History Of Sanskrit Language In Hindi
संस्कृत का इतिहास
संस्कृत अनादि भाषा है। वेद अनादि अनन्त हैं। वेदों का कोई कर्ता नहीं, ईश्वर भी नहीं बनाता इन्हें। नारायण के निःश्वास से वेद हर कल्प के आदि में स्वतः अनायास प्रकट होते हैं, पितामह ब्रह्मा उन वेदों का तपश्चर्या समय ग्रहण करते हैं। फिर अपने चार मुखों से वे वेदपाठ करते रहते हैं जिसे वे अन्य देवों को सिखाते हैं। भूमि पर ऋषि इन्हीं वेदों का दर्शन करते हैं अतः ऋषियों को “मन्त्रद्रष्टा” यानि के मन्त्र का साक्षात्कार करने वाला कहते हैं।
वेदों से ही संस्कृत भाषा बनाई गई है। संस्कृत में ही कृत शब्द का प्रयोग होने से संसकृत अनादि होते हुए भी बनाई गयी है। यह बात कुछ समय में समझेंगे। पहले संस्कृत शब्द की व्युत्पत्ति समझ लेते हैं।
सम् + कृत। इसमें सम् उपसर्ग है जिसका अर्थ सम्यक्, ठीक, सुन्दर, व्यवस्थित, ऐसा होता है। कृत का अर्थ है बना हुआ। अच्छे से बना हुआ, इस अर्थ में तो केवल संकृत बनना चाहिए। बीचमें स् कहां से आया?
“संपरिभ्यां करोतौ भूषणे” इस सूत्र से भूषण
यानि सजाना, decorate करना इस अर्थ में बीच का “स्” आया है। यह मात्र बनी हुई भाषा नहीं, सुव्यवस्थित, सुभूषित, सुघटित सजी हुई, decorated भाषा है। अतः इसका अर्थ
“well-decorated” या “well-organized” होना चाहिए।
इसका कारण है कि वैदिक भाषा अनादि होने से बोली नहीं जा सकती। वह सुव्यवस्थित या समान नियमों वाली नहीं। उसमें केवल अन्दाजें से हम समझते हैं कि यहाँ ये हिसाब लगाया होगा, अतः “छन्दसि बहुलम्” (irregular in vedas) यह सूत्र 15 बार से अधिक पढ़ा गया है।
जैसे कोई पुस्तक कबाट में जमी हुई बढ़िया तरह से रखी हों तो उस व्यवस्था को देखकर अन्दाजा लगाया जा सकता है कि किसी मनुष्य ने बढ़िया सजाके इन्हें जमाया है, संस्कृत किया है। लेकिन यदि यह पुस्तकें बिखरी पड़ी हों और अव्यवस्थित हों तो हम समझ सकते हैं कि यह स्वतः बिखरी पड़ी है, लगता है ध्यान देने वाला कोई है नहीं।
इसी तरह वेदों की संस्कृत को केवल मनुष्य हिसाब लगाके समझ सकता है। पाणिनि की मेधा genius थी कि उन्होंने irregularity को भी classify कर दिया। लेकिन रोबोट को वेद पढ़ाओ तो वो समझ न सकेगा। इतने सारे प्रयोग individually याद करना और कौनसी जगह कैसा अर्थ यह मनुष्य बुद्धि ही हिसाब लगाके समझ सकती है। किन्तु लौकिक संस्कृत इससे विपरीत है। लौकिक संस्कृत computer के हिसाब की भाषा है। वह एकदम सुव्यवस्थित है और हिसाब में पक्की। मनुष्य लौकिक सीखले तो वैदिक का बुद्धि से बढ़िया हिसाब लगा लेगा, रोबोट यह न कर पाएगा लेकिन बिना किसी गलती के लौकिक संस्कृत लपालप बोलेगा। यही संस्कृत का इतिहास है, कि वेदों से यह निकलके एकदम सुव्यवस्थित हो गई है।
और एक विशेष बात कि संस्कार का तात्पर्य होता है देहशुद्धि करना और शरीर को दिव्यता के योग्य बनाना। वैसे ही इस भाषा का संस्कार हुआ है, यहाँ संस्कार क्या है? प्रकृति और प्रत्यय का विभाग। हरेक शब्द को आप पूरी तरह खोदकर उसका प्रत्यय विधान कर संस्कार कर सकते हैं, नए नए अर्थ भी इसी प्रकार एक ही शब्द के किए जा सकते हैं। शब्दों का ऐसा संस्कार करने से ही उनमें वेदों के विशेष रहस्यों के प्रकाश की योग्यता प्राप्त होती है। प्रकृति प्रत्यय के संस्कार से ही वेदों के दिव्य रहस्य का प्रकाश होता है। अतः यह भाषा सबसे पवित्र भाषा है।
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क्या संस्कृत व्याकरण से और कठिन नियमों से संस्कृत का नाश हो रहा है?
