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इंद्राक्षी स्तोत्रम एक शक्तिशाली स्तोत्र है जो देवी इंद्राक्षी की स्तुति में लिखा गया है। देवी इंद्राक्षी को देवी पार्वती का एक रूप माना जाता है, और यह स्तोत्र उनकी कृपा प्राप्त करने, सुरक्षा और समृद्धि की कामना के लिए पढ़ा जाता है। यह स्तोत्र विशेष रूप से दक्षिण भारत में प्रसिद्ध है और मदुरै के मीनाक्षी मंदिर से जुड़ा हुआ है।
इंद्राक्षी स्तोत्रम का हिंदी में अर्थ:
प्रथम श्लोक:
इन्द्राक्षी सहस्राक्षी शताक्षी शान्तिदायिनी।
नमामि त्वां महादेवि सर्वकामफलप्रदाम्॥१॥
- इन्द्राक्षी: इंद्र की आंखों वाली (देवी इंद्राक्षी)।
- सहस्राक्षी: हजार आंखों वाली।
- शताक्षी: सौ आंखों वाली।
- शान्तिदायिनी: शांति देने वाली।
- नमामि त्वां: मैं तुम्हें नमन करता हूँ।
- महादेवि: महान देवी।
- सर्वकामफलप्रदाम्: सभी इच्छाओं को पूरा करने वाली।
अर्थ:
मैं देवी इंद्राक्षी को नमन करता हूँ, जो हजार आंखों वाली, सौ आंखों वाली, शांति देने वाली और सभी इच्छाओं को पूरा करने वाली हैं।
दूसरा श्लोक:
मदुरैनगरनाथे मीनाक्षी सुन्दरवदने।
नमामि त्वां महादेवि सर्वकामफलप्रदाम्॥२॥
- मदुरैनगरनाथे: मदुरै नगर की स्वामिनी।
- मीनाक्षी: मछली की आंखों वाली (देवी मीनाक्षी)।
- सुन्दरवदने: सुंदर मुख वाली।
- नमामि त्वां: मैं तुम्हें नमन करता हूँ।
- महादेवि: महान देवी।
- सर्वकामफलप्रदाम्: सभी इच्छाओं को पूरा करने वाली।
अर्थ:
मैं मदुरै नगर की स्वामिनी, मछली की आंखों वाली, सुंदर मुख वाली और सभी इच्छाओं को पूरा करने वाली देवी मीनाक्षी को नमन करता हूँ।
तीसरा श्लोक:
इन्द्राणी शिवपत्नी च शिवानी शिवरूपिणी।
नमामि त्वां महादेवि सर्वकामफलप्रदाम्॥३॥
- इन्द्राणी: इंद्र की पत्नी।
- शिवपत्नी: शिव की पत्नी।
- शिवानी: शिव की शक्ति।
- शिवरूपिणी: शिव के रूप वाली।
- नमामि त्वां: मैं तुम्हें नमन करता हूँ।
- महादेवि: महान देवी।
- सर्वकामफलप्रदाम्: सभी इच्छाओं को पूरा करने वाली।
अर्थ:
मैं इंद्र की पत्नी, शिव की पत्नी, शिव की शक्ति और शिव के रूप वाली देवी को नमन करता हूँ, जो सभी इच्छाओं को पूरा करने वाली हैं।
चौथा श्लोक:
सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
नमामि त्वां महादेवि सर्वकामफलप्रदाम्॥४॥
- सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये: सभी मंगलों में सबसे मंगलमय।
- शिवे: कल्याणकारी।
- सर्वार्थसाधिके: सभी उद्देश्यों को पूरा करने वाली।
- नमामि त्वां: मैं तुम्हें नमन करता हूँ।
- महादेवि: महान देवी।
- सर्वकामफलप्रदाम्: सभी इच्छाओं को पूरा करने वाली।
अर्थ:
मैं सभी मंगलों में सबसे मंगलमय, कल्याणकारी और सभी उद्देश्यों को पूरा करने वाली देवी को नमन करता हूँ, जो सभी इच्छाओं को पूरा करने वाली हैं।
