जब युधिष्ठिर के यज्ञ में हुई एक अजब घटना ने सभी को चौंका दिया
जब महाराज युधिष्ठिर का यज्ञ पूरा हो गया, तो वहां ऋषियों की सभा हुई। सभा में यज्ञ की चर्चा होने लगी। किसी ने कहा, ऐसी उदारता से कोई यज्ञ हुआ है, यह हमने नहीं सुना।क्योंकि इसमें नर-नारायण अर्जुन और श्रीकृष्ण जूठी पत्तल समेट रहे थे।’
इसी बीच एक नेवला दिखाई पड़ा, जिसका आधा शरीर सोने का था। वह मनुष्य की तरह बोला, यज्ञ तो कुरुक्षेत्र में एक ब्राह्मण ने किया था। उसके पुण्य प्रभाव से देवलोक से तत्काल दिव्य विमान आया और उसमें बैठकर ब्राह्मण परिवार स्वर्ग चला गया।सभासदों ने नेवले से उस यज्ञ के बारे में विस्तार से बताने के लिए कहा। वह बोला-कुरुक्षेत्र में एक ब्राह्मण, उसकी स्त्री, पुत्र और पुत्रवधू रहते थे। बहुत दिनों से उन्हें अन्न नहीं मिला था। वे सब उपवास कर रहे थे। कई दिनों बाद ब्राह्मण सेर-दो सेर अन्न बीनकर लाया और यथाविधि बनाकर तैयार किया।जैसे ही वे खाने को हुए, एक अतिथि आ पहुंचा और उसने भोजन मांगा। ब्राह्मण ने अपना हिस्सा दे दिया। फिर भी उसका पेट नहीं भरा। तब उसकी स्त्री और पुत्र ने भी अपना-अपना हिस्सा दे दिया। अंत में पुत्रवधू अपना हिस्सा देने आई, तो ब्राह्मण बोला, तू बहुत निर्बल है!तू मत दे।’ पुत्रवधू बोली-पिताजी! शरीर नष्ट भी हो जाए, तो फिर प्राप्त हो जाएगा। किंतु धर्म जाकर फिर वापस नहीं लौटेगा।’ यह सुनकर ब्राह्मण के आनंद का ठिकाना नहीं रहा।उसी समय विमान आया और सारे कुटुंब को बिठाकर स्वर्ग ले गया।
मैं उस समय उस जगह लोट भर गया था, जिससे मेरा आधा शरीर सोने का हो गया। बाकी आधा शरीर सोने का करने के लिए मैं यहां आया, पर वैसा नहीं हुआ। अतः उस ब्राह्मण का यज्ञ इससे बढ़कर था। यह सुन सब चुप हो गए। सच है, परमार्थ से बड़ा यज्ञ नहीं।