ब्रह्मचिंतन
ब्रह्मचिंतन जे वासुदेवाख्य अव्यय। तें परब्रह्म मीच होय । ऐसा जयाचा निश्चय तो। मुक्त होय अन्य बद्ध ।।१ ।। मींच परब्रह्म असे। ब्रह्माहून वेगळा नसे ब्राह्मणें कीजे उपासना असे। ब्रह्मभाव धरून।।२।। मीच परब्रह्म निश्चित। अबाध्य असंग चिद्रुप निश्चित। प्रयत्नानें असें चिंतीत। राहता मुक्त होतसे।।३।। जें सर्वोपाधिशून्य। जे निरंतर चैतन्य। तें मी ब्रह्म न अन्य। वर्णाश्रम…