पांचवा श्लोक:
शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे।
नमामि त्वां महादेवि सर्वकामफलप्रदाम्॥५॥
- शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे: शरणागत, दीन और दुखी लोगों की रक्षा करने वाली।
- नमामि त्वां: मैं तुम्हें नमन करता हूँ।
- महादेवि: महान देवी।
- सर्वकामफलप्रदाम्: सभी इच्छाओं को पूरा करने वाली।
अर्थ:
मैं शरणागत, दीन और दुखी लोगों की रक्षा करने वाली देवी को नमन करता हूँ, जो सभी इच्छाओं को पूरा करने वाली हैं।
छठा श्लोक:
सर्वाभरणभूषिते सर्वसौभाग्यदायिनी।
नमामि त्वां महादेवि सर्वकामफलप्रदाम्॥६॥
- सर्वाभरणभूषिते: सभी आभूषणों से सुशोभित।
- सर्वसौभाग्यदायिनी: सभी सौभाग्य को देने वाली।
- नमामि त्वां: मैं तुम्हें नमन करता हूँ।
- महादेवि: महान देवी।
- सर्वकामफलप्रदाम्: सभी इच्छाओं को पूरा करने वाली।
अर्थ:
मैं सभी आभूषणों से सुशोभित और सभी सौभाग्य को देने वाली देवी को नमन करता हूँ, जो सभी इच्छाओं को पूरा करने वाली हैं।
स्तोत्र का महत्व:
- यह स्तोत्र देवी इंद्राक्षी की कृपा प्राप्त करने के लिए पढ़ा जाता है।
- इसका पाठ करने से सुरक्षा, समृद्धि और सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है।
- यह स्तोत्र विशेष रूप से मदुरै के मीनाक्षी मंदिर से जुड़ा हुआ है और वहां के भक्तों द्वारा पूजा जाता है।
लाभ (Benefits):
- सुरक्षा: देवी इंद्राक्षी का स्मरण करने से सभी प्रकार के संकटों से सुरक्षा मिलती है।
- समृद्धि: जीवन में समृद्धि और सुख आता है।
- इच्छाओं की पूर्ति: सभी इच्छाएं पूरी होती हैं।
- सौभाग्य: सौभाग्य और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
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Here is the Hindi meaning of the Indrakshi Stotra you provided. This stotra is a powerful hymn dedicated to Goddess Indrakshi, who is a form of Goddess Durga or Parvati. The stotra describes her various forms, attributes, and powers.
इंद्राक्षी स्तोत्र का हिंदी अर्थ:
पहला श्लोक:
इंद्राक्षी नाम सा देवी देवतैस्समुदाहृता।
गौरी शाकंभरी देवी दुर्गानाम्नीति विश्रुता॥
- इंद्राक्षी नाम सा देवी: वह देवी जिनका नाम इंद्राक्षी है।
- देवतैस्समुदाहृता: देवताओं द्वारा प्रशंसित।
- गौरी: गौरी (पार्वती का एक रूप)।
- शाकंभरी देवी: शाकंभरी देवी (वनस्पतियों की रक्षक)।
- दुर्गानाम्नीति विश्रुता: दुर्गा नाम से प्रसिद्ध।
अर्थ:
वह देवी जिनका नाम इंद्राक्षी है, देवताओं द्वारा प्रशंसित हैं। वे गौरी, शाकंभरी और दुर्गा नाम से प्रसिद्ध हैं।
दूसरा श्लोक:
नित्यानंदी निराहारी निष्कलायै नमोऽस्तु ते।
