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Shri Chandika Chalisa – दुर्गा चालीसा जाप के लाभ

माँ चंडी चालीसा जाप के लाभ

माँ चंडी चालीसा का जाप करने से भक्त को अनेक दिव्य लाभ प्राप्त होते हैं। माँ चंडी को शक्ति, धैर्य और समृद्धि की देवी माना जाता है। इस चालीसा के नियमित पाठ से मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक उत्थान होता है।

1. भय और नकारात्मकता से मुक्ति

जो व्यक्ति प्रतिदिन श्रद्धा और समर्पण के साथ माँ चंडी चालीसा का पाठ करता है, उसे जीवन में किसी भी प्रकार के भय से मुक्ति मिलती है। माता की कृपा से घर में नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है।

2. मानसिक शांति और आत्मविश्वास

माँ चंडी चालीसा में वर्णित देवी के स्वरूप मन को स्थिर और शांत बनाते हैं। यह पाठ आत्मविश्वास बढ़ाता है और मानसिक तनाव को दूर करने में सहायक होता है।

3. आर्थिक समृद्धि

जिन लोगों को धन-संबंधी समस्याएं होती हैं, उन्हें माँ चंडी चालीसा का नियमित पाठ करना चाहिए। माँ लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है और जीवन में आर्थिक उन्नति होती है।

4. स्वास्थ्य और दीर्घायु

यह चालीसा शरीर को ऊर्जा और शक्ति प्रदान करती है। बीमारियों से रक्षा होती है और दीर्घायु प्राप्त होती है।

5. बाधाओं और संकटों से रक्षा

माँ चंडी को “संकट हारिणी” कहा जाता है। इस चालीसा के पाठ से जीवन में आने वाली बाधाएं समाप्त होती हैं और सफलता का मार्ग प्रशस्त होता है।

जो भी श्रद्धा और विश्वास के साथ माँ चंडी चालीसा का जाप करता है, उसे माँ चंडी की कृपा अवश्य प्राप्त होती है! 🙏✨

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( माँ चंडी चालीसा )

++++ दोहा ++++
जय माँ चंडी चंडिका, चामुंडा शक्ति स्वरूप।
प्रचंड हुई प्रचंडी माँ, धार ज्योति का रूप।।

ब्रह्मां की ब्रह्माणी माँ, विष्णु की लक्ष्मी मात।
चंडी काली गौरी माँ, हो रहती शिव के साथ।।

<<<< चौपाई >>>>
जय चामुंडा जय माँ चंडी।
जय माँ शिवानी जय प्रचंडी।।

मात मंगला मंगल करनी।
करुणामयी माँ संकट हरनी।।

दिव्य ज्योति की दिव्य है दृष्टि।
प्रकटी इसी से सकल है सृष्टि।।

ब्रह्मा, विष्णु, शिव ने ध्याया।
देवों ने भी माँ को मनाया।।

दुर्गा रूप धर जग को तारे।
चंडी रूप धर दुष्ट संहारे।।

असुरों ने देवों को सताया।
चंडी रूप धर रच दी माया।।

सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलयुग।
जग में प्रकटी चंडी हर युग।।

कहीं प्रकट हुई पिंडी रूप में।
कहीं विराजी मूर्ति रूप में।।

कलयुग प्रकटी मिधल भटासा।
पूर्ण कर दी सब की आशा।।

घुमरो माई घर चंडी प्रकटी।
उसको दी युक्ति से मुक्ति।।

प्रकट हुई फिर पाडर मचेला।
अदभुत माँ ने खेल था खेला।।

जोरावर को दर्श दिया था।
करगिल माँ संग जीत लिया था।।

माँ के कहे को जब था भुलाया।
अन्त समय वो था पछताया।।

आये यहाँ फिर कर्नल यादव।
उन्हें हुआ था अदभुत अनुभव।।

उन्होंने चंडी माँ को माना।
पा शक्ति का माँ से ख़ज़ाना।।

माँ का सुन्दर भवन बनाया।
माँ से भक्ति का फल पाया।।

दूर-दूर से भगत जो आते।
मन इच्छा फल माँ से पाते।।

झंस्कार के भगतों को तारा।
भविष्यवाणी कर दुखों से उबारा।।

हजार तोले चांदी की मूरत।
उन्होंने ला करवाई स्थापित।।

चंडी रानी अठ्ठरां बुजी माँ।
क्या-क्या करिश्में करने लगी माँ।।

नथनी हिला कभी झुमके हिलाती।
पलकें झपक माँ यह बतलाती।।

साक्षात हूँ बैठी यहाँ पर।
दर्श करो हर शंका मिटाकर।।

आये कुलवीर करने को डियूटी।
माँ के भवन पे पड़ी जो दृष्टि।।

कृष्ण लाल पंडिता संग ठाकुर।
खूब सजाते माँ का मन्दिर।।

देख के माँ ने सच्ची भक्ति।
ऐसी इनको दे दी शक्ति।।

नित दिन करते माँ की सेवा।
बाँट रहे सेवा का मेवा।।

मूर्ति रूप में माँ की ज्योति।
मिंधला की रानी आई चनोती।।

माँ का खूब हुआ प्रचारा।
घर-घर फैल गया उजियारा।।

होने लगी हर साल ही यात्रा।
बढ़ने लगी भगतों की मात्रा।।

ले त्रिशूला चलते ठाकुर।
संग छड़ी के आते पाडर।।

इक पर्वत पे बैठे शंकर।
दृष्टि दया की रखते सब पर।।

चंडी विराजी बीच मचेला।
लगता जहां भगतों का मेला।।

माँ चंडी का तेज निराला।
चरणों में बहता बोट है नाला।।

आज्ञा सुर इक ओर विराजे।
इक ओर नीलम पर्वत साजे।।

माँ चंडी के नाम कई हैं।
शिवदूती के धाम कई हैं।।

माँ की महिमा माँ ही जाने।
हर इक रूप को हर कोई माने।।

माँ की दया है जिस पर होती।
जगती उसके मन में ज्योति।।

अपने कारज आप कराये।
पर {अंजुम} का नाम धराये।।

चंडी चालीसा जो कोई गावे।
जन्म सफल हो उसका जावे।।

++++ दोहा ++++
हर अंजुम के सिर पे माँ, रखती दया का हाथ।
अपने भगतों के सदा, चलती माँ है साथ।।

