Stotra

Govind Damodar Stotra Meaning In Hindi

गोविंद दामोदर स्तोत्र भगवान श्रीकृष्ण की स्तुति में लिखा गया एक प्रसिद्ध स्तोत्र है। यह स्तोत्र भगवान कृष्ण के बाल रूप (दामोदर) और उनकी लीलाओं का वर्णन करता है। इस स्तोत्र का पाठ करने से भक्तों को भगवान कृष्ण की कृपा प्राप्त होती है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।


गोविंद दामोदर स्तोत्र का हिंदी में अर्थ:

प्रथम श्लोक:

गोविन्दं दामोदरं गोपालं परमानन्दं सततं स्मरामि।
मुक्तानां परमं मोक्षं प्रदातारं नमाम्यहम्॥१॥

  • गोविन्दं: गायों के रक्षक, भगवान कृष्ण।
  • दामोदरं: पेट पर रस्सी बंधे हुए (बाल कृष्ण का रूप)।
  • गोपालं: गायों के पालनहार।
  • परमानन्दं: परम आनंद स्वरूप।
  • सततं स्मरामि: निरंतर स्मरण करता हूँ।
  • मुक्तानां: मुक्ति पाने वालों के लिए।
  • परमं मोक्षं: परम मोक्ष।
  • प्रदातारं: देने वाले।
  • नमाम्यहम्: मैं नमन करता हूँ।

अर्थ:
मैं निरंतर गोविंद (गायों के रक्षक), दामोदर (पेट पर रस्सी बंधे हुए), गोपाल (गायों के पालनहार) और परम आनंद स्वरूप भगवान कृष्ण का स्मरण करता हूँ। मैं उन्हें नमन करता हूँ, जो मुक्ति पाने वालों को परम मोक्ष प्रदान करते हैं।


दूसरा श्लोक:

यशोदा नन्दनं वन्दे बालकं नवनीतभुक्।
मुचुकुन्दप्रदातारं नमामि मधुसूदनम्॥२॥

  • यशोदा नन्दनं: यशोदा और नंद के पुत्र।
  • वन्दे: मैं वंदन करता हूँ।
  • बालकं: बालक रूप।
  • नवनीतभुक्: मक्खन खाने वाले।
  • मुचुकुन्दप्रदातारं: मुचुकुंद को मोक्ष देने वाले।
  • नमामि: मैं नमन करता हूँ।
  • मधुसूदनम्: मधु नामक राक्षस का वध करने वाले।

अर्थ:
मैं यशोदा और नंद के पुत्र, बालक रूप में मक्खन खाने वाले और मुचुकुंद को मोक्ष देने वाले भगवान मधुसूदन (कृष्ण) को नमन करता हूँ।


तीसरा श्लोक:

पूतनाजीवित हर्तारं नमामि मधुसूदनम्।
शकटासुर भञ्जकं च नमामि यदुनन्दनम्॥३॥

  • पूतनाजीवित हर्तारं: पूतना के प्राण हरण करने वाले।
  • नमामि: मैं नमन करता हूँ।
  • मधुसूदनम्: मधु राक्षस का वध करने वाले।
  • शकटासुर भञ्जकं: शकटासुर का वध करने वाले।
  • यदुनन्दनम्: यदुवंश के आनंद।

अर्थ:
मैं पूतना के प्राण हरण करने वाले, मधु राक्षस का वध करने वाले, शकटासुर का वध करने वाले और यदुवंश के आनंद भगवान कृष्ण को नमन करता हूँ।


चौथा श्लोक:

नवनीत चोरकं वन्दे बालकं मुरलीधरम्।
गोपीचन्दन लिप्ताङ्गं नमामि मधुसूदनम्॥४॥

  • नवनीत चोरकं: मक्खन चुराने वाले।
  • वन्दे: मैं वंदन करता हूँ।
  • बालकं: बालक रूप।
  • मुरलीधरम्: मुरली धारण करने वाले।
  • गोपीचन्दन लिप्ताङ्गं: गोपीचंदन से सुशोभित शरीर वाले।
  • नमामि: मैं नमन करता हूँ।
  • मधुसूदनम्: मधु राक्षस का वध करने वाले।

अर्थ:
मैं मक्खन चुराने वाले, बालक रूप में मुरली धारण करने वाले और गोपीचंदन से सुशोभित शरीर वाले भगवान मधुसूदन (कृष्ण) को नमन करता हूँ।


पांचवा श्लोक:

गोपालं गोकुलानन्दं गोपीमण्डल मण्डितम्।
गोवर्धनधरं वन्दे नमामि मधुसूदनम्॥५॥

  • गोपालं: गायों के पालनहार।
  • गोकुलानन्दं: गोकुल के आनंद।
  • गोपीमण्डल मण्डितम्: गोपियों से घिरे हुए।
  • गोवर्धनधरं: गोवर्धन पर्वत को धारण करने वाले।
  • वन्दे: मैं वंदन करता हूँ।
  • नमामि: मैं नमन करता हूँ।
  • मधुसूदनम्: मधु राक्षस का वध करने वाले।

अर्थ:
मैं गायों के पालनहार, गोकुल के आनंद, गोपियों से घिरे हुए और गोवर्धन पर्वत को धारण करने वाले भगवान मधुसूदन (कृष्ण) को नमन करता हूँ।


छठा श्लोक:

कंसचाणूर मर्दनं केशिध्वंसकरं हरिम्।
कालियफण मण्डिताङ्गं नमामि मधुसूदनम्॥६॥

  • कंसचाणूर मर्दनं: कंस और चाणूर का वध करने वाले।
  • केशिध्वंसकरं: केशी नामक राक्षस का वध करने वाले।
  • हरिम्: भगवान हरि (कृष्ण)।
  • कालियफण मण्डिताङ्गं: कालिया नाग के फणों से सुशोभित शरीर वाले।
  • नमामि: मैं नमन करता हूँ।
  • मधुसूदनम्: मधु राक्षस का वध करने वाले।

अर्थ:
मैं कंस और चाणूर का वध करने वाले, केशी नामक राक्षस का वध करने वाले और कालिया नाग के फणों से सुशोभित शरीर वाले भगवान मधुसूदन (कृष्ण) को नमन करता हूँ।


स्तोत्र का महत्व:

  • यह स्तोत्र भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं और उनके दिव्य गुणों का वर्णन करता है।
  • इसका पाठ करने से भक्तों को भगवान कृष्ण की कृपा प्राप्त होती है।
  • सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और जीवन में आनंद और शांति आती है।

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