How Krishna saved Daupadri fro Dushasana?

द्रौपदी चीर हरण : कैसे बचाया कृष्ण ने?

सद्गुरु जग्गी वासुदेव

द्रौपदी चीर हरण : कैसे बचाया कृष्ण ने?

———–तब भगवान कृष्ण द्वारका में थे————–

जब कौरवों ने भरी सभा में द्रौपदी का चीर हरण करने की कोशिश की, उस समय कृष्ण वहां मौजूद नहीं थे। उन्हें इसकी जानकारी भी नहीं थी।

क्योंकि जब वह राजसूय यज्ञ में जाने वाले थे, तो एक राजा शाल्व, जो उनसे ईर्ष्या करता था, ने आकर द्वारका पर धावा बोल दिया। उसने अपने आदमियों के साथ मिलकर लोगों को मारा और घरों, पशुओं और हर चीज में आग लगा थी। जो यादव बचकर निकल पाए, वे पहाड़ों पर जंगलों में जाकर छिप गए। उस पर हद यह हो गई कि शाल्व ने कृष्ण के पिता वासुदेव का अपहरण कर लिया।जब कृष्ण वापस द्वारका पहुंचे, तो सारा शहर जल कर नष्ट हो चुका था और बचे हुए लोग पहाड़ों में छिपे हुए थे। जब उन्होंने कृष्ण को देखा, तो वे नीचे उतर आए। कृष्ण ने अपने समुदाय को फिर से संगठित और स्थापित किया, शहर का पुनर्निर्माण किया और अपने पुत्र को अपने अपहृत पिता को छुड़ाकर लाने के लिए भेजा। चूंकि वह इन चीजों में व्यस्त थे, तो उन्हें यह पता ही नहीं चला कि हस्तिनापुर में क्या चल रहा है।

अगर कृष्ण को द्रौपदी की दुर्दशा के बारे में पता तक नहीं था, तो उन्होंने उसकी रक्षा कैसे की? द्रौपदी की रक्षा का चमत्कार कैसे हुआ। इसका संबंध कृपा से है।

लोग लगातार मुझसे पूछते हैं – कुछ विनम्रता से, कुछ व्यंग्य से और कुछ आरोप लगाने वाले अंदाज में – ‘कृपा कैसे काम करती है?’ कृपा के काम करने के लिए जरूरी नहीं है कि आपके साथ जो हो रहा है, मुझे उसकी जानकारी हो। शांभवी महामुद्रा जैसी किसी आध्यात्मिक प्रक्रिया में दीक्षा के माध्यम से ऊर्जा का एक खास निवेश किया गया है, जो कृपा के रूप में काम करता है। अगर मैं इस बारे में जागरूक होना चाहूं कि किसी के साथ क्या हो रहा है, तो मैं जागरूक हो सकता हूं। मगर ज्यादातर समय, मैं जागरूक नहीं होना चाहता क्योंकि बहुत सारी चीजें एक साथ चल रही होती हैं। जो लोग ग्रहणशील हैं, उन्हीं के लिए कृपा काम करती है। जो लोग ग्रहणशील नहीं हैं, उन पर कृपा का असर नहीं होता।

ऐसे ही किसी संदर्भ में, एक बार उद्धव ने कृष्ण से पूछा, ‘मैंने कई बार देखा है कि आप एक दिव्य व्यक्ति हैं, यह बात संदेह से परे है। आपके अंदर बहुत से ऐसे गुण हैं, जो एक साधारण मनुष्य में नहीं हो सकते। मगर फिर ऐसा कैसे होता है कि लोगों के कष्ट में होते हुए भी आप चुटकी बजाकर उनकी परेशानियां हल नहीं कर सकते।’ कृष्ण ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘कोई भी तब तक चमत्कार नहीं कर सकता, जब तक कि सामने वाले के अंदर पूर्ण आस्था न हो। यहां तक कि महान महादेव भी चमत्कार नहीं कर सकते, जब तक कि आपके अंदर ग्रहणशीलता और विश्वास न हो। जब लोग ग्रहणशील नहीं होते, तो आप चमत्कारों की उम्मीद नहीं कर सकते।’

