गोस्वामी तुलसीदास का हनुमानजी से कैसे मिलना हुया था? क्या वास्तव में हनुमान जी ने उन्हें भगवान राम के दर्शन करवाये थे?
तो चलिए शुरू करते हैं जब भगवान श्री राम ने अपने सारे सांसारिक कर्त्तव्यों से निवृत होने के पश्चात सरयू नदी में जब प्राण त्यागने का निश्चय किया तो हनुमान जी ने भी उनके साथ चलने का अनुरोध किया तब श्रीराम ने उन्हें इस पृथ्वी पर रहकर समाज कल्याण करने का आदेश दिया और साथ ही अपने शरीर को त्यागने के पहले महाबली हनुमानजी को अजर अमर होने का भी आशीर्वाद दिया था ताकि वे सदैव राम नाम की अलख और भक्तों का मार्गदर्शन करते रहें। आज भी आप को हनुमान जी की उपस्थिति सच्चे दिल से याद करने पर महसूस स्वयं कर सकते हैं जिसके अनगिनत प्रमाण हमारे इतिहास में दर्ज हैं।
स्वयं महाकवि तुलसीदास जी को हनुमान जी ने साक्षात प्रगट होकर श्रीराम के दर्शन करने का सूत्र बतलाया था। यदि आप उस किस्से को पढें तो आपको इस बात की सत्यता का स्वंय आभास हो जाएगा की सदियों से हनुमानजी अपने भक्तों को दर्शन देकर उनकी विकट से विकट समस्या को हल करते रहे हैं। श्रीराम से तुलसीदास जी मिलवाने की यह सत्य घटना आप अपने घर के किसी भी बुजुर्ग से मिलकर पुख्ता कर सकते हैं ।चलिए इस अविश्वरणीय घटना को आपको सुनाने का सौभाग्य प्राप्त करूँ, ताकि आपके साथ साथ क्योरा के मेरे समस्त साथीगण भी इसे सुने व समझें और पुनः ताजा कर लें। तो किस्सा यूँ है कि महान ग्रन्थ रामचरित मानस के रचयिता श्री तुलसी दास जी जिनका जन्म 1554 ईस्वी में हुआ था उन्हें भगवान श्रीराम के साक्षात् दर्शन करने की प्रकट अभिलाषा हुई। और यह अजर अमर हनुमानजी की कृपा रही कि उन्हें कलियुग में भी भगवान श्री राम और लक्ष्मणजी के दर्शन हुए या यूं कहें कि हनुमानजी जी की असीम कृपा व भगवान राम के अनन्य भक्त होने के कारण ही तुलसी दास जी बाल्य रूप रूप में भगवान राम के दर्शन का सौभाग्य मिला।
विदित हो कि तुलसीदास जी को भगवान राम की भक्ति की प्रेरणा अपनी पत्नी रत्नावली से ही प्राप्त हुई थी जिसके द्वारा अपमानित किये जाने से वे रामजी की भक्ति में फिर ऐसे डूबे कि दुनिया-जहान की सुध न रखी। तुलसी दासजी अक्सर भगवान की भक्ति में लीन होकर जनमानस को राम कथा सुनाया करते थे। एक बार काशी में रामकथा सुनाते समय इनकी भेंट एक प्रेत से हुई जो अपनी मुक्ति हेतु भटक रहा था तथा तुलसीदास जी से केवल इस कारण प्रसन्न हो गया था कि तुलसीदास जी अनजाने में जिस पेड़ पर जल छोड़ते थे उसी पेड़ पर उस प्रेत का निवास था। वार्तालाप के दौरान उस प्रेत ने उन्हें किसी भी तरह की सहायता प्रदान करने को पूछा तो, तुलसीदास जी ने उस प्रेत से भगवान राम मिलने की अपनी तड़प के बारे में बतलाया। तब उसने ने ही उन्हें हनुमानजी के आव्हान के लिए कहा था साथ ही तुलसीदास जी से बोला कि इस जगत में सदैव अजर अमर रहने वाले रामजी के परम भक्त केवल हनुमानजी ही हैं जो आपको भगवान श्रीराम से मिलवा सकते हैं। साथ ही उस प्रेत ने उन्हें हनुमान जी के दर्शन करने का उपाय बतलाया। तुलसी दास जी अब हनुमान जी के दर्शन को व्याकुल हो गए और फिर उन्हें सच्चे दिल से याद करने के फलस्वरूप उनके दर्शन पा ही लिए और उनसे प्रार्थना करने लगे कि वे उन्हें श्रीरामजी के दर्शन करवा दें।हनुमान जी ने तुलसी दास जी को बहुत समझाने व बहलाने की कोशिश की लेकिन तुलसीदास टस से मस नहीं हुए। तब हनुमान जी ने उनसे कहा कि चलिए आपको भगवान श्रीरामजी के दर्शन चित्रकूट में प्राप्त होंगे। प्रशन्नचित तुलसीदास जी उसी समय चित्रकूट के लिए रवाना हो लिए और वहाँ के रामघाट पर अपना डेरा जमा लिया तथा श्रीराम का स्मरण करते हुए व्याकुलता से उनकी राह देखने लगे।एक दिन मार्ग में उन्हें 2 अति सुंदर युवक घोड़े पर बैठे नजर आए, जैसे ही तुलसीदास जी उन्हें देखा वे सम्मोहित हो लगभग अपनी सुध-बुध खो बैठे। जब वे युवक इनके सामने से चले गए तब उनके सामने हनुमान जी प्रकट हुए और बतालाया कि ये युवक ही श्रीराम और लक्ष्मण जी थे। तुलसी दास जी भावातुर होकर रोने लगे और पछताने लगे कि वह अपने प्रिय प्रभु को ही नहीं पहचान पाए। तुलसी दास जी को विकट दुखी देखकर हनुमान जी ने सांत्वना दी कि कल सुबह आपको फिर राम-लक्ष्मण के दर्शन होंगे। दूसरे दिन जब प्रात:काल स्नान-ध्यान करने के बाद तुलसी दास जी जब घाट पर लोगों को चंदन लगा रहे थे तभी बालक के रूप में भगवान राम इनके पास आए और कहने लगे कि बाबा हमें चंदन नहीं लगाओगे। हनुमान जी को लगा कि तुलसी दास जी इस बार भी भूल न कर बैठें इसलिए वे तोते का रूप धारण कर गाने लगे
‘चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीर। तुलसी दास चंदन घिसें, तिलक देत रघुबीर’।
ये महाबली हनुमान जी ही थे जिन्होंने तुलसीदास जी को भगवान श्रीराम का सशरीर दर्शन करवाए।
जय श्रीराम।
प्रेरणास्त्रोत: मानस का हंस (अमृतलाल नागर)
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