These 10 tendencies make you like dead

 

ये 10 वृत्तियां बना देती हैं आपको मृत समान

 

1. मनुष्य जीवन नियमों के पालन से सुखी तथा सरल बन जाता है। जो व्यक्ति नियम के पालन में होने वाले आरम्भिक कष्ट पर विजय प्राप्त करके उन्हें साधना में परिवर्तित कर लेते हैं वो जीवन भर आनन्द का अनुभव करते हैं।

 

2. इस लेख में हम कुछ ऐसी वृत्तियों के विषय के बारे में विचार करेंगे जो किसी भी पुरुष या स्त्री को मृत समान बना सकती हैं। ये वृत्तियां जीवन में ना पालें तो जीवन सुखमय रहता है।

3. कामवासना मानवीय जीवन का एक सहज स्वभाव है परन्तु इस वृत्ति के अधीन जो व्यक्ति अत्यन्त भोग-विलास में पड़ जाता है वो मृत के समान ही है।

4. निःसंदेह अपना मार्ग स्वयं निकालने वाला ही पथ प्रदर्शक बनता है पर जो व्यक्ति संसार की हर बात में नकारात्मकता खोजता हो वो वाम मार्गी कहलाता है। ऐसा मनुष्य सकारात्मक कार्यों में संलग्न नहीं हो सकता। इसलिए वो भी मृत समान ही है।

5. धन का प्रयोग संयम से किया जाना अच्छा माना जाता है परन्तु अति कंजूस व्यक्ति कभी भी संसार में सराहना प्राप्त नहीं करता। धन का प्रयोग अच्छे कार्यों में लगाने वाला सभी की आंखों में आदर तथा सम्मान प्राप्त करता है।

 

6. मनुष्य एक ऐसा प्राणी है जिसके पास विवेक तथा बुद्धि है। परन्तु यदि मनुष्य विमूढ़ता को ना त्यागे तथा स्वयं कोई कार्य न करे, वो मृत समान ही है।

7. पुरातन काल से ही यश को मनुष्य की सबसे बड़ी प्राप्ति माना जाता है। अपयश मिलने पर कोई भी व्यक्ति मृत के समान ही है।

8. क्रोध मनुष्य के सबसे प्रबल शत्रुओं में आता है। जिसने अपने क्रोध पर नियन्त्रण प्राप्त नहीं किया वह व्यक्ति अपनी समूची संरचनात्मक शक्ति का नाश कर लेता है तथा मृत समान हो जाता है।

 

9. सत्कर्म से अर्जित किया गया धन भले ही लघु मात्रा में हो परन्तु सर्वदा आनन्द का कारण होता है। परन्तु जो व्यक्ति पाप कर्मों से धन अर्जित कर अपनों का पेट भरता है उसे मृत ही माना जाता है।

10. केवल स्वयं को मुख्य रख कर जीवन यापन करने वाला, दूसरों के दुखों तथा विपदाओं के बारे में उदासीन व्यक्ति समाज में रह कर भी समाज को किसी भी प्रकार का लाभ नहीं पहुंचाता। ऐसा व्यक्ति मृत समान ही है।

जो अपने अवगुणों की अपेक्षा दूसरों की निन्दा करता रहता है तथा दूसरों के गुणों को कभी भी मान्य नहीं समझता वो मनुष्य घृणा का भागी बनता है। समाज में सभी द्वारा घृणित व्यक्ति भी मृत ही है।

 

मनुष्य जीवन का लक्ष्य भगवान को प्राप्त करना है। यदि मनुष्य भगवान वैरि हो कर जीवन व्यतीत करे तो मृत के अतिरिक्त और कुछ नहीं माना जा सकता।

ये प्रसंग तुलसी रामायण में पाया जाता है तथा ये बातें अंगद द्वारा रावण को कही जाती हैं। आशा है कि आप भी इनको पढ़कर लाभान्वित होंगे।

 

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