Baalbek Bekaa – Lebanon’s Ancient Yogic Connection
पश्चिम एशिया में लेबनान देश में एक ऐसा अद्भुत स्मारक है, जिसके बारे में कई बातें रोचक हैं। इसमें कई ऐसी बातें पाई जाती हैं, जो भारतीय यौगिक संस्कृति की निशानी मानी जाती हैं…
लेबनान की बीका घाटी में स्थित एक पहाड़ी पर बना बालबेक स्मारक अपने आप में एक अद्भुत इमारत है। इस बेहद खूबसूरत और भव्य स्मारक का निर्माण तकरीबन आज से तीन से चार हजार साल पहले फोनेशियाई लोगों द्वारा शुरू किया गया था। उनके बाद यूनानी, रोमन और अरबों ने समय-समय पर इसके निर्माण में अपना योगदान दिया।
स्थानीय किंवदंतियों के मुताबिक, इस मंदिर का मूल रूप से निर्माण ‘पूर्व से आए’ लोगों ने किया। हालांकि इससे ज्यादा इसके बारे में वहां कोई और जानकारी नहीं है। बालबेक मंदिर के बारे में कुछ बातें बड़ी रोचक हैं। इस मंदिर की छत में कमल के फूलों की आकृतियां तराशी गई हैं। यह अपने आप में काफी हैरानी की बात है, क्योंकि लेबनान में कमल के फूल नहीं होते। जबकि भारतीय संस्कृति में कमल को आध्यात्मिकता का आम प्रतीक माना जाता है। कोई भी भारतीय मंदिर कमल के फूल की आकृति के बिना नहीं होता। दूसरी बात – बताया जाता है कि इस मंदिर की नींव में तकरीबन आठ सौ टन वजन वाले पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है।
कहा जाता है कि प्राचीन लोगों ने इन बेहद वजनी पत्थरों को ढोने और दस फीट की गोलाई व 50 फीट उंचाई वाले खंभों को स्थापित करने के लिए हाथियों का इस्तेमाल किया था। लेकिन लोग इस बात पर बहुत यकीन नहीं करते, क्योंकि पश्चिमी एशिया में हाथी नहीं पाए जाते।
बालबेक एक अद्भुत स्मारक है, जिसे हरेक को देखना चाहिए। इसके कुछ पत्थर तो आठ सौ टन वजनी हैं। मैं चाहता हूँ कि आप इस बात को समझें कि बिना किसी खास उपकरणों, बिना क्रेन, बिना ट्रक और बिना बड़े जहाजों के यह काम किया गया है। आखिर कैसे लोग रहे होंगे वो, जिन्होंने ऐसे साहसिक कारनामे के बारे में सोचा होगा? जाहिर सी बात है कि महज रोजी-रोटी और पैसों की खातिर काम करने वाले लोग तो इसके बारे में कल्पना भी नहीं कर सकते। बालबेक मंदिर के बारे में कुछ बातें बड़ी रोचक हैं। इस मंदिर की छत में कमल के फूलों की आकृतियां तराशी गई हैं। यह अपने आप में काफी हैरानी की बात है, क्योंकि लेबनान में कमल के फूल नहीं होते।
मंदिर की छत पर लगे पत्थर में अनाहत चक्र के प्रतीक छह दल वाले कमल और आपस में गुंथे हुए दो त्रिभुज की आकृति साफ -साफ तराशी गई है। इसके अलावा, बालबेक संग्रहालय में एक सोलह कोणीय पत्थर है, जिसे गुरु पूजा पत्थर कहा जाता है।
गुरु पूजा कोई भावनात्मक चीज न होकर एक खास तरह की प्रक्रिया है, जिसके सहारे कुछ खास तरह की संभावनाएं पैदा करने की कोशिश की जाती है। इसमें आपके आसपास ऊर्जा का ऐसा क्षेत्र तैयार किया जाता है, जिससे लोग न सिर्फ ग्रहणशील बन सकें, बल्कि आध्यात्मिकता के लिए तैयार हो सकें। यह पूरी प्रक्रिया ‘षोडशोपचार’ कहलाती है, जिसका आशय गुरु के सम्मान के सोलह तरीकों से है।
इसके लिए बाकायदा सोलह कोणों वाले पत्थर या आसन बनाए जाते हैं, जिसे ‘गुरु पूजा पीठ’ कहा जाता है। इन्हें योगिक संस्कृति की खासियत माना गया है। सोलह कोणों वाले गुरु पूजा पीठ की जानकारी कहीं और से नहीं मिली होगी, क्योंकि इसकी जानकारी स्वयं आदियोगी ने दी थी। ऐसी चीज इस धरती पर बालबेक के अलावा कहीं और नहीं मिलती, जहां हजारों साल पुराना गुरु पूजा पीठ मौजूद है। जाहिर सी बात है कि उस जमाने में इन दोनों जगहों के बीच काफी सक्रिय व मजबूत कारोबारी और आध्यात्मिक रिश्ते रहे होंगे।
