कैसे करें शरद पूर्णिमा पूजा: 10 काम की बातें, जानिए मंत्र और शुभ मुहूर्त
आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। इस साल शरद पूर्णिमा 30 अक्टूबर शुक्रवार के दिन मनाई जाएगी। धार्मिक मान्यता के अनुसार, शरद पूर्णिमा सभी पूर्णिमा तिथि में से सबसे महत्वपूर्ण पूर्णिमा तिथि मानी जाती है।
इस दिन धन वैभव और ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए मां लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है और व्रत रखा जाता है। इस पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा या कोजागरी लक्ष्मी पूजा भी कहते हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार, शरद पूर्णिमा के दिन माता लक्ष्मी जी का अवतरण हुआ था। आइए जानते हैं शरद पूर्णिमा व्रत का मुहूर्त विधि और महत्व।
- शरद पूर्णिमा के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर किसी पवित्र नदी में स्नान अवश्य करें।
- इसके बाद एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं। उस पर माता लक्ष्मी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। फिर मां लक्ष्मी को लाल पुष्प, नैवैद्य, इत्र, सुगंधित चीजें अर्पित करें।
- आराध्य देव को सुंदर वस्त्र और आभूषण पहनाएं। आवाहन, आसन, आचमन, वस्त्र, गंध, अक्षत,
पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, तांबूल, सुपारी और दक्षिणा आदि अर्पित कर पूजन करें।
- यह सभी चीजें अर्पित करने के बाद माता लक्ष्मी के मंत्र और लक्ष्मी चालीसा का पाठ करें। मां लक्ष्मी की धूप व दीप से आरती करें।
- फिर माता लक्ष्मी को खीर का भोग लगाएं। ब्राह्मण को इस दिन खीर का दान अवश्य करें।
- रात्रि के समय गाय के दूध से खीर बनाई जाती है और इसमें घी और चीनी मिलाई जाती है। आधी रात के समय भगवान भोग लगाएं।
- रात्रि में चंद्रमा के आकाश के मध्य में स्थित होने पर चंद्र देव का पूजन करें। फिर खीर का नेवैद्य अर्पण करें।
- रात को खीर से भरा बर्तन चांदनी में रखकर दूसरे दिन उसका भोजन करें। इसे प्रसाद के रूप में वितरित भी करें।
- पूर्णिमा का व्रत करके कथा सुनें। कथा से पहले एक लोटे में जल और गिलास में गेहूं, पत्ते के दोने में रोली व चावल रखकर कलश की वंदना करें। फिर दक्षिणा चढ़ाएं।
- इस दिन भगवान शिव-पार्वती और भगवान कार्तिकेय की भी पूजा की जाती है।
पूर्णिमा व्रत शुभ मुहूर्त:
शरद पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ: 30 अक्टूबर 2020 को शाम 07 बजकर 45 मिनट
शरद पूर्णिमा के दिन चन्द्रोदय: 30 अक्टूबर 2020 को 7 बजकर 12 मिनट
शरद पूर्णिमा तिथि समाप्त: 31 अक्टूबर 2020 को रात्रि 8 बजकर 18 मिनट
मंत्र :
ॐ चं चंद्रमस्यै नम:
दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदार्णव सम्भवम ।
नमामि शशिनं सोमं शंभोर्मुकुट भूषणं ।।