Gangaur Vrat, Puja Vidhi, Muhurat, Katha
गणगौर पूजा महिलाओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण पर्वों में से एक है। महिलाएं अपने पति से गणगौर व्रत छिपाकर करती हैं। यहां तक कि पूजा में चढ़ाए जाने वाला प्रसाद भी वह अपने पति को नहीं खिलाती हैं।
गणगौर व्रत कैसे करें, जानिए क्या है पूजा विधि, नियम, व्रत कथा और आरती
गण (शिव) तथा गौर(पार्वती) के इस पर्व को विवाहित महिलाओं के साथ कुंवारी लड़कियां भी मनपसंद वर पाने की कामना से करती हैं। विवाहित महिलायें इस व्रत को अपने पति की दीर्घायु की कामना के लिए करती हैं।
गणगौर त्योहार चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। मुख्य रूप से इस पर्व को राजस्थान के लोग मनाते हैं। इसी के साथ उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा और गुजरात में भी कुछ इलाकों में गणगौर व्रत रखा जाता है। इस बार ये पूजा 15 अप्रैल को है। इस व्रत को पति से गुप्त रखकर किया जाता है। गणगौर पूजा होली के दिन से शुरू होकर 18 दिनों तक चलती है।
गणगौर पूजा सामग्री: साफ पटरा, कलश, काली मिट्टी, होलिका की राख, गोबर या फिर मिट्टी के उपले, सुहाग की चीज़ें (मेहँदी, बिंदी, सिन्दूर, काजल, इत्र), शुद्ध घी, दीपक, गमले, कुमकुम, अक्षत, ताजे फूल, आम की पत्ती, नारियल, सुपारी, पानी से भरा हुआ कलश, गणगौर के कपड़े, गेंहू, बांस की टोकरी, चुनरी, हलवा, सुहाग का सामान, कौड़ी, सिक्के, घेवर, चांदी की अंगुठी, पूड़ी आदि।
गणगौर शुभ मुहूर्त: गणगौर पूजा 18 दिनों तक चलती है। कुछ लोग इसके आखिरी दिन पूजा अर्चना करते हैं। गणगौर व्रत को कई जगहों पर गौरी तीज या सौभाग्य तीज के नाम से भी जाना जाता है। चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को ये व्रत रखा जाता है।
गणगौर पूजा विधि: सुहागिनें इस दिन दोपहर तक व्रत रखती हैं। पूजा के समय शिव-गौरी को सुंदर वस्त्र अर्पित करें। माता पार्वती को सम्पूर्ण सुहाग की वस्तुएं चढ़ाएं। चन्दन, अक्षत, धूप, दीप, दूब व पुष्प का इस्तेमाल करते हुए पूजा-अर्चना करें। इस दिन गणगौर माता को फल, पूड़ी, गेहूं चढ़ाये जाते हैं। एक बड़ी सी थाली लें उसमें चांदी का छल्ला और सुपारी रखें और उसमें जल, दूध, दही, हल्दी, कुमकुम घोलकर सुहागजल तैयार कर लें। दोनों हाथों में दूब लेकर इस जल से पहले गणगौर पर छीटें लगाएं फिर महिलाएं उस जल को अपने ऊपर सुहाग के प्रतीक के तौर पर छिड़क लें। अंत में माता को भोग लगाकर गणगौर माता की कथा सुनें। गणगौर पर चढ़ाया हुआ प्रसाद पुरुषों को नहीं दिया जाता है। जो सिन्दूर इस दिन माता पार्वती को चढ़ाया जाता है, उसे महिलाएं अपनी मांग में भरती हैं।
इस दिन गणगौर माता को सजा-धजा कर पालने में बैठाकर शोभायात्रा निकालते हुए विसर्जित किया जाता है। मान्यता है कि गौरीजी की स्थापना जहां होती है वह उनका मायका हो जाता है और जहां विसर्जन होता है वह ससुराल। शाम को शुभ मुहूर्त में गणगौर को पानी पिलाकर किसी पवित्र सरोवर या कुंड में इनका विसर्जन किया जाता है। इस दिन अविवाहित लड़कियां और विवाहत स्त्रियां दो बार पूजन करती हैं। दूसरी बार की पूजा में शादीशुदा महिलाएं चोलिया रखती हैं, जिसमें पपड़ी या गुने रखे जाते हैं। गणगौर विसर्जित करने के बाद घर आकर पांच बधावे के गीत गाये जाते हैं।
