श्री पितर चालीसा – Shree Pitar Chalisa – pitra chalisa in Hindi
Shree Pitar Chalisa
pitar ji ki aarti
दोहा – Doha
हे पितरेश्वर आपको दे दियो आशीर्वाद, He Pitareshwar Aapko De Diyo Aashirvad|
चरणाशीश नवा दियो रखदो सिर पर हाथ। Charanashish nava diyo rakh dosir par Hath|
सबसे पहले गणपत पाछे घर का देव मनावा जी। Sabase Pahle Ganpat Pachhe ghar ka dev manava ji|
हे पितरेश्वर दया राखियो, करियो मन की चाया जी।। He pitareshwar daya rakhiyo, kariyo man chaya ji||
चौपाई Chaupai
पितरेश्वर करो मार्ग उजागर, चरण रज की मुक्ति सागर। Pitareshwar karo marg ujagar, charan raj ko mukti sagar |
परम उपकार पित्तरेश्वर कीन्हा, मनुष्य योणि में जन्म दीन्हा। Param upkar pitareshwar kinha, manushya yoni me janma dinha |
मातृ-पितृ देव मन जो भावे, सोई अमित जीवन फल पावे। Matru-Pitru dev man jo bhave, soi amit jeevan fal pave |
जै-जै-जै पित्तर जी साईं, पितृ ऋण बिन मुक्ति नाहिं। jai-jai-jai pittar ji sai, pitru roon bin mukti naahi ||
चारों ओर प्रताप तुम्हारा, संकट में तेरा ही सहारा। charon or pratap tumhara, sankat me tera hi sahara |
नारायण आधार सृष्टि का, पित्तरजी अंश उसी दृष्टि का। Narayan Aadhar Srushti ka, Pittarji Ansh usi drushti ka |
प्रथम पूजन प्रभु आज्ञा सुनाते, भाग्य द्वार आप ही खुलवाते। Pratham poojan prabhu adnya sunate, bhagya dvar aap hi khulavate |
झुंझनू में दरबार है साजे, सब देवों संग आप विराजे। Jhoonjhanu me darbar hai saje, sab devon sang aap Viraje ||
प्रसन्न होय मनवांछित फल दीन्हा, कुपित होय बुद्धि हर लीन्हा। Pasanna hoy manvanchhit fal dinha, kupit hoy buddhi har linha|
पित्तर महिमा सबसे न्यारी, जिसका गुणगावे नर नारी। Pittar Mahima sabase nyari, jisaka gungave nar nari |
तीन मण्ड में आप बिराजे, बसु रुद्र आदित्य में साजे। teen mand me aap biraje, basu rudra aaditya me saaje |
नाथ सकल संपदा तुम्हारी, मैं सेवक समेत सुत नारी। Naath sakal sampada tumhari, mai sevak samet sut nari |
छप्पन भोग नहीं हैं भाते, शुद्ध जल से ही तृप्त हो जाते। Chhappan bhog nahi hai bhaate, shuddha jal se hi trupa ho jate|
तुम्हारे भजन परम हितकारी, छोटे बड़े सभी अधिकारी। Tumhare bhajan Param hitakari, chhote bade sabhi adhikari |
भानु उदय संग आप पुजावै, पांच अँजुलि जल रिझावे। Bhanu Uday sang aap pujavai, panch anjuli jal rijhave |
ध्वज पताका मण्ड पे है साजे, अखण्ड ज्योति में आप विराजे। dhvaj pataka mand pe hai saje, akhand jyoti me aap viraje |
सदियों पुरानी ज्योति तुम्हारी, धन्य हुई जन्म भूमि हमारी। Sadiyo purani jyoti tumhari, dhanya hui janma bhoomi hamari |
शहीद हमारे यहाँ पुजाते, मातृ भक्ति संदेश सुनाते। Shaheed hamare yahan pujate, matru bhakti sandesh sunate|
जगत पित्तरो सिद्धान्त हमारा, धर्म जाति का नहीं है नारा।jagat pittaro sinddhant hamara, dharma jati ka nahi hai nara|
हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सब पूजे पित्तर भाई। hindu, muslim, sikh, isai sab puje pittar bhai||
हिन्दू वंश वृक्ष है हमारा, जान से ज्यादा हमको प्यारा। hindu vansh vruksh hai hamara, jan se jyada hamko pyara|
