भगवान श्री राम की पिछली वंशावली क्या है ?

इस उत्तर को ध्यान से पढ़ें क्योंकि आज इनटरनेट पर श्रीराम के वंश के विषय मे जितने लेख उपलब्ध हैं उनमें से 99% गलत हैं। उन लेखों में पुरूरवा, नहुष और ययाति को श्रीराम का पूर्वज बताया गया है जो कि बिल्कुल गलत है। पुरूरवा, नहुष, ययाति इत्यादि चंद्रवंशी थे जबकि श्रीराम सूर्यवंशी। और ये गलती बहुत प्रतिष्ठित वेबसाइट्स ने भी की है।

बहुत शोध के पश्चात श्रीराम का वास्तविक वंश प्राप्त हुआ है जो आपके साथ साझा कर रहा हूँ।

  1. ब्रह्माजी से सम्पूर्ण सृष्टि का आरम्भ हुआ।
  2. ब्रह्मा के पुत्र मरीचि हुए जो सप्तर्षियों में से एक हैं।
  3. मरीचि ने कला से विवाह किया जिनसे उन्हें महान कश्यप पुत्र के रूप में प्राप्त हुए।
  4. कश्यप ने दक्षपुत्री अदिति से विवाह किया जिससे उन्हें पुत्र रूप में विवस्वान (सूर्य) प्राप्त हुए।
  5. विवस्वान के पुत्र वैवस्वत मनु हुए जो वर्तमान मन्वन्तर के मनु हैं।
  6. वैवस्वतमनु के दस पुत्र थे – इल, इक्ष्वाकु, कुशनाम, अरिष्ट, धृष्ट, नरिष्यन्त, करुष, महाबली, शर्याति और पृषध। इन सबसे अलग अलग वंश चले।
  7. इक्ष्वाकु के १०० पुत्र हुए जिनमे कुक्षि ज्येष्ठ थे। इनका एक नाम भरत भी था।
  8. कुक्षि के पुत्र का नाम विकुक्षि था।
  9. विकुक्षि के पुत्र बाण हुए।
  10. बाण के पुत्र का नाम ककुत्स्थ था।
  11. ककुत्स्थ के पुत्र अनेण हुए, इनका एक नाम सुयोधन भी था।
  12. अनरण्य से पृथु हुए।
  13. पृथु से विश्वगंधि का जन्म हुआ।
  14. विश्वगंधि के पुत्र हुए चंद्र
  15. चंद्र के पुत्र का नाम युवनाश्व था।
  16. युवनाश्व के पुत्र का नाम श्रावस्त था। इन्होने ने ही श्रावस्ती नगर की स्थापना की।
  17. श्रावस्त के पुत्र का नाम बृहदश्व था।
  18. बृहदश्व के पुत्र कुवलाश्व हुए।
  19. कुवलाश्व के पुत्र का नाम युवनाश्व था।
  20. युवनाश्व के पुत्र प्रसिद्ध मान्धाता हुए जिनका वध मथुरा के सम्राट लवणासुर ने किया। मान्धाता बहुत प्रतापी राजा हुए और इन्होने अपने राज्य का बहुत विस्तार किया और चंद्रवंशी यादवों से भी सम्बन्ध बढ़ाए।
  21. मान्धाता ने यादव सम्राट शशिबिन्दु की पुत्री बिन्दुमती से विवाह किया जिनसे इन्हे तीन प्रतापी पुत्र प्राप्त हुए – पुरुकुत्सअम्बरीष एवं मुचुकंद। अम्बरीष महान विष्णु भक्त हुए जिन्हे श्रीहरि ने अपना सुदर्शन चक्र दिया जिससे उन्होंने दुर्वासा का अभिमान भंग किया। मुचुकुन्द महान वीर थे जिन्होंने देवासुर संग्राम में इंद्र की सहायता की। तत्पश्चात इन्हे इंद्र ने लम्बी निद्रा का वरदान दिया और ये भी कहा कि जो कोई भी उनकी निद्रा तोड़ेगा वो भस्म हो जाएगा। फिर ये सतयुग से द्वापर तक सोते रहे। द्वापर में श्रीकृष्ण ने कालयवन द्वारा इन्हे जगा कर कालयवन का नाश किया।
  22. पुरुकुत्स के पुत्र का नाम धुन्धुमार था। वैसे तो इनका नाम कुवलयाश्व था किन्तु धुन्धु नामक राक्षस को मारने के कारण इनका नाम धुन्धुमार पड़ा।
  23. धुन्धुमार के पुत्र का नाम दृढश्रवा था।
  24. दृढश्रवा के पुत्र का नाम हर्यश्व था।
  25. हर्यश्व के पुत्र निकुम्भ हुए।
  26. निकुम्भ के पुत्र का नाम बहुलाश्व था।