माता पार्वती की आरती:
जय पार्वती माता जय पार्वती माता
ब्रह्म सनातन देवी शुभ फल कदा दाता।
जय पार्वती माता जय पार्वती माता।
अरिकुल पद्मा विनासनी जय सेवक त्राता
जग जीवन जगदम्बा हरिहर गुण गाता।
जय पार्वती माता जय पार्वती माता।
सिंह को वाहन साजे कुंडल है साथा
देव वधु जहं गावत नृत्य कर ताथा।
जय पार्वती माता जय पार्वती माता।
सतयुग शील सुसुन्दर नाम सती कहलाता
हेमांचल घर जन्मी सखियन रंगराता।
जय पार्वती माता जय पार्वती माता।
शुम्भ निशुम्भ विदारे हेमांचल स्याता
सहस भुजा तनु धरिके चक्र लियो हाथा।
जय पार्वती माता जय पार्वती माता।
सृष्टि रूप तुही जननी शिव संग रंगराता
नंदी भृंगी बीन लाही सारा मदमाता।
जय पार्वती माता जय पार्वती माता।
देवन अरज करत हम चित को लाता
गावत दे दे ताली मन में रंगराता।
जय पार्वती माता जय पार्वती माता।
श्री प्रताप आरती मैया की जो कोई गाता
सदा सुखी रहता सुख संपति पाता।
जय पार्वती माता मैया जय पार्वती माता।
मुख्य बातें
- गणगौर का पर्व राजस्थान समेत उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा और गुजरात जैसे उत्तरीय पश्चिम इलाके में मनाया जाता है।
- इस दिन गणगौर माता यानी माता पार्वती की पूजा की जाती है तथा उनका आशीर्वाद लिया जाता है।
- पति की लंबी उम्र के लिए इस व्रत को रखा जाता है, यह व्रत पत्नियां अपने पति से छुपा कर रखती हैं
भारत विविधताओं का देश है और यहां कई ऐसे अनोखे त्यौहार और पर्व मनाए जाते हैं जो अपने आप में ही बहुत विशेष होते हैं। ऐसा ही एक पर्व है जो महिलाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है जिसे भारत के उत्तरी प्रांतों में ज्यादातर मनाया जाता है। यह पर्व है गणगौर व्रत, जिस दिन महिलाएं अपने पति से छुपकर व्रत करती हैं और गणगौर माता यानी माता पार्वती की पूजा करके अपने पति की लंबी उम्र के लिए कामना करती हैं। हर वर्ष यह तिथि चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया पर पड़ती है। गणगौर पूजा के साथ अक्सर मत्स्य जयंती भी मनाई जाती है। जानकार बताते हैं कि, गणगौर का मतलब गण शिव और गौर माता पार्वती से है।
गणगौर पूजा का महत्व
गणगौर पूजा राजस्थान और मध्य प्रदेश समेत भारत के उत्तरी प्रांतों का लोकप्रिय पर्व है। महिलाओं और कुंवारी कन्याओं के लिए यह पूजा बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार,इस दिन को प्रेम का जीवंत उदाहरण माना जाता है क्योंकि भगवान शिव ने माता पार्वती को और माता पार्वती ने संपूर्ण स्त्रियों को सौभाग्यवती होने का वरदान दिया था। जो सुहागिन गणगौर व्रत करती हैं तथा भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हैं उनके पति की उम्र लंबी हो जाती है। वहीं, जो कुंवारी कन्याएं गणगौर व्रत करती हैं उन्हें मनपसंद जीवनसाथी का वरदान प्राप्त होता है। इस पर्व को 16 दिन तक लगातार मनाया जाता है और गौर का निर्माण करके पूजा की जाती है।
गणगौर की कहानी, गणगौर की कथा
गणगौर की व्रत कथा के मुताबिक, एक बार भगवान शिव और माता पार्वती वन में गए। और चलते-चलते वे दोनों बहुत ही घने वन में पहुंच गए। तब माता पार्वती ने भगवान शिव से कहा कि हे भगवान मुझे प्यास लगी है। इस पर भगवान शिव ने कहा कि देवी देखों उस ओर पक्षी उड़ रहे हैं उस स्थान पर अवश्य ही जल मौजूद होगा।