गंगा ये मरुप्रदेश की, पितृ तर्पण अनिवार्य परिवेश की। ganga ye marupradesh ki, pitru tarpan aniuvarya parivesh ki|
बन्धु छोड़ ना इनके चरणाँ, इन्हीं की कृपा से मिले प्रभु शरणा। bandhu chhod na inake charana, inhi ki krupa se mile sharana |
चौदस को जागरण करवाते, अमावस को हम धोक लगाते। chaudas ko jagaran karvate, amaavas ko ham dhok lagate|
जात जडूला सभी मनाते, नान्दीमुख श्राद्ध सभी करवाते। Jat jadula sabhi manate, naandimukh shraddha sabhi karavate|
धन्य जन्म भूमि का वो फूल है, जिसे पितृ मण्डल की मिली धूल है। dhnya janma bhoomi ka vo phool hai, jise pitru mandal ki mili dhul hai |
श्री पित्तर जी भक्त हितकारी, सुन लीजे प्रभु अरज हमारी। Shree pittar ji bhakt hitakari, sun lije prabhu araj hamari|
निशिदिन ध्यान धरे जो कोई, ता सम भक्त और नहीं कोई।nishidin dhyan dhare jo koi, ta sam bhakt aur nahi koi |
तुम अनाथ के नाथ सहाई, दीनन के हो तुम सदा सहाई। Tum anath ke nath sahai, deenan ke ho tum sada sahai|
चारिक वेद प्रभु के साखी, तुम भक्तन की लज्जा राखी। Charik ved prabhu ke sakhi, tu bhaktan ki lajja rakhi|
नाम तुम्हारो लेत जो कोई, ता सम धन्य और नहीं कोई। naam tumharo let jo koi, ta sam dhanya aur nahi koi|
जो तुम्हारे नित पाँव पलोटत, नवों सिद्धि चरणा में लोटत। jo tumhare nit pav palotat, navo siddhi charana me lotat |
सिद्धि तुम्हारी सब मंगलकारी, जो तुम पे जावे बलिहारी। Siddhi tumhari sab mangalkari, jo tum pe jave balihari|
जो तुम्हारे चरणा चित्त लावे, ताकी मुक्ति अवसी हो जावे। jo tumhare charana chitta lave, taki mukti avasi ho jave|
सत्य भजन तुम्हारो जो गावे, सो निश्चय चारों फल पावे। Satya bhajan tumharo jo gave, so nishchay charo phal pave|
तुमहिं देव कुलदेव हमारे, तुम्हीं गुरुदेव प्राण से प्यारे। tumahi dev kuldev hamare, tumhi gurudev pran pyare |
सत्य आस मन में जो होई, मनवांछित फल पावें सोई। Satya aas man me jo hoi, manvanchhit phal pave soi|
तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई, शेष सहस्र मुख सके न गाई। Tumhari mahima buddhi badai, shesh sahastra mukh sake na gai|
मैं अतिदीन मलीन दुखारी, करहुं कौन विधि विनय तुम्हारी। mai atideen maleen dukharee, karahu kaun vidhi vinaytumhari|
अब पित्तर जी दया दीन पर कीजै, अपनी भक्ति शक्ति कछु दीजै। Ab pittar ji daya deen par kijai, apani bhakti shakti kachhu deejai |
दोहा Doha
पित्तरों को स्थान दो, तीरथ और स्वयं ग्राम। Pittaro ko sthan do, teerath aur swayam gram|
श्रद्धा सुमन चढ़ें वहां, पूरण हो सब काम। Shraddha suman chadhe vaha, puran ho sab kam|
झुंझनू धाम विराजे हैं, पित्तर हमारे महान। Jhunjhanu dham viraje hai, pittar hamare mahan|
दर्शन से जीवन सफल हो, पूजे सकल जहान।। darshan se jeevan safal ho, pooje sakal jahan ||
जीवन सफल जो चाहिए, चले झुंझनू धाम। jeevan safal jo chahiye, chale Jhunjhanu dham|
पित्तर चरण की धूल ले, हो जीवन सफल महान।। Pittar charan ki dhool le, ho jeevan safal mahan ||
पितृ-दोष कि शांति के उपाय : –
