यह ऐतिहासिक घटना लोककथाओं और किंवदंतियों का एक हिस्सा बन चुकी है। कबीरदास जी के जीवन और मृत्यु को लेकर विभिन्न मत और कथाएँ प्रचलित हैं। परंपरागत कथा के अनुसार, जब कबीर का निधन हुआ, तब हिंदू और मुस्लिम अनुयायियों में उनके पार्थिव शरीर को लेकर विवाद हुआ। किंवदंती है कि जब चादर हटाई गई, तो वहाँ उनका शरीर नहीं बल्कि फूल पाए गए, जिन्हें हिंदू और मुस्लिम अनुयायियों ने आपस में बाँट लिया।
दूसरी ओर, कुछ कथाएँ यह भी कहती हैं कि कबीरदास जी को सिकंदर लोदी के आदेश पर यातनाएँ दी गईं, क्योंकि उन्होंने सामाजिक बुराइयों और धार्मिक आडंबरों के विरुद्ध कड़ा प्रचार किया था। यह कहना कि उन्हें हाथी के पैरों से कुचलवाया गया, ऐतिहासिक रूप से प्रमाणित नहीं है, लेकिन यह कथा जनमानस में विशेष स्थान रखती है।
“माली आवत देखिकर, कलियन करी पुकार।
फूले-फूले चुन लिए, काल्हि हमारी बार।।”
यह दोहा कबीर के आध्यात्मिक दृष्टिकोण को प्रकट करता है। वे मृत्यु को जीवन का स्वाभाविक अंत मानते थे और इस सत्य को अपने अनुयायियों को भी समझाने का प्रयास करते थे। उनका संदेश यह था कि संसार में कोई अमर नहीं है—हर किसी की बारी निश्चित है।
कबीर का व्यक्तित्व और उनके विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने उनके समय में थे। उन्होंने निर्भीकता से सामाजिक बुराइयों पर प्रहार किया और बिना किसी भेदभाव के भक्ति व मानवता का संदेश दिया।