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🌹 *श्री शाकंभरी देवीची आरती* 🌹 |
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दैत्यें सुरजन गांजित पडला दुष्काळ । |
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देखुनि दानव वधिसी सक्रोधें प्रबळ । |
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शाखा वटुनि पाळिसी विश्र्वप्रिय सकळ । |
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भक्ता संकटी पावसी जननी तात्काळ ॥ १ ॥ |
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जय देवी जय देवी जय शाकंभरी । |
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श्री वनशंकरी माये आदि विश्र्वंभरी ॥ धृ. ॥ |
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सद्भक्ति देवी तू सुर सर्वेश्र्वरी । |
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साठी शाखा तुज प्रिय षड्विध सांभारी । |
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तिळवे तंबिट कर्मठ द्वादश कोशिंबीरीं । |
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पापड सांडगे वाढिती हलवा परोपरी ॥ २ ॥ |
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जय देवी जय देवी जय शाकंभरी । |
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श्री वनशंकरी माये आदि विश्र्वंभरी ॥ धृ. ॥ |
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अंबे कर्दळि द्राक्षे नाना फळे जाण । |
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दधि घृत पय शर्करा लोणची नववर्ण । |
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कथिका चाकवत चुक्का मधुपूर्ण । |
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वाढिती पंचामृत, आले लिंबू लवण ॥ ३ ॥ |
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जय देवी जय देवी जय शाकंभरी । |
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श्री वनशंकरी माये आदि विश्र्वंभरी ॥ धृ. ॥ |
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बर्बूरे कडी वडे वडिया वरान्न । |
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सुगंध केशरी अन्न विचित्र चित्रान्न । |
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भक्ष्यभोज्य प्रियकर नाना पक्वान्न । |
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सुरार रायति वाढिती षड्रस परमान्न ॥ ४ ॥ |
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जय देवी जय देवी जय शाकंभरी । |
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श्री वनशंकरी माये आदि विश्र्वंभरी ॥ धृ. ॥ |
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पोळी सुगरे भरीत आणि वांगीभात । |
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पात्रीं वाढिती सर्वही अपूप नवनीत । |
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जीवन घेता भोजनी प्रसन्न भक्तातें । |
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प्रार्थुनि तांबूल देऊनि वंदी गुरुभक्त ॥ ४ ॥ |
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जय देवी जय देवी जय शाकंभरी । |
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श्री वनशंकरी माये आदि विश्र्वंभरी ॥ धृ. ॥ |