एक अपनी हिंदी है, जो इतनी सेकुलर हो चली है कि अगर आज कोई हिंदी वाला ‘हनुमान’ का नाम लेता, तो कम्युनल कहलाता। साहित्यिक बिरादरी से उसका तुरंत बायकॉट हो जाता। धिक्कारा जाता। शापग्रस्त होता। रूढ़िवादी माना जाता। उसका अब तक का लिखा हुआ कूड़ा हो जाता। पतित कहलाता। उसे इतना शर्मिदा किया जाता कि कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहता।
दूसरी ओर अंग्रेजी है, जिसके एक बड़े लेखक विक्रम सेठ ने ‘हनुमान चालीसा’ का अंग्रेजी में अनुवाद किया। अगर यही काम कोई हिंदी वाला करता, तो सेकुलर गिरोह मार डालता। कहता कि देखो, यह आरएसएस वाला है। यह सांप्रदायिक है। वह कम्युनल है। हिंदी होती ही कम्युनल है। हिंदीवाला मीन्स संघी! उसे साहित्य में न घुसने देना।
विक्रम सेठ साहसी हैं, जिन्होंने लेखकीय अनुभव से निकली एक सच बात कही। उन्होंने हनुमान चालीसा का अनुवाद करते हुए एक अच्छे अनुवादक की तरह जैसा अनुभव किया, वैसा कहा। उन्होंने यह भी कहा कि हनुमान चालीसा का अंग्रेजी में अनुवाद करना किसी मौलिक किताब को लिखने से कहीं ज्यादा कठिन काम था। इस बात के लिए अंग्रेजी में उन्हें किसी ने शर्मसार नहीं किया। उन्हें अपने अनुवाद-कर्म पर न मिथ्या गर्व था, न झूठी शर्म। वह एक बड़े लेखक की तरह अपने काम के बारे में बताते रहे।
यह दो भाषाओं के साहित्यिक वातावरण का फर्क है। अंग्रेजी ने दुनिया देखी है। दुनिया पर शासन किया है। अंग्रेजी में धर्म और सेकुलर का मसला पहले ही निपट चुका है, लेकिन हिंदी में यह अभी तक अटका है। अंग्रेजी में लेखक चर्च जाकर भी सेकुलर है, हिंदी में मंदिर गया, तो तुरंत कम्युनल मान लिया जाएगा। नई कविता के सबसे अधिक प्रयोगशील और साहसी कवि अगर कोई हुआ है, तो एक अज्ञेय ही हुए। पता नहीं किस मूड में उन्होंने एक बार ‘जय जानकी जीवन’ यात्रा की ठान ली। यात्रा भी कर डाली। इस ‘अपराध’ पर सेकुलर गिरोह ने उन्हें आज तक नहीं बख्शा। कम्युनल सिद्ध करके छोड़ा। इसी तरह, एक बार निर्मल वर्मा कुंभ के मेले में चले गए और जैसे ही वहां से रिपोर्ट लिखी, तो सेकुलर गिरोह तुरंत सक्रिय हो गया। उनको कम्युनल कर दिया गया।
अंग्रेजी अंदर और बाहर एक जैसी है। हिंदी में ‘अंदर की बात’ कुछ और है, ‘बाहर की’ कुछ और। हिंदी साहित्य का इतिहास लेखकों के धर्म, संप्रदाय और जाति की बात करता है, लेकिन आज का साहित्यकार इसे छिपाता फिरता है। छिपाना ही सेकुलर होना है।
हिंदी में बहुत कुछ अपने आप वर्जित मान लिया गया है। साहित्य में धर्म की बात करना मना है। देवी-देवताओं की बात करना साहित्य जगत में अघोषित रूप से निषिद्ध है। हिंदी साहित्य में सेकुलर कुछ इस तरह से तारी हुआ कि लेखक अपने ईश्वर का नाम लेते हुए भी अपराध महसूस करता है। हिंदी का ‘गॉड’ बिना उसे बताए ‘फेल’ कर गया है। लेकिन अंग्रेजी लेखक का गॉड फेल्ड होकर भी फेल नहीं है।
विक्रम सेठ ने हिंदी वाले के सामने नया मॉडल पेश किया है : अपने अनुवाद से उन्होंने कई बातें सिद्ध की हैं। पहली, वह अंग्रेजी के नामी लेखक भले हों, हनुमान चालीसा की ब्रजी-अवधी को अच्छी तरह जानते हैं। ऐसा व्यक्ति ही निधड़क होकर धार्मिक रचना में प्रवेश कर सकता है, जिसका अपने लेखन पर पूरा विश्वास हो।
इस कुटिल का मानना है हिंदी के हर लेखक ने बचपन में हनुमान चालीसा जरूर पढ़ा होगा। बहुतों को रटा हुआ होगा। बहुत सारे उसका पाठ चुपके-चुपके करते होंगे। अपना प्रस्ताव है कि हिंदी के लेखकों के बीच हनुमान चालीसा पाठ का कंपिटीशन कराया जाए। विक्रम सेठ को उसकी अध्यक्षता करने को कहा जाए। तभी हिंदी को उसकी पिशाच योनि से मुक्ति मिलेगी।
His Hindi, which has become so secular that if today the Hindi ‘Hanuman’ takes the name of the called communal. Boycott it immediately becomes the literary community. Are damned. Is damned. Considered conservative. He still gets written garbage. Called degenerate. It is embarrassing that so far does not show his face.
On the other hand, is English, which is a great writer Vikram Seth ‘Hanuman Chalisa’ translated into English. If that does not work with any Hindi, killed the secular gang. That look says, it is the RSS. It is communal. It is communal. There is a communal Hindi. Hindiwala unionist Means! Do not enter the literature.
Vikram Seth adventurer who turned out a really said writing experience. While translating the Hanuman Chalisa to feel like a good translator, said so. He also said that Hanuman Chalisa in English translation was working harder than ever to write an original book. He is not ashamed of the fact that in English. He was proud of his translation–work, not false, not false shame. He explains about his work as a writer are large.
It is the difference between the two languages, literary environment. English is seen by the world. The world is ruled. Has already resolved the issue of religion and secular in English, but it’s still stuck in Hindi. Secular and also the author of the English church, temple in Hindi, will be accepted immediately communal. Most of the new poetry and daring poet Pryogshil is no, then only one of unknowable. Do not know what mood he once Jai Janaki life decided to visit. Cast trip. The “crime” secular gang spared him till today. Mature communal left. Similarly, in the Kumbh Mela Verma moved and as the author of the report, the secular gang was immediately activated. They were communal.
English is the same inside and outside. In Hindi ‘inside story’ is something else, ‘out’ something. History of Hindi literature authors religion, creed and race does matter, but hides it walks writer today. Hide only be secular.
Assumes you have a lot of Hindi prohibited. It is forbidden to speak of religion in literature. To speak of gods and goddesses in the literary world by proxy is prohibited. Hindi literature was filled with something like that in the secular name of God, the author feels the guilt. The Hindi god without informing him failed back. English author and the failure is not God but failed.
Hindi Vikram Seth, who is the new model: his translation of the many things that are proven. First, even if the English are renowned author, Hanuman Chalisa are well aware of the Brji–period. A person can only enter Niddk the religious composition, which is faith in your writing.
The crooked believe Hindi Hanuman Chalisa every author must be read as a child. Many will be rhetorical. A lot has to do his homework on the quiet. Among the authors of a proposal that Hindi should be Kanpitishn Hanuman Chalisa text. Vikram Seth asked to preside. Hindi only by his vampire yoni.