कात्यायनी महादेवी चंद्रघंटा महातपाः॥
- नित्यानंदी: सदा आनंदमयी।
- निराहारी: बिना भोजन के रहने वाली।
- निष्कलायै: निराकार।
- नमोऽस्तु ते: तुम्हें नमस्कार है।
- कात्यायनी: कात्यायनी (देवी का एक रूप)।
- महादेवी: महान देवी।
- चंद्रघंटा: चंद्रघंटा (चंद्रमा की तरह कांतिवाली)।
- महातपाः: महान तपस्वी।
अर्थ:
सदा आनंदमयी, बिना भोजन के रहने वाली, निराकार देवी को नमस्कार है। वे कात्यायनी, महादेवी, चंद्रघंटा और महान तपस्वी हैं।
तीसरा श्लोक:
सावित्री सा च गायत्री ब्रह्माणी ब्रह्मवादिनी।
नारायणी भद्रकाली रुद्राणी कृष्णपिंगला॥
- सावित्री: सावित्री (सृष्टि की देवी)।
- गायत्री: गायत्री (वेदमाता)।
- ब्रह्माणी: ब्रह्मा की शक्ति।
- ब्रह्मवादिनी: ब्रह्मविद्या की दाता।
- नारायणी: नारायण की शक्ति।
- भद्रकाली: कल्याणकारी काली।
- रुद्राणी: रुद्र (शिव) की शक्ति।
- कृष्णपिंगला: कृष्ण और पिंगल वर्ण वाली।
अर्थ:
वे सावित्री, गायत्री, ब्रह्माणी, ब्रह्मविद्या की दाता, नारायणी, कल्याणकारी काली, रुद्राणी और कृष्णपिंगला हैं।
चौथा श्लोक:
अग्निज्वाला रौद्रमुखी कालरात्री तपस्विनी।
मेघस्वना सहस्राक्षी विकटांगी जडोदरी॥
- अग्निज्वाला: अग्नि की ज्वाला वाली।
- रौद्रमुखी: भयंकर मुख वाली।
- कालरात्री: कालरात्रि (काल का नाश करने वाली)।
- तपस्विनी: तपस्या करने वाली।
- मेघस्वना: मेघों की गर्जना वाली।
- सहस्राक्षी: हजार आंखों वाली।
- विकटांगी: विशाल शरीर वाली।
- जडोदरी: जटा धारण करने वाली।
अर्थ:
वे अग्नि की ज्वाला वाली, भयंकर मुख वाली, कालरात्रि, तपस्या करने वाली, मेघों की गर्जना वाली, हजार आंखों वाली, विशाल शरीर वाली और जटा धारण करने वाली हैं।
पांचवा श्लोक:
महोदरी मुक्तकेशी घोररूपा महाबला।
अजिता भद्रदाऽनंता रोगहंत्री शिवप्रिया॥
- महोदरी: विशाल उदर वाली।
- मुक्तकेशी: खुले बालों वाली।
- घोररूपा: भयंकर रूप वाली।
- महाबला: महान शक्तिशाली।
- अजिता: अजेय।
- भद्रदा: कल्याण देने वाली।
- अनंता: अनंत।
- रोगहंत्री: रोगों को नष्ट करने वाली।
- शिवप्रिया: शिव की प्रिय।
अर्थ:
वे विशाल उदर वाली, खुले बालों वाली, भयंकर रूप वाली, महान शक्तिशाली, अजेय, कल्याण देने वाली, अनंत, रोगों को नष्ट करने वाली और शिव की प्रिय हैं।
छठा श्लोक:
शिवदूती कराली च प्रत्यक्षपरमेश्वरी।
इंद्राणी इंद्ररूपा च इंद्रशक्तिःपरायणी॥
- शिवदूती: शिव की दूती।
- कराली: भयंकर।
- प्रत्यक्षपरमेश्वरी: साक्षात परमेश्वरी।
- इंद्राणी: इंद्र की पत्नी।
- इंद्ररूपा: इंद्र के रूप वाली।
- इंद्रशक्तिःपरायणी: इंद्र की शक्ति का आश्रय लेने वाली।
अर्थ:
वे शिव की दूती, भयंकर, साक्षात परमेश्वरी, इंद्र की पत्नी, इंद्र के रूप वाली और इंद्र की शक्ति का आश्रय लेने वाली हैं।
सातवां श्लोक:
