बुद्ध पचासा – Buddha Pachasa
बुद्ध पचासा
दो~विघ्न हरण मंगल करण,
सुगत बुद्ध भगवान ।
करो दया निज जानिके,
देहु ह्रदय मे ज्ञान ।।
चौपाई
जय गौतम गुन ज्ञान के सागर ।
बुद्ध रूप तिहुं लोक उजागर ।।•१।।
जय जय बुद्ध बुद्धि के दाता ।
कृपा करहु दुख हरहु निपाता।।•२।।
महा प्रबल अतिशय गुन धामा ।
माया सुत सिद्धार्थ नामा ।।•३।।
कपिलवस्तु मे जन्मे आई ।
सुद्दोधन तब खुशी मनाई ।।•४।।
सुद्दोधन के प्रानन प्यारे ।
प्रजापती के आखिन तारे।।•५।।
कुमति निवार सुमति के संगी ।
दीन दुखिन के हरदम संगी ।।•६।।
हिंसा बंद करावन हारे ।
दुखियों के तुम प्रान उबारे ।।•७।।
घायल हंस के प्रांण बचाये ।
देवदत्त तुमने समझाये ।।•८।।
न्याय हुआ भ्राता तब हारे ।
जीते आप बचाने बारे ।।•९।।
आप निरंजना नदी किनारे ।
लगा समाधि आसन मारे ।।•१०।।
छः वर्ष भीषण तप कीन्हा ।
सूखा तन दुर्लभ भयो जीना।।•११।।
बहुतक दिना अन्न बिनु जल के ।
मूदे नयन न टारी पलके ।।•१२।।
नही मिला ईश जब आई आई ।
सुखि गया तन हाड दिखाई।।•१३।।
तब आपन मन माहि बिचारा।
मध्यम मार्ग पर पगु धारा ।।•१४।।
तब जल पान करन मुनि लागे ।
पंच भद्र ब्राह्मण तब भागे ।।•१५।।
पूजन हेतु सुजाता आई ।
खीर आपने प्रेम से खाई ।।•१६।।
मार देव जब करी चढाई ।
हारभजो अतिशय भयखाई।।•१७।।
भयो ज्ञान रिद्धबल पाया ।
बुद्ध नाम तब आप कहाया।।•१८।।
पंचभद्र ब्राह्मण मुनिराई ।
सबसे प्रथम उन्हें समझाई।।•१९।।
धर्म प्रवर्त्तन चक्र चलाया ।
जगतगुरु बन ज्ञान सिखाया।।•२०।।
बिम्बिसार को संसय भयहू।
ज्ञानदिया संसय मिट गयऊ।।•२१।।
अँगुली माल उपद्रव कीन्हा ।
जनता को भारी दुख दीना ।।•२२।।
तबमुनि आप दस्यु ढिंग आये ।
ग्यान कराकर कर्म छुड़ाये।।•२३।।
अंगुलीमाल को शिष्य बनाया ।
प्रसेनजित को उसे दिखाया।।•२४
धर्म क्षीण अधर्म अति होवे ।
दीन दुखी मन ही मन रोवे ।।•२५।।
दीन दुखी के तुम अति प्यारे ।
भेद कुरीति मिटावन हारे।।•२६।।
ऊंच नीच का भेद मिटाया ।
मानवता का पाठ पढ़ाया ।।•२७।।
कृशा गौतमी मृत सुत लाई ।
देकर ज्ञान दिया समझाई।।•२८।।
गंणिका ने तब नेवता पठाया।
कर स्वीकार उसे तुम पाया।।•२९।।
आम्रपाली का दान जो दीन्हा ।
होकर मगन बिहारसो लीन्ह।।•३०।।
तुम उपकार यक्ष का कीन्हा ।
कर्म छुडाय मन्त्र शुभ दीना।।•३१।।
नकली पेट बना चिंचा आई ।
दुष्ट जनो ने बोल पठाई ।।•३२।।
नकली पेट गिरा महि जाई ।
भेद खुला मनमे खिसियाई।।•३३।।
नाला गिरि हांथी जब धाया।
शांन्तकिया पदआप छुवाया।।३४।।
चमत्कार मुनि आप दिखाया ।
आम बृक्ष क्षण मे उपजाया।।•३५।।
बाड़ा बृक्ष आकाशे गयऊ।
लोगन केमन बिषमय भयऊ।।३६।।
पके आम लागे बहु तेरे ।
खाये बहुजन स्वाद घनेरे।।•३७।।
रूप बिराट दिखाया आपन ।
हुए चकित बहुलोग ऋषिजन।।३८।।
त्रियंश देवलोक तुम जाई ।
महामाया को ज्ञान सिखई।।•३९।।
देवलोक से लौटिके आये ।
ब्राह्मा इंन्द्र संग मे लाये।।•४०।।
उतरे आय संकिसा नगरी ।
जनता ठांड़ी देखे सगरी ।।•४१।।
क्वांर पूर्णिमा मास सुहाई।
पुण्य भूमि संकिसा बनाई।।•४२।।
इच्छु मती बहे जहें पुनीता।
जनकपुरूषोत्तम नामसुनीता।।४३।।
वहां जाय उपदेश सुनाया ।
सबको मन्त्र तुम्हारा भाया।।•४४।।
तुमरो मन्त्र सुनी धर ध्याना ।
शस्त्रु होवे मित्र समाना ।।•४५।।
तुम्हारे बलसों भूत डरावें ।
भगे पिशाच निकट नहीं आवे।।४६।।
संकास्य तीर्थ जो जावे ।
सो नर नारि मुक्ति पद पावे।।•४७।।
जो नर गावे बुद्ध पचासा ।
सुखीरहे पूर्ण होय सब आशा।।४८।।
जो यह पाठ करे मन लाई ।
तापे होवे बुद्ध सहाई ।।•४९।।
धूप देये अरू जपे हमेशा ।
मिट जाए ताके सकल कलेशा।५०।।
दोहा ~~
मार्ग दर्शन जोकरे,
सो नर पावे ज्ञान ।
जग मे बहु कीर्ति मिले,
होय अधिक कल्याण ।।