सामान्य उपायों में षोडश पिंड दान ,सर्प पूजा ,ब्राह्मण को गौ -दान ,कन्या -दान,कुआं ,बावड़ी ,तालाब आदि बनवाना ,मंदिर प्रांगण में पीपल ,बड़(बरगद) आदि देव वृक्ष लगवाना एवं विष्णु मन्त्रों का जाप आदि करना ,प्रेत श्राप को दूर करने के लिए श्रीमद्द्भागवत का पाठ करना चाहिए |
वेदों और पुराणों में पितरों की संतुष्टि के लिए मंत्र ,स्तोत्र एवं सूक्तों का वर्णन है , जिसके नित्य पठन से किसी भी प्रकार की पितृ बाधा क्यों ना हो ,शांत हो जाती है |
अगर नित्य पठन संभव ना हो , तो कम से कम प्रत्येक माह की अमावस्या और आश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या अर्थात पितृपक्ष में अवश्य करना चाहिए |
वैसे तो कुंडली में किस प्रकार का पितृ दोष है उस पितृ दोष के प्रकार के हिसाब से पितृदोष शांति करवाना अच्छा होता है ,लेकिन कुछ ऐसे सरल सामान्य उपाय भी हैं, जिनको करने से पितृदोष शांत हो जाता है ,ये उपाय निम्नलिखित हैं :—-
सामान्य उपाय :
१ .ब्रह्म पुराण Brahma Puran(२२०/१४३ )में पितृ गायत्री मंत्र दिया गया है ,इस मंत्र कि प्रतिदिन १ माला या अधिक जाप करने से पितृ दोष में अवश्य लाभ होता है|
मंत्र : देवताभ्यः पित्रभ्यश्च महा योगिभ्य एव च | नमः स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नमः || “
२. मार्कंडेय पुराण (९४/३ -१३ )में वर्णित इस चमत्कारी पितृ स्तोत्र का नियमित पाठ करने से भी पितृ प्रसन्न होकर स्तुतिकर्ता मनोकामना कि पूर्ती करते हैं ———–
pitRi-doSh ki shaa.nti ke upaay aH –
saamaany upaayo.n me.n ShoDash pi.nD daan ,sarp poojaa ,braahmaN ko gau -daan ,kanyaa -daan,kuaa.n ,baavड़ee ,taalaab aadi banavaanaa ,m.ndir praa.ngaN me.n peepal ,b .D(baragad) aadi dev vRikSh lagavaanaa ev.n viShNu mantro.n kaa jaap aadi karanaa ,pret shraap ko door karane ke lie shreemaddbhaagavat kaa paaTh karanaa chaahie |
vedo.n aur puraaNo.n me.n pitaro.n kee s.ntuShTi ke lie m.ntr ,stotr ev.n sookto.n kaa varNan hai , jisake nity paThan se kisee bhee prakaar kee pitRi baadhaa kyo.n naa ho ,shaa.nt ho jaatee hai |
agar nity paThan s.nbhav naa ho , to kam se kam pratyek maah kee amaavasyaa aur aashvin kRiShN pakSh amaavasyaa arthaat pitRipakSh me.n avashy karanaa chaahie |
vaise to ku.nDalee me.n kis prakaar kaa pitRi doSh hai us pitRi doSh ke prakaar ke hisaab se pitRidoSh shaa.nti karavaanaa achchhaa hotaa hai ,lekin kuchh aise saral saamaany upaay bhee hai.n, jinako karane se pitRidoSh shaa.nt ho jaataa hai ,ye upaay nimnalikhit hai.n aH—-
saamaany upaay aH
1 .brahm puraaN Brahma Puran(220/143 )me.n pitRi gaayatree m.ntr diyaa gayaa hai ,is m.ntr ki pratidin 1 maalaa yaa adhik jaap karane se pitRi doSh me.n avashy laabh hotaa hai|
m.ntr aH devataabhyaH pitrabhyashch mahaa yogibhy ev ch | namaH svaahaayai svadhaayai nityamev namo namaH || “
2. maark.nDey puraaN (94/3 -13 )me.n varNit is chamatkaaree pitRi stotr kaa niyamit paaTh karane se bhee pitRi prasann hokar stutikartaa manokaamanaa ki poortee karate hai.n
पुराणोक्त पितृ -स्तोत्र :
पित्रृस्तोत्र
मार्कण्डेय उवाच
एवं तु स्तुवतस्तस्य तेजसो राशिरुच्छ्रितः ।
प्रादुर्बभूव सहसा गगनव्याप्तिकारकः ॥ ३७ ॥
तद् दृष्ट्वा सुमहत्तेजः समाच्छाद्य स्थितं जगत् ।
जानुभ्यामवनीं गत्वा रुचिः स्तोत्रमिदं जगौ ॥ ३८ ॥
