Only this thing in the whole world stops us from doing wrong to someone
पूरे संसार में केवल यह चीज हमें किसी के साथ गलत करने से रोकती है
आज मनुष्य अपने शरीर निर्वाह और परिवार पालन के लिए ऊंची से ऊंची लौकिक शिक्षा प्राप्त करता है। पर वास्तविक शिक्षा को जानने की भी कोशिश नहीं करता। जो शिक्षा मनुष्य को चरित्रवान बनाए, उसके अंदर स्थित शक्ति से जुड़कर सुख-शांति की स्थापना में सहयोगी बने उसे ही वास्तविक शिक्षा कहा जा सकता है। सर्वोत्तम शिक्षा वह है जिससे आत्मा प्रकाशमान हो, शरीर शक्तिमान हो और कर्म सुखदायी हो। ऐसी शिक्षा ही युग परिवर्तन का आधार है।
महान वैज्ञानिक आइंस्टाइन जब जीवन के अंतिम पड़ाव पर थे, तब एक अमेरिकी पत्रकार ने उनसे पूछा, ‘आपकी अंतिम इच्छा क्या है? अगर पुनर्जन्म लिया तो आप क्या बनना पसंद करेंगे?’ सोच-विचार कर आइंस्टाइन बोले, ‘मैंने जाने कितने सत्यों और तथ्यों की खोज करने में अपना सारा जीवन लगा दिया। लेकिन अब मुझे महसूस हो रहा है कि मैं तो खाली हाथ जा रहा हूं। मैं इस सब खेल को रचाने वाले सर्वश्रेष्ठ आविष्कारक के बारे में सोच भी नहीं सका। आत्म-परमात्म तत्व को नहीं जान पाया क्योंकि मेरा ध्यान उस तरफ कभी गया ही नहीं। अगर अगला जन्म होता है तो उसमें मैं कोई फिजिसिस्ट नहीं बनना चाहता। मैं प्लंबर बनना चाहता हूं। सरल, सादी जिंदगी चाहता हूं जिसमें आत्मअन्वेषण कर सकूं, अपने वे सच जान सकूं जिनके बारे में सोचने का मौका मैं इस जिंदगी में नहीं निकाल सका।’
हमारी जिंदगी का सबसे बड़ा रहस्य यह है कि हम खुद को ही नहीं जानते। हम अपनी प्रकृति या मूल स्वभाव को ही नहीं जानते या फिर शायद जानते हुए भी अनजान हैं। जिस तरह हमें पता है कि पानी का स्वभाव तरल होता है, उसी तरह क्या हमें पता है कि मनुष्य का मूल स्वभाव क्या है? अपने आपको जानना यानी ‘आत्मबोध’। हर व्यक्ति के अंदर एक शांत शक्ति मौजूद है जिसे हम अंतरात्मा कहते हैं। यह अंतरात्मा हर परिस्थिति में सही होती है। यह अंतरात्मा हमेशा हमें सही रास्ता दिखाती है। जब भी हम कुछ गलत कर रहे होते हैं, तब हमें बड़ा अजीब सा लगता है। जैसे कोई कह रहा हो कि यह कार्य मत करो। यह हमारे अंदर मौजूद आंतरिक शक्ति ही होती है जो हमें बुरा कार्य करने से रोकती है। कहा जाता है कि हर मनुष्य के अंदर ईश्वर का अंश होता है, यही हमारी अंतरात्मा होती है। हमारी प्रकृति या स्वभाव दूसरों की सहायता करना, उनका भला करना है।
प्रश्न उठता है, फिर क्यों एक संत सही मार्ग पर चलता है और अपराधी गलत मार्ग पर? ऐसा इसलिए होता है क्योंकि संत को अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनाई देती है, पर अपराधी को वह आवाज सुनाई नहीं देती। जब हम अपनी अंतरात्मा की आवाज को अनसुना करने लगते हैं, तो अंतरात्मा से हमारा संपर्क कमजोर होने लगता है। अंतरात्मा से हमारी दूरी बढ़ती जाती है और फिर एक दिन ऐसा आता है जब हमें वह आवाज बिल्कुल नहीं सुनाई देती। जैसे-जैसे हमारा अपनी अंतरात्मा के साथ संपर्क कमजोर होता जाता है, वैसे-वैसे हम उदास रहने लगते हैं और अपनी सारी खुशियां भौतिक वस्तुओं में ढूंढने लगते हैं। हम समस्याओं को हल करने में असमर्थ हो जाते हैं जिससे ‘तनाव’ हमारा हमसफर बन जाता है। इसलिए हमें अपनी अंतरात्मा की आवाज को कभी अनसुना नहीं करना चाहिए, क्योंकि वही सच्ची अंत: प्रेरणा हमारा मार्गदर्शन करती है और पग-पग पर हमें अशुभ से बचाती चलती है।