
शक्ति की महिमा
आदिगुरु शंकराचार्य एक बार तर्क और शास्त्रार्थ के माध्यम से शक्ति मत का खंडन करने हेतु कश्मीर की यात्रा पर निकले। विद्वानों के मध्य उनकी अपूर्व वाग्मिता प्रसिद्ध थी, किंतु विधि का विधान कुछ और ही था। कश्मीर पहुँचते ही उनका शरीर अशक्त हो गया। उन्नत मस्तिष्क तो था, किंतु देह निर्बलता के भार से दब गई। वे एक वृक्ष के नीचे विश्राम करने लगे।
उसी समय, मार्ग से एक सरल-सी गोवालन सिर पर दही का पात्र लिए गुज़र रही थी। तपते हुए सूर्य के नीचे लेटे शंकराचार्य की देह में जलन थी, कंठ सूख रहा था। उन्होंने उस युवती को संकेत किया और क्षीण स्वर में कहा—
“देवि, मुझे थोड़ा दही दे दो, बड़ी प्यास लगी है।”
गोवालन ने एक क्षण आचार्य को देखा और फिर ठहाका लगाते हुए बोली—
“आचार्यवर, यदि दही चाहते हैं तो यहाँ तक आकर लीजिए।”
शंकराचार्य के अधरों पर हल्की-सी मुस्कान आई, परंतु दुर्बल शरीर में उठने का भी सामर्थ्य न था। वे बोले—
“बालिके, मुझमें इतनी भी शक्ति नहीं कि उठकर तुम्हारे पास आ सकूँ।”
यह सुनते ही गोवालन के नेत्रों में एक अनोखी चमक आई। वह गंभीर स्वर में बोली—
“तो फिर आप शक्ति का खंडन करने कहाँ निकले हैं, आचार्य? जब एक कदम उठाने के लिए भी शक्ति आवश्यक है, तब आप उसके अस्तित्व को अस्वीकार कैसे कर सकते हैं?”
शंकराचार्य के चित्त में यह वाक्य तीर के समान लगा। सहसा उनकी निद्रा टूट गई। उन्होंने गोवालन के स्वर में ब्रह्मांड की अनाहत नाद को सुना। यह कोई साधारण वाणी नहीं थी—यह स्वयं भगवती की वाणी थी!
क्षणभर में उनके समस्त संदेह नष्ट हो गए। जो भेद उनके मन में शिव और शक्ति को लेकर था, वह समाप्त हो गया। उन्होंने अनुभव किया कि शिव यदि अस्तित्व हैं, तो शक्ति उसकी गति है। शिव स्थिर हैं, तो भवानी उनकी चेतना। शिव सूर्य हैं, तो शक्ति उसकी किरणें। शिव फूल हैं, तो शक्ति उसकी सुगंध।
साक्षात भगवती के समक्ष उनके ज्ञान का अंतिम पर्दा हट चुका था। आचार्य नतमस्तक हो गए और उनके अधरों से निकला—
“गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानी!”
वही आत्मसमर्पण की वाणी, जो कालांतर में भवानी अष्टकम के रूप में प्रसिद्ध हुई। उस दिन शंकराचार्य ने स्वीकार किया कि शिव और शक्ति भिन्न नहीं, एक ही हैं। शक्ति के बिना शिव भी शून्य हैं, और शिव के बिना शक्ति भी अर्थहीन।