  27. बहुलाश्व के पुत्र का नाम कृशाश्व था।
  28. कृशाश्व के पुत्र का नाम प्रसेनजित थे। ये जमदग्नि की पत्नी रेणुका के पिता और परशुराम के नाना थे।
  29. प्रसेनजित के पुत्र थे त्रयदस्यु
  30. त्रयदस्यु के पुत्र का नाम अनारण्य था। इनका वध रावण ने किया था जिस कारण इन्होने उसे श्राप दिया कि उसका वध उन्ही का कोई वंशज करेगा। तब इस श्राप के कारण इनके वंशज श्रीराम ने रावण का वध किया।
  31. अनारण्य के पुत्र का नाम पुषादाश्व था।
  32. पुषादाश्व के पुत्र का नाम त्रिबंधन था।
  33. त्रिबंधन के पुत्र का नाम सत्यव्रत था जो बाद में त्रिशंकु के नाम से प्रसिद्ध हुए। ये सशरीर स्वर्ग जाना चाहते थे तब महर्षि विश्वामित्र ने इनकी सहायता की। किन्तु इंद्र ने इन्हे स्वर्ग में प्रवेश नहीं करने दिया और वहाँ से धक्का दे दिया। तब विश्वामित्र ने गिरते हुए त्रिशंकु को बीच में ही रोक लिया और उसके लिए अपने तपोबल से एक नए स्वर्ग का निर्माण कर दिया।
  34. त्रिशंकु के पुत्र परम प्रतापी हरिश्चंद्र हुए जिनके समान सत्यवादी आज तक कोई और नहीं हुआ। इन्होने महर्षि विश्वामित्र को अपना सब कुछ दान कर दिया और बचे हुए कुछ स्वर्ण चुकाने के लिए स्वयं को अपनी पत्नी तारा और पुत्र रोहिताश्व को बेच दिया। जब रोहिताश्व की मृत्यु हो गयी तब भी इन्होने सत्य का मार्ग ना छोड़ा और अपनी पत्नी से कर माँगा। तब जैसे ही तारा अपनी साड़ी का आधा भाग फाड़ने को तैयार हुई, आकाशवाणी ने उन्हें ऐसा करने से रोक लिया और सभी देवताओं ने उनपर पुष्पवर्षा की।
  35. हरिश्चंद्र और तारा के पुत्र रोहिताश्व हुए।
  36. रोहिताश्व के पुत्र हरिताश्व हुए।
  37. हरिताश्व के पुत्र राजा चंप हुए जिनके नाम पर उनकी राजधानी का नाम चम्पानगरी पड़ा।
  38. चंप के पुत्र सुदेव हुए।
  39. सुदेव के पुत्र विजय हुए। वाल्मीकि ने इन्ही के शासनकाल में ऋषिपद प्राप्त किया।
  40. विजय के पुत्र का नाम वृक था।
  41. वृक के पुत्र बाहुक हुए। हैहयवंशी कर्त्यवीर्य अर्जुन (सहस्त्रार्जुन) ने इन्हे अपने राज्य से खदेड़ दिया था।
  42. बाहुक ने वैजन्ती नामक कन्या से विवाह किया जिससे इन्हे सगर नामक पुत्र की प्राप्ति हुई। सगर ने ही हैहयवंशी तालजंघ के सभी पुत्रों का वध किया था और अपना राज्य पुनः प्राप्त किया।
  43. सगर की तीन पत्नियां थी – सुमति, भद्रा और केशिनी जिनसे इन्हे ६०००० प्रतापी पुत्र प्राप्त हुए। केशिनी का पुत्र असमंज उनमे ज्येष्ठ था। कपिल मुनि ने श्राप देकर उनके ६०००० पुत्रों को भस्म कर दिया था। केवल असमंज का वंश आगे बढ़ा।
  44. असमंज ने अम्बुजाक्षी से विवाह किया जिससे उन्हें अंशुमान पुत्र के रूप में प्राप्त हुए। अंशुमान ने अपने पिता के भाइयों (सगर के ६०००० पुत्रों) को मुक्ति दिलाने के लिए जीवन भर तपस्या की और मृत्यु को प्राप्त हुए।
  45. अंशुमान के पुत्र दिलीप हुए। इन्होने भी अपने पिता अंशुमान की तपस्या जारी रखी और मृत्यु को प्राप्त हुए।
  46. दिलीप के पुत्र प्रसिद्ध भगीरथ हुए। इन्होने भी अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिए अपने पिता दिलीप की तपस्या जारी रखी और अंततः माता गंगा को धरती पर लाने में सफल हुए। इसी कारण गंगा को भागीरथी के नाम से भी जाना गया।