रुचिरुवाच
अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम् ।
नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम् ॥ १ ॥
इद्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा ।
सप्तर्षीणां तथान्येषां तान्नमस्यामि कामदान् ॥ २ ॥
मन्वादीनां च नेतारः सूर्याचन्द्रमसोस्तथा ।
तान्नमस्याम्यहं सर्वान् पितृनप्युदधावपि ॥ ३ ॥
नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा ।
द्दावापृथिव्योश्र्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलिः ॥ ४ ॥
प्रजापतेः कश्यपाय सोमाय वरुणाय च ।
योगेश्र्वरेभ्यश्र्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलिः ॥ ५ ॥
नमो गणेभ्यः सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु ।
स्वायम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे ॥ ६ ॥
सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा ।
नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम् ॥ ७ ॥
अग्निरुपांस्तथैवान्यात्रमस्यामि पितृनहम् ।
अग्निसोममयं विश्र्वं यत एतदशेषतः ॥ ८ ॥
ये च तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्निमूर्तयः ।
जगत्स्वरुपिणश्र्चैव तथा ब्रह्मस्वरुपिणः ॥ ९ ॥
तेभ्योsखिलेभ्यो योगिभ्यः पितृभ्यो यतमानसः ।
नमो नमो नमस्तेsतु प्रसीदन्तु स्वधाभुजः ॥ १० ॥
मार्कण्डेय उवाच
एवं स्तुतास्ततस्तेन तेजसो मुनिसत्तमाः ।
निश्र्चक्रमुस्ते पितरो भासयन्तो दिशो दश ॥ ११ ॥
निवेदनं च यत्तेन पुष्पगन्धानुलेपनम् ।
तद्भूषितानथ स तान् ददृशे पुरतः स्थितान् ॥ १२ ॥
प्रणिपत्य रुचिर्भक्त्या पुनरेव कृताञ्जलिः ।
नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यमित्याह पृथगादृतः ॥ १३ ॥
॥ इति श्री गरुड पुराणे रुचिकृतं पित्रृस्तोत्रं संपूर्णम् ॥
अर्थ:
रूचि बोले – जो सबके द्वारा पूजित, अमूर्त, अत्यन्त तेजस्वी, ध्यानी तथा दिव्यदृष्टि सम्पन्न हैं, उन पितरों को मैं सदा नमस्कार करता हूँ।
जो इन्द्र आदि देवताओं, दक्ष, मारीच, सप्तर्षियों तथा दूसरों के भी नेता हैं, कामना की पूर्ति करने वाले उन पितरो को मैं प्रणाम करता हूँ।
जो मनु आदि राजर्षियों, मुनिश्वरों तथा सूर्य और चन्द्रमा के भी नायक हैं, उन समस्त पितरों को मैं जल और समुद्र में भी नमस्कार करता हूँ।
नक्षत्रों, ग्रहों, वायु, अग्नि, आकाश और द्युलोक तथा पृथ्वी के भी जो नेता हैं, उन पितरों को मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ।
जो देवर्षियों के जन्मदाता, समस्त लोकों द्वारा वन्दित तथा सदा अक्षय फल के दाता हैं, उन पितरों को मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ।
प्रजापति, कश्यप, सोम, वरूण तथा योगेश्वरों के रूप में स्थित पितरों को सदा हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ।
सातों लोकों में स्थित सात पितृगणों को नमस्कार है। मैं योगदृष्टिसम्पन्न स्वयम्भू ब्रह्माजी को प्रणाम करता हूँ।
चन्द्रमा के आधार पर प्रतिष्ठित तथा योगमूर्तिधारी पितृगणों को मैं प्रणाम करता हूँ। साथ ही सम्पूर्ण जगत् के पिता सोम को नमस्कार करता हूँ।
अग्निस्वरूप अन्य पितरों को मैं प्रणाम करता हूँ, क्योंकि यह सम्पूर्ण जगत् अग्नि और सोममय है।