पार्वती जी वहां गई, उस जगह पर एक नदी बह रही थी। पार्वती जी ने पानी की अंजलि भरी तो उनके हाथ में दूब का गुच्छा आ गया। जब उन्होंने दूसरी बार अंजलि भरी तो टेसू के फूल उनके हाथ में आ गए। और तीसरी बार अंजलि भरने पर ढोकला नामक फल हाथ में आ गया।
इस बात से पार्वती जी के मन में कई तरह के विचार उठने लगे। परन्तु उनकी समझ में कुछ नहीं आया। उसके बाद भगवान शिव शंभू ने उन्हें बताया कि आज चैत्र शुक्ल तीज है। विवाहित महिलाएं आज के दिन अपने सुहाग के लिए गौरी उत्सव करती हैं। गौरी जी को चढ़ाएं गए दूब, फूल और अन्य सामग्री नदी में बहकर आ रहे थे।
इस पर पार्वती जी ने विनती की कि हे स्वामी दो दिन के लिए आप मेरे माता-पिता का नगर बनवा दें। जिससे सारी स्त्रियां वहीं आकर गणगौर के व्रत को करें। और मैं खुद ही उनके सुहाग की रक्षा का आशीर्वाद दूं।
भगवान शंकर ने ऐसा ही किया। थोड़ी देर में ही बहुत सी स्त्रियों का एक दल आया तो पार्वती जी को चिन्ता हुई और वो महादेव जी से कहने लगी कि हे प्रभु मैं तो पहले ही उन्हें वरदान दे चुकी हूं। अब आप अपनी ओर से सौभाग्य का वरदान दें।
पार्वती जी के कहने पर भगवान शिव ने उन सभी स्त्रियों को सौभाग्यवती रहने का वरदान दिया। भगवान शिव और माता पार्वती ने जैसे उन स्त्रियों की मनोकामना पूरी की, वैसे ही भगवान शिव और गौरी माता इस कथा को पढ़ने और सुनने वाली कन्याओं और महिलाओं की मनोकामना पूर्ण करें।
गणगौर की पूजा विधि-
गणगौर व्रत के लिए कृष्ण पक्ष की एकादशी को सुबह स्नान आदि करने के बाद लकड़ी की बनी टोकरी में जवारे बोना चाहिए। पढ़ें संपूर्ण पूजा विधि-
1. गणगौर व्रत में व्रती महिला को केवल एक समय में भोजन करना चाहिए।
2. मां गौरी को श्रृंगार का सामान अर्पित करें।
3. इसके बाद चंदन, अक्षत, धूप-दीप आदि अर्पित करें।
4. इसके बाद मां गौरी को भोग लगाएं।
5. भोग लगाने के बाग गणगौर व्रत कथा सुनें या पढ़ें।
6. भोग लगाने के बाद माता गौरी को चढ़ाए गए सिंदूर से सुहाग लें।
7. चैत्र शुक्ल द्वितीया को गौरी को किसी तालाब या नदी में ले जाकर स्नान कराएं।
8. इसके बाद चैत्र शुक्ल तृतीया को गौरी-शिव स्नान कराएं।
9. इस दिन शाम को गाजे-बाजे के साथ गौरी-शिव को नदी या तालाब में विसर्जित करें।
10. इसके बाद अपना उपवास खोलें।
गणगौर राजस्थान एवं सीमावर्ती मध्य प्रदेश का एक त्यौहार है जो चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष की तीज को आता है. इस दिन कुवांरी लड़कियां एवं विवाहित महिलायें शिवजी (इसर जी) और पार्वती जी (गौरी) की पूजा करती हैं. इस दिन पूजन के समय रेणुका की गौर बनाकर उस पर महावर, सिंदूर और चूड़ी चढ़ाने का विशेष प्रावधान है. चंदन, अक्षत, धूपबत्ती, दीप, नैवेद्य से पूजन करके भोग लगाया जाता है. गणगौर (Kab Hai Gangaur Vrat) राजस्थान में आस्था प्रेम और पारिवारिक सौहार्द का सबसे बड़ा उत्सव है. गण (शिव) तथा गौर(पार्वती) के इस पर्व में कुँवारी लड़कियां मनपसंद वर पाने की कामना करती हैं. विवाहित महिलायें चैत्र शुक्ल तृतीया को गणगौर पूजन तथा व्रत कर अपने पति की दीर्घायु की कामना करती हैं. इस साल गणगौर पूजा 15 अप्रैल 2021 को है.
