हनुमान जी देवी भगवान राम के परम भक्त माने जाते हैं। भगवान राम भी हनुमान जी को अपने भाई के समान ही मानते हैं। हनुमान चालीसा में राम जी कहते भी हैं कि हे हनुमान ‘तुम मम प्रिय भरतहिं सम भाई’ यानी तुम मुझे अपने छोटे भाई भरत के समान ही प्रिय हो।
लेकिन हनुमान जी के मन में तो कुछ और ही था वह राम जी के इतना कहने भर से प्रसन्न नहीं थे। हनुमान जी के मन की यह बात भगवान राम भी नहीं जान पाए थे। परिणाम यह हुआ कि जब देवी सीता लंका से अयोध्या लौटी तो हनुमान जी कुछ परेशान रहने लगे।
जिस देवी सीता को हनुमान जी माता कहते थे। वही देवी सीता अब उन्हें अपने रास्ते की बाधा नजर आने लगी और हनुमान जी देवी सीता से जलने लगे।
स्थिति अब यहां तक पहुंच गयी थी कि हनुमान जी हर समय देवी सीता पर नजर रखने लगे। हनुमान जी के मन को बार-बार एक सवाल परेशान करने लगा कि आखिर देवी सीता क्या करती हैं जिससे भगवान राम उन्हें सबसे अधिक स्नेह करते हैं।
कई दिनों तक जब हनुमान जी इस सवाल में उलझे रहे तो उन्हें समझ आया कि देवी सीता एक लाल रंग की चीज अपने माथे में लगती हैं। हनुमान जी ने सोचा इसी लाल वस्तु के कारण भगवान राम देवी सीता से अधिक स्नेह करते हैं।
हनुमान जी ने अपनी उत्सुकता को प्रकट करते हुए देवी सीता से पूछ ही लिया कि माता यह कौन सी चीज है जिसे आप माथे में लगाती हैं। देवी सीता ने हनुमान जी को बताया कि यह सिंदूर है जिसे लगाने से भगवान राम मुझे स्नेह करते हैं।
देवी सीता का उत्तर सुनकर हनुमान जी को लगा कि अब उनकी परेशानी का समाधान मिल गया है। फिर क्या था हनुमान जी मौके की ताक में रहने लगे। एक दिन जब देवी सीता श्रृंगार करके अपने कक्ष से निकली तो हुनमान जी ने अपने पूरे शरीर पर सिंदूर लगा लिया।
इसके बाद हनुमान जी उछलते कूदते राम जी के पास पहुंच गए। राम जी उस समय सभा में बैठे थे और सभासदों से विचार विमर्श कर रहे थे। राम जी ने जब हनुमान जी को पूरे शरीर पर सिंदूर लगाए देखा तो हैरान रह गए।
राम जी ने हनुमान जी से पूछा कि हनुमान यह सब क्या है, तुमने अपने पूरे शरीर पर सिंदूर क्यों लगाया है। राम जी के प्रश्नों का उत्तर देते हुए हनुमान जी ने कहा कि प्रभु माता सीता केवल मांग में सिंदूर लगाती हैं तब आप उन्हें इतना स्नेह करते हैं। इसलिए मैंने सोचा कि पूरे शरीर पर ही सिंदूर लगा लेता हूं ताकि आप मुझे सबसे अधिक स्नेह करें।
हनुमान जी की इन प्रेमपूर्ण बातों को सुनकर भगवान राम भाव विभोर हो गए और अपने आसान से उठकर हनुमान जी को गले लगा लिया। इस घटना के बाद से ही कुंवारे हनुमान जी को सिंदूर चढ़ाने का नियम बन गया। मान्यता है कि सिंदूर अर्पित करने वाले भक्तों पर हनुमान जी बड़े प्रसन्न होते हैं।