प्रभु में करें अपना समय निवेश, यही है सही ध्यान लगाना
युगों-युगों से सभी धर्मशास्त्र हमें बताते चले आए हैं कि हम इस दुनिया में सांसों की सीमित संख्या के साथ पैदा होते हैं। यानी जन्म के साथ ही हमारी उम्र एक निश्चित समय सीमा में बंधी होती है। हम अपनी सांसों की संख्या को एक बैंक के खाते या पूंजी की तरह समझ सकते हैं और यह पूंजी हमें पिता-परमेश्वर की तरफ से दी गई है। हम निर्णय करें कि हमें अपनी इन सांसों की पूंजी को कैसे खर्च करना है? अपनी इस पूंजी को हम समझदारी से भी खर्च कर सकते हैं और लापरवाही या मूर्खता के साथ भी खर्च कर सकते हैं।
जब हम समझदारी से अपनी सांसों की पूंजी का सही इस्तेमाल करते हैं, तो उसे पिता-परमेश्वर की ओर निवेश करना करते हैं। तब एक हम सच्चा निवेश कर रहे हैं और भविष्य में हमें इसका अद्भुत लाभ प्राप्त होगा। यह निवेश एक ऐसी मिठास का अहसास लाता है जो इस दुनिया की किसी भी वस्तु में नहीं मिल सकता है। जब हम मिठाई या गुड़ खाते हैं तो उसकी मिठास तभी तक बनी रहती है, जब तक वह हमारी जिह्वा पर रहती है, लेकिन यह मिठास हमेशा बनी रहती है। सभी धर्मशास्त्र हमें समझाते हैं कि प्रभु में अपना समय निवेश करने का मतलब है कि हम अपना ध्यान सही दिशा में केंद्रित कर रहे हैं और अपने समय का उपयोग उस उद्देश्य को पूरा करने के लिए कर रहे हैं, जिसके लिए हम सब इस दुनिया में आए हैं। दुनिया में आने का हमारा उद्देश्य अपने आपको जानना और पिता-परमेश्वर को पाना है। इस उद्देश्य को सिर्फ ध्यान-अभ्यास के माध्यम से ही पा सकते हैं।
जैसे ही हम अंतर में ध्यान टिकाते हैं, उस दिव्य-शक्ति से जुड़ने लगते हैं जिसने सारी सृष्टि की रचना की है। तब हमारी आत्मा परमात्मा को पहचानती है और हम प्रभु के प्रेम, खुशी और आनंद को पा लेते हैं। वह आनंद, वह खुशी ऐसी होती है जिसकी हमने कभी कल्पना भी नहीं की थी। यदि हम आत्मा का वैभव, उसकी चमक देखना चाहते हैं तो प्रतिदिन कुछ समय के लिए ध्यान-अभ्यास अवश्य करें। ध्यान-अभ्यास में जीवन के कुछ पल नियमित रूप से बिताने पर हमें एक शक्ति मिलती है, जो हमें अपने उस लक्ष्य तक पहुंचने में मदद करती है। प्रत्येक दिन कुछ समय ध्यान-अभ्यास में बैठने पर हम पाएंगे कि हम अपने समय का उपयोग हमेशा आध्यात्मिक लाभ के लिए कर रहे हैं।
आध्यात्मिक जागृति होने के साथ ही प्रभु के लिए हमारा प्रेम गहरा हो जाता है। जैसे-जैसे प्रभु से हमारा प्रेम गहराता जाता है हम भीतर से परिवर्तित होते जाते हैं। हम प्रभु के प्रेम से ओत-प्रोत हो जाते हैं, आत्मा पर चढ़े मोह-माया और जड़ता के पर्दे हटते हैं। हमारा ध्यान बाहर की दुनिया से हटकर ध्यान-अभ्यास की विधि पर लगना शुरू हो जाता है। आध्यात्मिक सत्गुरु के मार्गदर्शन से हमारे जीवन और मृत्यु के रहस्य खुलते हैं और हमारी आत्मा परमात्मा के पास वापस जाने का रास्ता प्राप्त करती है।
जीवन के वास्तविक लक्ष्य को पाना है, तो आइए! ध्यान-अभ्यास और निरंतर परमात्मा की याद करके अपने सांसों की इस पूंजी का समझदारी से निवेश करें। इससे हम अपनी आत्मा को परमात्मा के पास पहुंचाने का सुरक्षित मार्ग पा सकते हैं, जो कि हमारे मनुष्य जीवन का मुख्य ध्येय है।