गणगौर पूजा का समय
गणगौर पूजा बृहस्पतिवार, अप्रैल 15, 2021 को
तृतीया तिथि प्रारम्भ – अप्रैल 14, 2021 को 12:47 पी एम बजे
तृतीया तिथि समाप्त – अप्रैल 15, 2021 को 03:27 पी एम बजे
गणगौर व्रत पूजन विधि
शिव-गौरी को सुंदर वस्त्र अर्पित करें. सम्पूर्ण सुहाग की वस्तुएं अर्पित करें. चन्दन,अक्षत, धूप, दीप, दूब व पुष्प से उनकी पूजा-अर्चना करें. एक बड़ी थाली में चांदी का छल्ला और सुपारी रखकर उसमें जल, दूध-दही, हल्दी, कुमकुम घोलकर सुहागजल तैयार किया जाता है. दोनों हाथों में दूब लेकर इस जल से पहले गणगौर को छींटे लगाकर फिर महिलाएं अपने ऊपर सुहाग के प्रतीक के तौर पर इस जल को छिड़कती हैं. अंत में चूरमे का भोग लगाकर गणगौर माता की कहानी सुनी जाती है. गणगौर महिलाओं का त्यौहार माना जाता है इसलिए गणगौर पर चढ़ाया हुआ प्रसाद पुरुषों को नहीं दिया जाता. जो सिन्दूर माता पार्वती को चढ़ाया जाता है, महिलाएं उसे अपनी मांग में भरती हैं.
गणगौर व्रत कथा
क समय की बात है, भगवान शंकर, माता पार्वती एवं नारद जी के साथ भ्रमण हेतु चल दिए. वह चलते-चलते चैत्र शुक्ल तृतीया को एक गांव में पहुंचे. उनका आना सुनकर ग्राम कि निर्धन स्त्रियां उनके स्वागत के लिए थालियों में हल्दी व अक्षत लेकर पूजन हेतु तुरंत पहुंच गई . पार्वती जी ने उनके पूजा भाव को समझकर सारा सुहाग रस उन पर छिड़क दिया. वे अटल सुहाग प्राप्त कर लौटी.
थोड़ी देर बाद धनी वर्ग की स्त्रियां अनेक प्रकार के पकवान सोने चांदी के थालो में सजाकर सोलह श्रृंगार करके शिव और पार्वती के सामने पहुंची. इन स्त्रियों को देखकर भगवान शंकर ने पार्वती से कहा तुमने सारा सुहाग रस तो निर्धन वर्ग की स्त्रियों को ही दे दिया. अब इन्हें क्या दोगी? पार्वती जी बोली प्राणनाथ! उन स्त्रियों को ऊपरी पदार्थों से निर्मित रस दिया गया है .
इसलिए उनका सुहाग धोती से रहेगा. किंतु मैं इन धनी वर्ग की स्त्रियों को अपनी अंगुली चीरकर रक्त का सुहाग रख दूंगी, इससे वो मेरे सामान सौभाग्यवती हो जाएंगी. जब इन स्त्रियों ने शिव पार्वती पूजन समाप्त कर लिया तब पार्वती जी ने अपनी अंगुली चीर कर उसके रक्त को उनके ऊपर छिड़क दिया जिस पर जैसे छींटे पड़े उसने वैसा ही सुहाग पा लिया.
पार्वती जी ने कहा तुम सब वस्त्र आभूषणों का परित्याग कर, माया मोह से रहित होओ और तन, मन, धन से पति की सेवा करो . तुम्हें अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होगी. इसके बाद पार्वती जी भगवान शंकर से आज्ञा लेकर नदी में स्नान करने चली गई . स्नान करने के पश्चात बालू की शिव जी की मूर्ति बनाकर उन्होंने पूजन किया.
भोग लगाया तथा प्रदक्षिणा करके दो कणों का प्रसाद ग्रहण कर मस्तक पर टीका लगाया. उसी समय उस पार्थिव लिंग से शिवजी प्रकट हुए तथा पार्वती को वरदान दिया आज के दिन जो स्त्री मेरा पूजन और तुम्हारा व्रत करेगी उसका पति चिरंजीवी रहेगा तथा मोक्ष को प्राप्त होगा. भगवान शिव यह वरदान देकर अंतर्धान हो गए . इतना सब करते-करते पार्वती जी को काफी समय लग गया. पार्वती जी नदी के तट से चलकर उस स्थान पर आई जहां पर भगवान शंकर व नारद जी को छोड़कर गई थी. शिवजी ने विलंब से आने का कारण पूछा तो इस पर पार्वती जी बोली मेरे भाई भावज नदी किनारे मिल गए थे. उन्होंने मुझसे दूध भात खाने तथा ठहरने का आग्रह किया.