एक लंबे इंतजार के बाद पुनर्जीवित होना संभव है

2016 के अक्टूबर महीने के शुरुआती दिनों की बात है। एक 14 साल की लड़की कैंसर की बीमारी से पीड़ित थी और मरने वाली थी, लेकिन मरने के बाद वह अपना शरीर दफनाना नहीं चाहती थी। इसलिये उसने एक ब्रिटिश जज को एक खत लिखा और कहा, “मैं केवल 14 वर्ष की हूं और मरना नहीं चाहती हूं। लेकिन मैं मरने वाली हूं। मैं और अधिक समय के लिए जीवित रहना चाहती हूं क्योंकि मुझे लगता है कि भविष्य में कैंसर का ईलाज अवश्य खोज लिया जायेगा, जो मुझे भी जीवित कर सकेगा।।। मेरे शरीर को कम तापमान युक्त जगह पर रखकर उसे संरक्षित किया जाये और मुझे फिर से ठीक होकर जीवित होने का एक मौका दिया जाये, भले ही वो सौ बर्षों के लिए ही क्यों ना हो।”

तो आखिर वह विकल्प क्या था, जिसकी वजह से उस लड़की को लगता था कि वह फिर से जीवित हो सकेगी। साधारण शब्दों में उसने खुद को बर्फ में जमा देने की इच्छा जाहिर की थी, जो देहांत के बाद कई लोगों के साथ किया जाता है।
कारण यह है कि मरने के बाद शवगृह में दाह-संस्कार अनुष्ठान जैसे कि, दफनाना, अंतिम संस्कार या ममीकरण के दौरान समय के साथ-साथ तेजी से शरीर भी नष्ट होने लगता है। ऐसे में भविष्य में उस शरीर के पुनरुद्धार की कोई संभावना बची नहीं रह पाती है। लेकिन वहीं दूसरी तरफ परिशीतन वातावरण में संरक्षित शरीर के साथ ऐसा कर पाना संभव है, खासकर जब इसे चिकित्सिय देखरेख में वैज्ञानिक तरीके से किया गया हो। यह मुश्किल और लंबी प्रक्रिया है और सुचारु रूप से करने के लिए, इसे मरने के तुरंत बाद शुरु कर देना चाहिए। मूलतया इसका अर्थ है कि इसमें शरीर के सारे रक्त को शरीर से बाहर निकाल लिया जाता है और उसकी जगह एंटीफ्रीजर और अन्य दूसरे रसायन डाले जाते हैं ताकि मरने के बाद रक्त और ऊत्तक थक्का न हों और शरीर का अंग सड़े नहीं। फिर इसे माईनस 130 डिग्री सेल्सियस तापमान में रख दिया जाता है जहां टैंक में द्रव नाट्रोजन भरा रहता है, जो तापमान को 196 डिग्री सेल्सियस से नीचे कभी नहीं जाने देता है।
यह प्रक्रिया काफी मंहगी है लेकिन इसके पीछे केवल एक ही सोच है कि शायद भविष्य में विज्ञान उन लाइलाज बीमारियों का कोई इलाज ढ़ूंढ़ ले और उन बीमारियों से पीड़ित व्यक्तियों को फिर से जीवन प्रदान कर सके। अधिकतर वैज्ञानिक इस अवधारणा को बकवास मानते हैं और उनका कहना है कि अब तक इस तरह की कोई भी तकनीक या सिद्धांत अस्तित्व में नहीं है। कोई भले ही यह बात मान सकता है कि किसी को फिर से जीवित किया जा सकता है लेकिन यह केवल एक झूठी आशा है जो वर्तमान विज्ञान के दायरे से बाहर है और निश्चित रूप से मृत ऊत्तक या बर्फ में संरक्षित शरीर के साथ ऐसा कर पाना असंभव है। वह सही भी हो सकते हैं लेकिन ऐसा कहने का मुख्य कारण यह है कि पिछले 50 वर्षों में, जब 1967 में शरीर को बर्फ मे संरक्षित करने की प्रक्रिया की शुरुआत हुई थी, उस वक्त से लेकर अबतक एक भी पुनर्जीवन का कोई सफल केस नहीं है।

हालांकि कुछ तथ्य इस बात की ओर भी इशारा करते हैं जिसमें 10,000 साल पुराने मैमथ बर्फ के नीचे दबे मिले थे और उन गहरी साइबेरियन बर्फ ने उनके शरीर को सुरक्षित रखा। उन मैमथों के डीनए का इस्तेमाल कर अंतराष्ट्रीय शोधकर्ताओं की पूरी टीम उसके क्लोंनिग के निर्माण पर गंभीरता से विचार कर रही है। हाल ही में चिकित्सा अनुसंधान के क्षेत्र में भी कुछ उल्लेखनीय कार्य हुए हैं। पिछले साल, जर्नल नेचर मैथड्स में प्रकाशित किया था कि हीडलबर्ग में मेडिकल और रिसर्च से संबंधित मैक्स प्लैंक इंस्टीट्युट ने एक ऐसे प्रोटोकॉल को विकसित किया है जिसमें एक ऐसे विलायक के उपयोग का वर्णन है, जिसमें एक चूहे के पूरे मस्तिष्क को उच्च सेलुलर गुणवत्ता के साथ संरक्षित रखा जा सकता है ताकि बाद में उसे इलेक्ट्रोमैग्नेटीकली स्कैन किया जा सके। इसका अर्थ यह है कि अगर दिमाग को स्कैन किया जा सकता है तो सैद्धांतिक रूप से इसे मापा जा सकता है और किसी कंप्यूटर पर अपलोड भी किया जा सकता है, ताकि भविष्य में भौतिक शरीर मौजूद नहीं होने पर इसे डिजिटल रूप में जीवित रखा जा सके। हालांकि तंत्रिका तंत्र के वैज्ञानिकों का कहना है कि यह केवल एक बनावट है और अगर यही बाकियों के साथ भी किया जाये तो इसका परिणाम भले ही एक नये व्यक्ति के रूप में होगा जो दिखेगा बिलकुल वैसा ही लेकिन उसकी सोच और यादें पिछली बातों को दोहरायेंगी जिसकी कोई उपयोगिता नहीं होगी।

उस लड़की की मौत 17 अक्टूबर को हो गई। हालांकि उसे किसी भी परिदृश्य में बचाया जाये, चाहे वो पुनर्जीवित करना हो, उसके क्लोन बनाए जाये या उसे डिजीटली अपलोड किया जाये, उसे वह जीवन पाने के लिए एक लंबा इंतजार करना है, चाहे इस दौरान उसकी बीमारी के इलाज का आविष्कार ही क्यों न हो जाये। लेकिन तब तक उसके इच्छित शब्दों के अनुसार वह ‘सौ वर्षों तक’ इंतजार करना चाहती है।

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