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धन्वंतरि स्तोत्र भगवान धन्वंतरि की स्तुति में लिखा गया एक प्रसिद्ध स्तोत्र है। भगवान धन्वंतरि को आयुर्वेद के देवता और चिकित्सा के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है। यह स्तोत्र उनकी कृपा प्राप्त करने और स्वास्थ्य, दीर्घायु और समृद्धि की कामना के लिए पढ़ा जाता है।
धन्वंतरि स्तोत्र का हिंदी में अर्थ:
प्रथम श्लोक:
नमामि धन्वंतरिमादिदेवं सुरासुरैर्वन्दितपादपद्मम्।
लोके जरारुग्भयमृत्युनाशं धातारमीशं विविधौषधीनाम्॥१॥
- नमामि धन्वंतरिमादिदेवं: मैं आदिदेव धन्वंतरि को नमन करता हूँ।
- सुरासुरैर्वन्दितपादपद्मम्: जिनके चरण कमल देवताओं और असुरों द्वारा पूजे जाते हैं।
- लोके जरारुग्भयमृत्युनाशं: जो संसार में बुढ़ापे, रोग, भय और मृत्यु का नाश करते हैं।
- धातारमीशं विविधौषधीनाम्: जो विविध औषधियों के स्वामी और धारण करने वाले हैं।
अर्थ:
मैं आदिदेव धन्वंतरि को नमन करता हूँ, जिनके चरण कमल देवताओं और असुरों द्वारा पूजे जाते हैं। वे संसार में बुढ़ापे, रोग, भय और मृत्यु का नाश करते हैं और विविध औषधियों के स्वामी हैं।
दूसरा श्लोक:
अमृतं कलशं हस्ते बिभ्राणं मुदमुत्तमाम्।
सर्वरोगप्रशमनं धन्वंतरिमहं भजे॥२॥
- अमृतं कलशं हस्ते: हाथ में अमृत से भरा कलश लिए हुए।
- बिभ्राणं मुदमुत्तमाम्: उत्तम आनंद को धारण करने वाले।
- सर्वरोगप्रशमनं: सभी रोगों को शांत करने वाले।
- धन्वंतरिमहं भजे: मैं धन्वंतरि की भक्ति करता हूँ।
अर्थ:
मैं धन्वंतरि की भक्ति करता हूँ, जो हाथ में अमृत से भरा कलश लिए हुए हैं, उत्तम आनंद को धारण करते हैं और सभी रोगों को शांत करते हैं।
तीसरा श्लोक:
रोगोपसर्गदहनं चिकित्साकल्पतरुम्।
धन्वंतरिमहं वन्दे सर्वसिद्धिप्रदायकम्॥३॥
- रोगोपसर्गदहनं: रोग और संकट को जलाने वाले।
- चिकित्साकल्पतरुम्: चिकित्सा के कल्पवृक्ष।
- धन्वंतरिमहं वन्दे: मैं धन्वंतरि को नमन करता हूँ।
- सर्वसिद्धिप्रदायकम्: सभी सिद्धियों को प्रदान करने वाले।
अर्थ:
मैं धन्वंतरि को नमन करता हूँ, जो रोग और संकट को जलाने वाले, चिकित्सा के कल्पवृक्ष और सभी सिद्धियों को प्रदान करने वाले हैं।
चौथा श्लोक:
नमामि धन्वंतरिमादिदेवं सुरासुरैर्वन्दितपादपद्मम्।
लोके जरारुग्भयमृत्युनाशं धातारमीशं विविधौषधीनाम्॥४॥
- नमामि धन्वंतरिमादिदेवं: मैं आदिदेव धन्वंतरि को नमन करता हूँ।
- सुरासुरैर्वन्दितपादपद्मम्: जिनके चरण कमल देवताओं और असुरों द्वारा पूजे जाते हैं।
- लोके जरारुग्भयमृत्युनाशं: जो संसार में बुढ़ापे, रोग, भय और मृत्यु का नाश करते हैं।
- धातारमीशं विविधौषधीनाम्: जो विविध औषधियों के स्वामी और धारण करने वाले हैं।
अर्थ:
मैं आदिदेव धन्वंतरि को नमन करता हूँ, जिनके चरण कमल देवताओं और असुरों द्वारा पूजे जाते हैं। वे संसार में बुढ़ापे, रोग, भय और मृत्यु का नाश करते हैं और विविध औषधियों के स्वामी हैं।
पांचवा श्लोक:
अमृतं कलशं हस्ते बिभ्राणं मुदमुत्तमाम्।
सर्वरोगप्रशमनं धन्वंतरिमहं भजे॥५॥
- अमृतं कलशं हस्ते: हाथ में अमृत से भरा कलश लिए हुए।
- बिभ्राणं मुदमुत्तमाम्: उत्तम आनंद को धारण करने वाले।
- सर्वरोगप्रशमनं: सभी रोगों को शांत करने वाले।
- धन्वंतरिमहं भजे: मैं धन्वंतरि की भक्ति करता हूँ।
अर्थ:
मैं धन्वंतरि की भक्ति करता हूँ, जो हाथ में अमृत से भरा कलश लिए हुए हैं, उत्तम आनंद को धारण करते हैं और सभी रोगों को शांत करते हैं।
छठा श्लोक:
रोगोपसर्गदहनं चिकित्साकल्पतरुम्।
धन्वंतरिमहं वन्दे सर्वसिद्धिप्रदायकम्॥६॥
- रोगोपसर्गदहनं: रोग और संकट को जलाने वाले।
- चिकित्साकल्पतरुम्: चिकित्सा के कल्पवृक्ष।
- धन्वंतरिमहं वन्दे: मैं धन्वंतरि को नमन करता हूँ।
- सर्वसिद्धिप्रदायकम्: सभी सिद्धियों को प्रदान करने वाले।
अर्थ:
मैं धन्वंतरि को नमन करता हूँ, जो रोग और संकट को जलाने वाले, चिकित्सा के कल्पवृक्ष और सभी सिद्धियों को प्रदान करने वाले हैं।
स्तोत्र का महत्व:
- यह स्तोत्र भगवान धन्वंतरि की कृपा प्राप्त करने के लिए पढ़ा जाता है।
- इसका पाठ करने से रोगों से मुक्ति, दीर्घायु और समृद्धि प्राप्त होती है।
- यह स्तोत्र स्वास्थ्य और चिकित्सा के क्षेत्र में सफलता प्रदान करता है।
लाभ (Benefits):
- रोगों से मुक्ति: भगवान धन्वंतरि का स्मरण करने से सभी रोग दूर हो जाते हैं।
- दीर्घायु: दीर्घायु और स्वस्थ जीवन की प्राप्ति होती है।
- समृद्धि: जीवन में समृद्धि और सुख आता है।
- चिकित्सा में सफलता: चिकित्सा के क्षेत्र में सफलता मिलती है।