जो पितर तेज में स्थित हैं, जो ये चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि के रूप में दृष्टिगोचर होते हैं तथा जो जगत्स्वरूप एवं ब्रह्मस्वरूप हैं, उन सम्पूर्ण योगी पितरो को मैं एकाग्रचित्त होकर प्रणाम करता हूँ। उन्हें बारम्बार नमस्कार है। वे स्वधाभोजी पितर मुझपर प्रसन्न हों।
विशेष – मार्कण्डेयपुराण में महात्मा रूचि द्वारा की गयी पितरों की यह स्तुति ‘पितृस्तोत्र’ कहलाता है। पितरों की प्रसन्नता की प्राप्ति के लिये इस स्तोत्र का पाठ किया जाता है। इस स्तोत्र की बड़ी महिमा है। श्राद्ध आदि के अवसरों पर ब्राह्मणों के भोजन के समय भी इसका पाठ करने-कराने का विधान है।
३.भगवान भोलेनाथ की तस्वीर या प्रतिमा के समक्ष बैठ कर या घर में ही भगवान भोलेनाथ का ध्यान कर निम्न मंत्र की एक माला नित्य जाप करने से समस्त प्रकार के पितृ- दोष संकट बाधा आदि शांत होकर शुभत्व की प्राप्ति होती है |मंत्र जाप प्रातः या सायंकाल कभी भी कर सकते हैं : मंत्र : “ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय च धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात | ”
४.अमावस्या को पितरों के निमित्त पवित्रता पूर्वक बनाया गया भोजन तथा चावल बूरा ,घी एवं एक रोटी गाय को खिलाने से पितृ दोष शांत होता है |
५ . अपने माता -पिता ,बुजुर्गों का सम्मान,सभी स्त्री कुल का आदर /सम्मान करने और उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति करते रहने से पितर हमेशा प्रसन्न रहते हैं |
६ . पितृ दोष जनित संतान कष्ट को दूर करने के लिए “हरिवंश पुराण ” का श्रवण करें या स्वयं नियमित रूप से पाठ करें |
७ . प्रतिदिन दुर्गा सप्तशती या सुन्दर काण्ड का पाठ करने से भी इस दोष में कमी आती है |
८.सूर्य पिता है अतः ताम्बे के लोटे में जल भर कर ,उसमें लाल फूल ,लाल चन्दन का चूरा ,रोली आदि डाल कर सूर्य देव को अर्घ्य देकर ११ बार “ॐ घृणि सूर्याय नमः ” मंत्र का जाप करने से पितरों की प्रसन्नता एवं उनकी ऊर्ध्व गति होती है |
९. अमावस्या वाले दिन अवश्य अपने पूर्वजों के नाम दुग्ध ,चीनी ,सफ़ेद कपडा ,दक्षिणा आदि किसी मंदिर में अथवा किसी योग्य ब्राह्मण को दान करना चाहिए |
१० .पितृ पक्ष में पीपल की परिक्रमा अवश्य करें | अगर १०८ परिक्रमा लगाई जाएँ ,तो पितृ दोष अवश्य दूर होगा |
विशिष्ट उपाय :
१.किसी मंदिर के परिसर में पीपल अथवा बड़ का वृक्ष लगाएं और रोज़ उसमें जल डालें ,उसकी देख -भाल करें ,जैसे-जैसे वृक्ष फलता -फूलता जाएगा,पितृ -दोष दूर होता जाएगा,क्योकि इन वृक्षों पर ही सारे देवी -देवता ,इतर -योनियाँ ,पितर आदि निवास करते हैं |
२. यदि आपने किसी का हक छीना है,या किसी मजबूर व्यक्ति की धन संपत्ति का हरण किया है,तो उसका हक या संपत्ति उसको अवश्य लौटा दें |
३.पितृ दोष से पीड़ित व्यक्ति को किसी भी एक अमावस्या से लेकर दूसरी अमावस्या तक अर्थात एक माह तक किसी पीपल के वृक्ष के नीचे सूर्योदय काल में एक शुद्ध घी का दीपक लगाना चाहिए,ये क्रम टूटना नहीं चाहिए |
एक माह बीतने पर जो अमावस्या आये उस दिन एक प्रयोग और करें :–
इसके लिए किसी देसी गाय या दूध देने वाली गाय का थोडा सा गौ -मूत्र प्राप्त करें|उसे थोड़े एनी जल में मिलकर इस जल को पीपल वृक्ष की जड़ों में डाल दें |इसके बाद पीपल वृक्ष के नीचे ५ अगरबत्ती ,एक नारियल और शुद्ध घी का दीपक लगाकर अपने पूर्वजों से श्रद्धा पूर्वक अपने कल्याण की कामना करें,और घर आकर उसी दिन दोपहर में कुछ गरीबों को भोजन करा दें |ऐसा करने पर पितृ दोष शांत हो जायेगा|