सदा सम्मोहिनी देवी सुंदरी भुवनेश्वरी।
एकाक्षरी परा ब्राह्मी स्थूलसूक्ष्मप्रवर्धनी॥
- सदा सम्मोहिनी: सदा मोहित करने वाली।
- सुंदरी: सुंदर।
- भुवनेश्वरी: भुवनेश्वरी (ब्रह्मांड की स्वामिनी)।
- एकाक्षरी: एक अक्षर वाली (ॐ)।
- परा ब्राह्मी: परब्रह्म की शक्ति।
- स्थूलसूक्ष्मप्रवर्धनी: स्थूल और सूक्ष्म का विस्तार करने वाली।
अर्थ:
वे सदा मोहित करने वाली, सुंदर, भुवनेश्वरी, एक अक्षर वाली (ॐ), परब्रह्म की शक्ति और स्थूल व सूक्ष्म का विस्तार करने वाली हैं।
आठवां श्लोक:
रक्षाकरी रक्तदंता रक्तमाल्यांबरा परा।
महिषासुरसंहर्त्री चामुंडा सप्तमातृका॥
- रक्षाकरी: रक्षा करने वाली।
- रक्तदंता: लाल दांत वाली।
- रक्तमाल्यांबरा: लाल फूलों की माला और वस्त्र धारण करने वाली।
- परा: परम।
- महिषासुरसंहर्त्री: महिषासुर का वध करने वाली।
- चामुंडा: चामुंडा (दुर्गा का भयंकर रूप)।
- सप्तमातृका: सात मातृकाओं में से एक।
अर्थ:
वे रक्षा करने वाली, लाल दांत वाली, लाल फूलों की माला और वस्त्र धारण करने वाली, परम, महिषासुर का वध करने वाली, चामुंडा और सात मातृकाओं में से एक हैं।
नौवां श्लोक:
वाराही नारसिंही च भीमा भैरववादिनी।
श्रुतिस्स्मृतिर्धृतिर्मेधा विद्यालक्ष्मीस्सरस्वती॥
- वाराही: वराह (विष्णु के अवतार) की शक्ति।
- नारसिंही: नरसिंह (विष्णु के अवतार) की शक्ति।
- भीमा: भयंकर।
- भैरववादिनी: भैरव की वाणी।
- श्रुतिस्स्मृतिर्धृतिर्मेधा: वेद, स्मृति, धृति और बुद्धि।
- विद्यालक्ष्मीस्सरस्वती: विद्या, लक्ष्मी और सरस्वती।
अर्थ:
वे वाराही, नारसिंही, भयंकर, भैरव की वाणी, वेद, स्मृति, धृति, बुद्धि, विद्या, लक्ष्मी और सरस्वती हैं।
दसवां श्लोक:
अनंता विजयाऽपर्णा मानसोक्तापराजिता।
भवानी पार्वती दुर्गा हैमवत्यंबिका शिवा॥
- अनंता: अनंत।
- विजयाऽपर्णा: विजय देने वाली।
- मानसोक्तापराजिता: मन से कही गई बातों में अजेय।
- भवानी: भवानी (शिव की पत्नी)।
- पार्वती: पार्वती (पर्वतराज हिमालय की पुत्री)।
- दुर्गा: दुर्गा (दुर्गति नाशिनी)।
- हैमवत्यंबिका: हिमालय की पुत्री।
- शिवा: शिव की शक्ति।
अर्थ:
वे अनंत, विजय देने वाली, मन से कही गई बातों में अजेय, भवानी, पार्वती, दुर्गा, हिमालय की पुत्री और शिव की शक्ति हैं।
ग्यारहवां श्लोक:
शिवा च शिवरूपा च शिवशक्तिपरायणी।
मृत्युंजयी महामायी सर्वरोगनिवारिणी॥
- शिवा: शिव की शक्ति।
- शिवरूपा: शिव के रूप वाली।
- शिवशक्तिपरायणी: शिव की शक्ति का आश्रय लेने वाली।
- मृत्युंजयी: मृत्यु को जीतने वाली।
- महामायी: महान माया वाली।
- सर्वरोगनिवारिणी: सभी रोगों को नष्ट करने वाली।
अर्थ:
वे शिव की शक्ति, शिव के रूप वाली, शिव की शक्ति का आश्रय लेने वाली, मृत्यु को जीतने वाली, महान माया वाली और सभी रोगों को नष्ट करने वाली हैं।