चंडी नाम का हो रहा, युगों से है प्रचार।
माँ चंडी की हो रही, घर-घर जय जयकार।।

******* जय माँ चंडी जय माँ काली *******

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दुर्गा चालीसा

।। दोहा ।।

दुर्गे दुर्गतिनाशिनी वासिनी गिरिकैलास ||
मंदहास मृदुभाषिणी माॅं काटौ यमपाश ||


।। चौपाई ।।

जयति अंबिका जयति भवानी ||
शिवा सांभवी भवा मृडानी ||1||

विन्ध्यनिवासिनि हिमगिरि-गेहा ||
वपु विराट अति सूक्ष्म सुदेहा ||2||

तुंग शृंग अयि गब्बरवासी ||
शिव-पत्नी मख दक्ष विनाशी ||3||

सती जया कोहला-नग-वासी ||
सकलशब्दमयि आनंदराशी ||4||

हिंगलाज भगवति जयदाई ||
असुरनिकंदनि अभयप्रदाई ||5||

जपाकुसुम-कर जय कौमारी ||
पूजित सुर हरि अज त्रिपुरारी ||6||

विघ्ननिवारिणि भव भय हारिणि ||
दैत्य विदारिणि रिपुदल मारिणि ||7||

विश्वविमोहिनि दुर्गतिहारी ||
कालविभंजनि शरणतिहारी ||8||

कात्यायनि कुशमांडा गौरी ||
शशिघंटा गिरिराजकिशोरी ||9||

कालरात्रि ब्रह्मचारिणि बाला ||
सिद्धिदात्रि धात्रि जगपाला ||10||

स्कंदजननि गणनायक माता ||
भव भय भंजनि सुर मुनि त्राता ||11||

बीसभुजी वाणी ब्रह्माणी ||
कवि कल्याणी पुस्तकपाणी ||12||

स्वर सुर शब्द भाव शुचि दाता ||
शारद शुभ्र वसन अवदाता ||13||

खप्पर धारिणि आभ कपाली ||
सुर संतन भक्तन प्रतिपाली ||14||

मुंडमालिनी डाक-डमाली ||
भद्रकालिका तारा काली ||15||

कमलाक्षी दारिद्र्यप्रजारी ||
यश-वैभव-धनदा अघहारी ||16||

विमले रक्तकमल-वर-पाणी ||
पद्मनाभ-प्रिय जनकल्याणी ||17||

शून्य शिखर में अंब विराजै ||
गड़ड़ गड़ड़ घन नौबत गाजै ||18||

तडित विनन्दित रूप मनोहर ||
ज्योति पुंज जग-तम-हर सुंदर ||19||

सकल चराचर देखनहारै ||
सूर्य चंद्र दो नैन तिहारै ||20||

आदि शक्ति जयदायिनि ज्वाला ||
कुमकुम सिंदुर रेख कपाला ||21||

शिशु-शशि-स्वर्ण मुकुट पर सोहे ||
स्मित मुख मंद मंद मन मोहे ||22||

कुंडल मकराकृत शुभ कर्णा ||
रत्न जटित गलहार सुवर्णा ||23||

खडग शूल शर चाप कटारी ||
जगद्धोधरण धरे महतारी ||24||

नेत्र लाल विकराल कराली ||
चामुंडा चंडी करवाली ||25||

भैरवि असुर भयावनि माया ||
तप्तस्वर्ण आभा सुरराया ||26||

युगल चरण अरविंद तुम्हारै ||
सेवत सुर मुनि भये सुखारै ||27||

जगदंबे त्रिकुटाचलवासी ||
परमेश्वरी विराजिनि काशी ||28||

अन्नपुरणा अन धन यश दाता ||
ऋषि मुनि भजै तुम्है दिन राता ||29||

वरमुद्राधारी रूद्राणी ||
सुधा सहोदरी कमला-रानी ||30||

संकट विकट समय जब ध्याई ||
सपदि सिंह चढ रही सहाई ||31||

चंड मुंड महिषासुर मारै ||
रक्त बीज शक्ति संहारै ||32||

धूम्रविलोचन भृकुटि विलासा ||
दुर्गा-पाप पुंज-तम-नाशा ||33||

भक्त-कल्पलतिके वरदाई ||
नवदुर्गे दशविद्ये माई ||34||

अष्ठ सिद्धि नवनिद्धि प्रदाई ||
अस कहि कविजन कीरत गाई ||35||

महिमा अमित चरित सुखकारी ||
गावत जन जावत बलिहारी ||36||

सकल जगत तुम्हरौ जस छायौ ||
मार्कंडेय मुनि किंचित गायौ ||37||

ऋषि कोविद कवि पंडित ज्ञानी ||
नेति नेति कहि तोही बखानी ||38||

मोह निशा ने मम मन घेरो ||
सत्वर करियै मात सवैरौ ||39||

कवि नरपत पर कृपा कीजै ||
निज चरणन चाकर रख लीजै ||40||

।। दोहा ।।

गणपति षणमुख शिव सहित करन सुमंगल मूल ||
रहौ विराजित ह्रदय में शिवा चढी शार्दूल ||

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