———–खुद को पूर्ण समर्पित करना होगा———–

एक सुंदर कहानी है: एक दिन कृष्ण दोपहर का भोजन कर रहे थे। सत्यभामा उन्हें भोजन परोस रही थीं। वह आधे भोजन में ही उठ खड़े हुए और बोले, ‘मेरा एक भक्त कष्ट में है, मुझे जाना है।’ वह हाथ धोकर चले गए। द्वार से ठीक पहले, वह अचानक रुके, पीछे मुड़े और वापस आ गए।सत्यभामा ने पूछा, ‘आपने यह कहते हुए अपना भोजन आधे में ही छोड़ दिया कि आपका भक्त कष्ट में है, मगर फिर आप लौट आए। क्या हुआ?’ कृष्ण बोले, ‘मेरा एक भक्त बंद आंखों से ‘कृष्ण, कृष्ण’ जप रहा था। एक भूखा बाघ उसकी ओर बढ़ रहा था। वह आदमी मारा जाता, इसलिए मुझे लगा कि मुझे उसको बचाना चाहिए। तभी मैं जा रहा था। मगर जब तक मैं द्वार तक पहुंचा, उस मूर्ख ने एक पत्थर उठा लिया था। इसलिए मैं वापस लौट आया।

’कृपा के काम करने के लिए, जो व्यक्ति कृपा का स्रोत है, उसे मानसिक तौर पर स्थिति की जानकारी होना जरूरी नहीं है। दीक्षा से ऊर्जा का जो निवेश किया गया है, वह अपने आप काम करता है। आपको बस उस उपहार को खोलना है, जो आपको मिला है। इस संबंध में चैतन्य महाप्रभु (16वीं सदी के प्रसिद्ध कृष्ण भक्त और वैष्णव भक्त) कृष्ण या किसी और से अधिक भाग्यशाली थे क्योंकि उन्होंने किसी और के मुकाबले लोगों में ज्यादा विश्वास पैदा किया। नतीजा यह हुआ कि बहुत सारी चीजें हुईं, जिन्होंने लोगों को रूपांतरित कर दिया। विश्वास वह नहीं है, जैसा लोग चमत्कार के बारे में सोचते हैं – उनका अपनी कल्पना पर काबू नहीं रहता। कृष्ण ने अपने जीवन काल में बहुत सारे लोगों में विश्वास पैदा किया, मगर फिर भी वह अपनी क्षमता के मुताबिक पर्याप्त विश्वास नहीं पैदा कर पाए। एक तरह से, मध्यम स्तर के महान लोगों ने इस संबंध में बेहतर काम किया क्योंकि वे ऐसे स्तर पर काम करते थे, जो लोगों को समझ में आता था। मगर वे लोगों को परम तत्व तक नहीं ले जा सकते थे।

————-कृपा अपने आप भी काम कर सकती है————

कृपा आपको तभी प्राप्त और उपलब्ध होती है, जब आप अपने भीतर जरूरी खुलापन पैदा करते हैं, जिसका मतलब है कि आपको खुद को एक ओर रखने के लिए तैयार रहना होगा। अगर आप ‘कृष्ण, कृष्ण’ कहते हैं, और पत्थर उठा लेते हैं, तो कृपा काम नहीं करती। इसी तरह, अगर आप ‘सद्गुरु, सद्गुरु’ कहते हैं और पत्थर उठा लेते हैं तो मेरे चाहने पर भी कृपा काम नहीं करेगी क्योंकि वह बहुत सूक्ष्म और गूढ़ होती है। जैसा कि मैंने पहले भी बताया कि ऐसा बिल्कुल भी जरूरी नहीं है कि जिसके जरिये कृपा काम कर रही है, उसे मानसिक तौर पर जानकारी हो कि क्या घटित हो रहा है। यही वजह है कि उस समय कृष्ण को द्रौपदी की दुर्दशा की जानकारी नहीं थी, फिर भी कृपा ने अपना काम किया।
krishna saves draupadi in mahabharat star plus

krishna saves draupadi song download

krishna saves draupadi honour

mahabharat krishna saves draupadi full episode
draupadi cheer haran story in hindi

dropadi cheer haran song manoj tiwari

draupadi in mahabharat

draupadi vastraharan

Leave a Comment

Dear Visitor,

We appreciate your support for our website. To continue providing you with free content, we rely on advertising revenue. However, it seems that you have an ad blocker enabled.

Please consider disabling your ad blocker for our site. Your support through ads helps us keep our content accessible to everyone. If you have any concerns about the ads you see, please let us know, and we’ll do our best to ensure a positive browsing experience.

Thank you for understanding and supporting our site.

Please disable your adblocker or whitelist this site!