बारहवां श्लोक:
ऐंद्रीदेवी सदाकालं शांतिमाशुकरोतु मे।
ईश्वरार्धांगनिलया इंदुबिंबनिभानना॥
- ऐंद्रीदेवी: इंद्र की शक्ति।
- सदाकालं: सदा।
- शांतिमाशुकरोतु मे: मुझे शीघ्र शांति प्रदान करें।
- ईश्वरार्धांगनिलया: ईश्वर के आधे शरीर में निवास करने वाली।
- इंदुबिंबनिभानना: चंद्रमा के समान मुख वाली।
अर्थ:
इंद्र की शक्ति, सदा मुझे शीघ्र शांति प्रदान करें। वे ईश्वर के आधे शरीर में निवास करने वाली और चंद्रमा के समान मुख वाली हैं।
तेरहवां श्लोक:
सर्वोरोगप्रशमनी सर्वमृत्युनिवारिणी।
अपवर्गप्रदा रम्या आयुरारोग्यदायिनी॥
- सर्वोरोगप्रशमनी: सभी रोगों को शांत करने वाली।
- सर्वमृत्युनिवारिणी: सभी प्रकार की मृत्यु को रोकने वाली।
- अपवर्गप्रदा: मोक्ष प्रदान करने वाली।
- रम्या: सुंदर।
- आयुरारोग्यदायिनी: आयु और स्वास्थ्य देने वाली।
अर्थ:
वे सभी रोगों को शांत करने वाली, सभी प्रकार की मृत्यु को रोकने वाली, मोक्ष प्रदान करने वाली, सुंदर और आयु व स्वास्थ्य देने वाली हैं।
चौदहवां श्लोक:
इंद्रादिदेवसंस्तुत्या इहामुत्रफलप्रदा।
इच्छाशक्तिस्वरूपा च इभवक्त्राद्विजन्मभूः॥
- इंद्रादिदेवसंस्तुत्या: इंद्र आदि देवताओं द्वारा स्तुति की गई।
- इहामुत्रफलप्रदा: इस लोक और परलोक में फल देने वाली।
- इच्छाशक्तिस्वरूपा: इच्छा शक्ति का स्वरूप।
- इभवक्त्राद्विजन्मभूः: हाथी के मुख वाली और दो बार जन्म लेने वाली।
अर्थ:
वे इंद्र आदि देवताओं द्वारा स्तुति की गई, इस लोक और परलोक में फल देने वाली, इच्छा शक्ति का स्वरूप और हाथी के मुख वाली हैं।
पंद्रहवां श्लोक:
भस्मायुधाय विद्महे रक्तनेत्राय धीमहि तन्नो ज्वरहरः प्रचोदयात्॥
- भस्मायुधाय: भस्म से बने अस्त्र वाले।
- विद्महे: हम जानते हैं।
- रक्तनेत्राय: लाल आंखों वाले।
- धीमहि: हम ध्यान करते हैं।
- तन्नो ज्वरहरः: वह हमारे ज्वर को हरें।
- प्रचोदयात्: प्रेरित करें।
अर्थ:
हम भस्म से बने अस्त्र वाले और लाल आंखों वाले को जानते हैं और ध्यान करते हैं। वह हमारे ज्वर को हरें और हमें प्रेरित करें।
स्तोत्र का महत्व:
- यह स्तोत्र देवी इंद्राक्षी की कृपा प्राप्त करने के लिए पढ़ा जाता है।
- इसका पाठ करने से सुरक्षा, समृद्धि और सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है।
- यह स्तोत्र विशेष रूप से मदुरै के मीनाक्षी मंदिर से जुड़ा हुआ है और वहां के भक्तों द्वारा पूजा जाता है।
लाभ (Benefits):
- सुरक्षा: देवी इंद्राक्षी का स्मरण करने से सभी प्रकार के संकटों से सुरक्षा मिलती है।
- समृद्धि: जीवन में समृद्धि और सुख आता है।
- इच्छाओं की पूर्ति: सभी इच्छाएं पूरी होती हैं।
- सौभाग्य: सौभाग्य और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।