जी नहीं। संस्कृत भाषा तो आज उसके सटीक और सुघटित व्याकरण की वजह से ही जिन्दा है।
क्या आप जानते हैं व्याकरण और नियमों के अभाव में क्या होता है? भाषा में बहुत से लोगों का प्रवेश हो सकता है, व्यापक स्तर पे बोली जा सकती है और प्रचार भी सरल है। इस लचीले स्वभाव से अवश्य काफी मदद मिलेगी।
लेकिन इसका दुष्परिणाम है कि भाषा में बड़े बदलाव आएँगे प्रान्त प्रान्त के हिसाब से। देख लीजिए आज एक बिहारी गुजराती मराठी या पञ्जाबी सबकी हिन्दी अलग प्रकार की है। ऐसे में बदलाव 50-60 साल में एक भाषा की अनेक बोलियाँ बनती हैं, फिर उसमें से एक नयी निकट की भाषा बन जाती है। और फिर कुछ हजार दो हजार साल बाद जो मूल भाषा है उसका क्या स्वरूप था बताना असम्भव हो जाएगा।
कह सकते हो कि प्राचीन साहित्य को देखके अन्दाज लगा लिया जाए। हाँ जैसे पुरानी अंग्रेजी आज नयी अंग्रेजी काफी फर्क है। लेकिन प्रत्येक व्यक्ति जो उस भाषा को सीखना चाहेगा, को अपने मनसे उसके नियम का अनुमान लगाना होगा। कई बार सही लगेगा कई बार गलत। और उसमें भी एक भाषा में करोड़ों नियम होते हैं पूरी भाषा के नियम सीखना असम्भव हो जाएगा।
आज लैटिन का येही हाल है। प्राचीन साहित्य है किन्तु पढ़ना सीखना बड़ा कठिन। कोई निबद्ध व्याकरण ग्रन्थ नहीं। सब विद्वान् बैठके हिसाब लगा लगा के उसके नियम निबद्ध कर रहे हैं। उसमें भी जिस तरह से प्राचीन लोग सोचते होंगे वैसा नवीन न सोचें और साहित्य भी 2000 साल बाद थोड़ा ही मिलेगा, उसमें से जितना अन्दाज लगा सको उतना सही। भाषा आ भी गयी तो भी उसका चाल चलन कोई देशी native बोले और बाहर का आके सीखे तो चाल चलन में जमीन आसमान का फर्क होता है। हम अंग्रेजी कितनी ही अच्छी बोलें या लिखें, हमारा चाल चलन अंग्रेजी मूल चाल चलन जैसा नहीं है।
आज सोचो पाणिनि भगवान् का कितना महान् उपकार है संस्कृत को। उन्होंने इतनी बड़ी भाषा को, जिसमें पृथक् पृथक् देखने जाओ तो करोड़ो नियम हैं, उसको मात्र आठ अध्याय की पुस्तक में समा दिया। यह सम्पूर्ण संस्कृत व्याकरण चार से पाँच साल में हो सकता है और अगर ऊपरी हिस्सा चाहिए तो 1 साल में ही। आज इतने सारे लोग संस्कृत बोल रहे हैं, और संस्कृत की मौलिकता originality आज भी विद्यमान है उसमें बहुत बडा कारण व्याकरण का है।
चाल चलन में फर्क अवश्य आया है लेकिन व्याकरण सीखने वाले लोग उसी प्राचीन रीतसे संस्कृत बोलने लिखने में सक्षम हैं, दूसरी किसी भाषा में वह सम्भव नहीं। इसलि मित्रों पाणिनि भगवान् की दूरदर्शिता को समझो जिससे पहले कि व्याकरण पर कोई संदेह करो । 🙏
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