Baalbek is an incredible monument, standing on a hill in the Bekaa valley in Lebanon. The construction of the expansive temple was begun by the Phoenicians between three and four thousand years ago. The Greeks then added to it, followed by the Romans, and much later the Arabs. Local legend has it that the temple was originally built by people “from the East”; not much is known beyond that. I have visited the place several times and enjoyed long walks through the ruins, but it was not until my pursuit of yoga that I found revealing connections to other civilizations.
One of the large stones, similar to the ones mounted on the walls of Baalbek.
Some curious facts about the Baalbek temple are that you will see stone lotuses carved on the temple’s ceilings. That is intriguing, because there are no lotuses in Lebanon. But when I later came to India, I saw that the lotus is the most common symbolism of spirituality here. I haven’t seen an Indian temple without one. Secondly, the foundation stones of the temple are supposed to weigh eight hundred tonnes each. The ancients transported these immense stones, and also erected huge columns, which are at least 10 feet in diameter and 50 feet high. It is said that they were moved with the help of elephants, but people don’t give much credence to this as there are no elephants in West Asia.
The lotus is the most common symbolism of spirituality in India.
All these pieces of the puzzle dramatically fell together, when I was learning to perform the traditional Guru Pooja in the ashram in India. I was told that the traditional way to honor the guru is known as Shodashopachara, or 16 ways of treating a Guru. Something called a Guru Pooja stone, a stone with 16 corners, is also used for the purpose. When I saw it, I was reminded of this large stone lying in the middle of the ruins of Baalbek and I was able to connect the dots — the lotuses, the elephants and the 16-cornered stone…
Suddenly, my coming to India did not seem so novel or original. Obviously, there was a cultural interaction going back thousands of years.
Sadhguru:
Baalbek is an incredible monument. It is something that everybody should see. Some of the stones weigh 800 tonnes. I want you to just understand – to do this without equipment, without cranes, without trucks, without any big ships, what kind of human beings would even endeavor to think like that? Definitely not people who are thinking of just money and bread.
Among the roof stones, there is a clear anahata symbol, with 6 petals and two interlocking triangles. And above all, in the museum at Baalbek, there is a stone with 16 corners called a Guru Pooja stone.
Guru Pooja is not just an emotional thing, it is a whole system of creating a certain possibility, of creating a field of energy around you so that people become receptive and are drawn to the whole process. This is called Shodashopachara, which means 16 ways of treating a Guru. For this, 16-cornered stones are made which are called Guru Pooja Peetas which are unique to yogic culture. Guru Pooja stones of 16 corners could not have gone anywhere else except from the knowledge that Adiyogi himself transmitted. Such a thing exists nowhere else on the planet, but in Baalbek there is a Guru Pooja stone that is thousands of years old. Obviously there was a very active commercial and spiritual connection between the two lands.