  47. भगीरथ के पुत्र श्रुत हुए।
  48. श्रुत के पुत्र नाभाग हुए।
  49. नाभाग के पुत्र का नाम सिन्धुद्वीप था।
  50. सिन्धुद्वीप के पुत्र का नाम अव्युतायु था।
  51. अव्युतायु के पुत्र का नाम था ऋतुपर्ण
  52. ऋतुपर्ण के सर्वकाम नामक पुत्र हुए।
  53. सर्वकाम के पुत्र प्रसिद्ध सुदास हुए।
  54. सुदास के पुत्र का नाम सौदास हुए जो आगे चलकर कल्माषपाद के नाम से प्रसिद्ध हुए। ये महर्षि वशिष्ठ के पुत्र ऋषि शक्ति के श्राप के कारण राक्षस बन गए और शक्ति सहित वशिष्ठ के सभी पुत्रों को खा गए। बाद में महर्षि वशिष्ठ ने इन्हे क्षमा कर दिया और इन्हे राक्षस योनि से मुक्ति दिलवाई।
  55. कल्माषपाद के पुत्र अश्मक हुए।
  56. अश्मक के पुत्र का नाम मूलका था। परशुराम की कृपा से इन्हे स्त्रियों की सुरक्षा प्राप्त थी और इसी कारण इनका एक नाम नारीकवच भी पड़ा।
  57. मूलका के पुत्र का नाम दशरथ था (ये श्रीराम के पिता दशरथ नहीं हैं)।
  58. दशरथ के पुत्र का नाम ऐद्विल था।
  59. ऐद्विल के पुत्र का नाम विश्वामसः था।
  60. विश्वामसः के पुत्र का नाम खट्वाङ्ग था।
  61. खट्वाङ्ग के पुत्र का नाम दिलीप था (ये अंशुमान के पुत्र दिलीप नहीं हैं)।
  62. दिलीप ने सुदक्षिणा से विवाह किया जिनसे उन्हें परमप्रतापी रघु प्राप्त हुए जिनके नाम से श्रीराम का कुल रघुकुल कहलाया। ये चक्रवर्ती सम्राट हुए। जब इनके अश्वमेघ यज्ञ का घोडा इंद्र ने चुरा लिया तो इन्होने इंद्र को भी परास्त किया। विश्वामित्र द्वारा १४ करोड़ स्वर्ण मुद्राएं मांगने पर इन्होने कुबेर से युद्ध कर उसे प्राप्त किया था। बाद में इन्होने विश्वजीत नामक महान यज्ञ कर सारी संपत्ति दान कर दी।
  63. रघु के पुत्र का नाम अज था।
  64. अज ने इंदुमती से विवाह किया जिनसे इन्हे दशरथ नामक प्रतापी पुत्र प्राप्त हुए। अज अपनी पत्नी इंदुमती से इतना प्रेम करते थे कि उनकी मृत्यु के पश्चात उन्होंने आत्महत्या कर ली।
  65. दशरथ की तीन रानियां थी – राजा सुकौशल और अमृतप्रभा की पुत्री कौशल्या, काशी की राजकुमारी सुमित्रा और कैकेय नरेश अश्वपति की कन्या कैकेयी। कौशल्या से इन्हे शांता नामक एक पुत्री हुई जिसे दशरथ के चचेरे भाई रोमपाद ने गोद ले लिया। बाद में शांता का विवाह विभाण्डक ऋषि के पुत्र ऋष्यश्रृंग से हुआ। इन्ही ऋष्यश्रृंग ने महाराज दशरथ का पुत्रकामेष्टि यज्ञ करवाया जिससे कौशल्या से श्रीराम, कैकेयी से भरत और सुमित्रा से लक्ष्मण एवं शत्रुघ्न का जन्म हुआ।
  66. श्रीराम ने महाराजा जनक की कन्या सीता से विवाह किया जिनसे उन्हें लव और कुश नाम के दो जुड़वाँ पुत्र प्राप्त हुए। भरत ने जनक के भाई कुशध्वज की पुत्री मांडवी से विवाह किया जिनसे उन्हें तक्ष और पुष्कल नामक दो पुत्र प्राप्त हुए। लक्ष्मण का विवाह जनक की कन्या उर्मिला से हुआ जिनसे उन्हें अंगद और चंद्रकेतु नामक दो पुत्र प्राप्त हुए। शत्रुघ्न का विवाह कुशध्वज की कन्या श्रुतकीर्ति से हुआ जिनसे उन्हें शत्रुघाती और सुबाहु नामक दो पुत्र प्राप्त हुए।

आशा है आपको जानकारी पसंद आई होगी। जय श्रीराम। 🚩

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