४ .घर में कुआं हो या पीने का पानी रखने की जगह हो ,उस जगह की शुद्धता का विशेष ध्यान रखें,क्योंके ये पितृ स्थान माना जाता है | इसके अलावा पशुओं के लिए पीने का पानी भरवाने तथा प्याऊ लगवाने अथवा आवारा कुत्तों को जलेबी खिलाने से भी पितृ दोष शांत होता है|
५ . अगर पितृ दोष के कारण अत्यधिक परेशानी हो,संतान हानि हो या संतान को कष्ट हो तो किसी शुभ समय अपने पितरों को प्रणाम कर उनसे प्रण होने की प्रार्थना करें और अपने dwara जाने-अनजाने में किये गए अपराध / उपेक्षा के लिए क्षमा याचना करें ,फिर घर में श्रीमदभागवद का यथा विधि पाठ कराएं,इस संकल्प ले साथ की इसका पूर्ण फल पितरों को प्राप्त हो |ऐसा करने से पितर अत्यंत प्रसन्न होते हैं ,क्योंके उनकी मुक्ति का मार्ग आपने प्रशस्त किया होता है|
६. पितृ दोष की शांति हेतु ये उपाय बहुत ही अनुभूत और अचूक फल देने वाला देखा गया है,वोह ये कि- किसी गरीब की कन्या के विवाह में गुप्त रूप से अथवा प्रत्यक्ष रूप से आर्थिक सहयोग करना |(लेकिन ये सहयोग पूरे दिल से होना चाहिए ,केवल दिखावे या अपनी बढ़ाई कराने के लिए नहीं )|इस से पितर अत्यंत प्रसन्न होते हैं ,क्योंकि इसके परिणाम स्वरुप मिलने वाले पुण्य फल से पितरों को बल और तेज़ मिलता है ,जिस से वह ऊर्ध्व लोकों की ओरगति करते हुए पुण्य लोकों को प्राप्त होते हैं.|
७. अगर किसी विशेष कामना को लेकर किसी परिजन की आत्मा पितृ दोष उत्पन्न करती है तो तो ऐसी स्थिति में मोह को त्याग कर उसकी सदगति के लिए “गजेन्द्र मोक्ष स्तोत्र ” का पाठ करना चाहिए.|
८.पितृ दोष दूर करने का अत्यंत सरल उपाय : इसके लिए सम्बंधित व्यक्ति को अपने घर के वायव्य कोण (N -W )में नित्य सरसों का तेल में बराबर मात्रा में अगर का तेल मिलाकर दीपक पूरे पितृ पक्ष में नित्य लगाना चाहिए+दिया पीतल का हो तो ज्यादा अच्छा है ,दीपक कम से कम १० मिनट नित्य जलना आवश्यक है लाभ प्राप्ति के लिए |
इन उपायों के अतिरिक्त वर्ष की प्रत्येक अमावस्या को दोपहर के समय गूगल की धूनी पूरे घर में सब जगह घुमाएं ,शाम को आंध्र होने के बाद पितरों के निमित्त शुद्ध भोजन बनाकर एक दोने में साड़ी सामग्री रख कर किसी बबूल के वृक्ष अथवा पीपल या बड़ किजद में रख कर आ जाएँ,पीछे मुड़कर न देखें.|नित्य प्रति घर में देसी कपूर जाया करें|ये कुछ ऐसे उपाय हैं,जो सरल भी हैं और प्रभावी भी,और हर कोई सरलता से इन्हें कर पितृ दोषों से मुक्ति पा सकता है|लेकिन किसी भी प्रयोग की सफलता आपकी पितरों के प्रति श्रद्धा के ऊपर निर्बर करती है|आप सदा खुश रहे,सुख समृद्धि में वृद्धि हो,इस कामना के साथ ……….
Pitru Stotra
पित्रृस्तोत्र
pitar,
pitar ji maharaj,
pitar chalisa,
pitar wiki,
pitar en ingles,
pitar mos,
pitar ji ki aarti,
pitar ji bhajan,
pitar spanish,
pitra chalisa
Please convert the Pitar Chalisa in Romanised so that atleast we can read and learn
We thank you for your help in converting the devangri text in Roman Hindi. I would also like to request please also convert the rest of the text “Sharadh vidhi” so that we can learn that vidhi as well
We are really very glad to find this site quite useful for Pitri Pooja however if you convert all the rest of the text in Roman so that we can read all the things including the text written in sanskrit