लोगों को देखने लगा। मैंने देखा कि एक महिला अपने छोटे बच्चे को दूध पिला रही थी, एक बुजुर्ग आदमी अपने पोते को कहानी सुना रहा था, और दो दोस्त एक दूसरे से मिलकर खुशी-खुशी बातें कर रहे थे।
मैं सोचने लगा कि इन लोगों के जीवन में क्या होगा? उनकी क्या उम्मीदें होंगी, उनके क्या सपने होंगे? क्या वे भी अपने जीवन में कुछ करना चाहते होंगे? क्या वे भी दुनिया में अपनी पहचान बनाना चाहते होंगे?
बस-स्थानक पर बैठकर लोगों को देखते हुए मुझे जीवन के बारे में बहुत कुछ सोचने का मौका मिला। मुझे एहसास हुआ कि जीवन बहुत छोटा है और इसे जी भरकर जिया जाना चाहिए। हमें हर पल को जीना चाहिए और खुश रहना चाहिए।
मेरे बस आने का समय हो गया था। मैं बस में चढ़ गया और गाँव की ओर चल पड़ा। लेकिन बस-स्थानक पर बिताया हुआ वह आधा घंटा मेरे मन में हमेशा के लिए बस गया।
आज भी जब मैं कभी बस-स्थानक जाता हूँ, तो मुझे वह आधा घंटा याद आ जाता है। मुझे लगता है कि उस आधे घंटे ने मुझे जीवन के बारे में बहुत कुछ सिखाया है।